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क्या सिख धर्म में तलाक ले सकते हैं? जानें क्या कहता है आनंद विवाह अधिनियम 2009

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देशभर में तलाक के मामलों पर नजर डालें तो ज्यादातर तलाक 35 से 49 साल की उम्र के बीच होते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा तलाक जैन समुदाय में होते हैं, उसके बाद ईसाई समुदाय में, उसके बाद बौद्ध समुदाय में, उसके बाद हिंदू समुदाय में, उसके बाद मुस्लिम समुदाय में और सबसे कम तलाक होते हैं सिख समुदाय में। हालांकि, सिखों में तलाक इसलिए भी कम होते हैं क्योंकि सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब में ‘तलाक’ के लिए कोई शब्द निर्दिष्ट नहीं है और इस अधिनियम को पवित्र पुस्तक में नहीं माना जाता है। सिखों में तलाक एक तरह से वर्जित माना जाता है। इसके बावजूद कुछ सिख जोड़े तलाक ले लेते हैं, हालांकि तलाक लेने के लिए उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का सहारा लेना पड़ता है।

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सिखों में तलाक वर्जित है

सिख धर्म में तलाक को एक गंभीर समस्या के रूप में देखा जाता है। जब पति और पत्नी विवाह करते हैं, तो वे श्री गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में एक साथ रहने और जीवन भर एक-दूसरे से प्यार और सम्मान करने का वादा करते हैं। यदि वैवाहिक जीवन में विवाद होता है, तो सिख समुदाय ही इस मामले में हस्तक्षेप करता है।

सबसे पहले, सिख समुदाय के कुछ वरिष्ठ सदस्यों से विवाह में किसी भी असहमति में हस्तक्षेप करने और मध्यस्थता करने का अनुरोध किया जा सकता है। दूसरा, पंज प्यारे को मामले को सुलझाने का काम सौंपा जा सकता है। यानी कि, सिखों के बीच तलाक के मामलों को रोकने के लिए गुरुओं और समुदाय के कुछ वरिष्ठ सदस्यों की मदद ली जाती है, लेकिन फिर भी चरम और बहुत ही दुर्लभ मामले में जहां एक पक्ष सुलह करने से इंकार कर देता है, तो ऐसे मामलों में एक पक्ष संगत या पंज से तलाक लेने और बाद में पुनर्विवाह करने की अनुमति मांग सकता है। यदि कोई पुनर्विवाह करना चाहता है, तो वह आनंद कारज समारोह के साथ पुनर्विवाह कर सकता है।

आनंद मैरिज एक्ट में नहीं तलाक का प्रावधान

सिखों में शादियां आनंद मैरिज एक्ट 2009 के तहत की जाती हैं। हालांकि इस एक्ट में तलाक को लेकर कोई नियम नहीं हैं। दरअसल सिख समुदाय में तलाक की कोई अवधारणा नहीं है, क्योंकि इस धर्म में शादी को दो आत्माओं का मिलन माना जाता है। लेकिन फिर भी अगर तलाक की स्थिति बनती है तो कानून के तहत ही तलाक लिया जा सकता है। सिख विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। ऐसे में सिखों में तलाक के लिए वही प्रक्रिया अपनाई जाती हैं जो हिन्दुओं में होती है। लेकिन इस एक्ट में भी तलाक तभी लिया जा सकता है जब शादी में किसी तरह की दिक्कत हो। बिना किसी दिक्कत के तलाक लेने का कोई प्रावधान है।

कैसे होता है तलाक?

सिखों में तलाक की प्रक्रिया को समझने के लिए हमें पहले हिंदू धर्म में तलाक के कांसेप्ट को समझना होगा। हिंदू विवाहों में तलाक का मामला तुरंत अदालत में निपटाया जाता है। वह भी हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आता है। तलाक दो तरह से होता है। पहला आपसी सहमति से और दूसरा यह कि अगर दोनों में से कोई भी शादी से नाखुश है तो वह तलाक के लिए अर्जी दे सकता है।

सबसे पहले तलाक को लेकर पति-पत्नी ने कोर्ट में याचिका दायर करते हैं। जिसके बाद कोर्ट उन्हें 6 महीने का वक्त देता है। अदालत यह समय इसलिए देती है ताकि अगर इस बीच पति-पत्नी का मन बदल जाए तो वे समझौता कर सकें। यदि पति-पत्नी 6 महीने के बाद दोबारा सुनवाई के लिए नहीं जाते हैं, तो यह माना जाता है कि उनके बीच समझौता हो गया है और वे तलाक नहीं चाहते हैं। लेकिन अगर वे 6 महीने बाद आते हैं तो कोर्ट सुनवाई के बाद तलाक की याचिका स्वीकार कर लेता है।

वहीं, तलाक लेने के लिए सिख धर्म के लोग भी इसी प्रक्रिया को फॉलो करते हैं। हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम सिख के अलावा बौद्ध और जैन धर्मों पर भी लागू होता है। इसका मतलब यह है कि जब इन धर्मों के लोग तलाक के लिए कोर्ट जाएंगे तो मामले की सुनवाई हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही होगी।

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