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आखिर क्यों दलाई लामा को अपना दुश्मन मानता है चीन? जानिए…

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तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा को चीन बिल्कुल भी पसंद नहीं करता। वो उनसे बहुत चिढ़ता है। यही वजह है कि हाल ही में जब दलाई लामा का जन्मदिन मनाया, तो ये चीन को रास नहीं आया। इसलिए कुछ चीनियों ने सीमा पार कर उत्सव में डूबे बौद्धों को दूर से ही बैनर और अपना झंडा दिखाया। ये घटना 6 जुलाई को देमचोक इलाक में हुई। 

दलाई लामा के जन्मदिन पर चीन ने की ये हरकत

इस दिन चीनी सैनिक कोयुल के डॉली तांगो इलाके में घुसे, जो देमचोक से करीब 30 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है। भारतीय सीमा में चीनी सैनिक केवल 30 ही मिनटों के लिए आए थे और फिर वहां से वापस चले गए। इस दौरान उन्होंने केवल बैनर और झंडा ही दिखाया। यही वजह रही कि चीन की इस हरकत गंभीर ना मानते हुए सिर्फ इसे उकसाने वाला रवैया ही माना। 

इस वजह से भी चिढ़ा होगा चीन!

चीन की चिढ़ की एक वजह ये भी होगी कि पीएम मोदी ने दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई भी दी थीं। जिसके जरिए उन्होंने चीन को साफ संदेश देने की भी कोशिश की। वहीं एक जुलाई को जब चीन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना को 100 साल पूरे हुए थे, तो इस पर भारत की तरफ से कुछ नहीं कहा गया। जबकि अमेरिका की आजादी के 245 साल पूरे होने पर भी पीएम मोदी ने राष्ट्रपति जो बाइडेन और अमेरिकी जनता को बधाई दी थी।

इस बीच एक सवाल ये उठता है कि आखिर किन को दलाई लामा से समस्या क्या है? क्यों वो उनसे इतना चिढ़ता है? दलाई लामा के जन्मदिन पर चीन को इतनी मिर्ची क्यों लग गई कि उसने भारतीय सीमा में घुसकर ये हरकत की? आइए आपको चीन की दलाई लामा से चिढ़ की असल वजह के बारे में बताते हैं…

क्यों दलाई लामा को पसंद नहीं करता चीन?

इतिहास पर नजर डालें तो तिब्बत एक आजाद देश हुआ करता था, जो भारत और चीन के बीच बफर स्टेट यानी विवादित जगह पर था। 1912 में 13वें दलाई लामा ने तिब्बत को एक स्वतंत्र देश घोषित किया था। तिब्बत के भारत के साथ सदियों पुराने रिश्ते थे। तब भारत पर अंग्रेजों का शासन था, तब भी तिब्बत में भारतीय रेल चला करती थी। यही नहीं तिब्बत में भारतीय डाकघर और पुलिस तक थी। 

साथ ही भारतीय सेना की एक टुकड़ी तिब्बत की सुरक्षा करती थी। तिब्बत में भारतीय मुद्रा का इस्तेमाल होता था। लेकिन इसके करीबन 40 सालों के बाद, जब 14वें दलाई लामा चुने जा रहे थे तो चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया और उस पर अपना कब्जा जमा लिया। लेकिन इसके कुछ ही सालों के बाद चीन का तिब्बत में विरोध शुरू हो गया। चीन ने तिब्बतियों के उस विद्रोह को भी कुचल डाला। 

चीन ने तिब्बत के बौद्ध मठों को तोड़ना शुरू कर दिया। साथ ही दलाई लामा को भी परेशान करने लगा। तब चीन ने दलाई लामा को गिरफ्तार करने की कोशिश की। वो उन्हें गिरफ्तार कर बीजिंग लेकर जाना चाहते थे। तब ही रातों रात दलाई लामा अपने सैकियों सहयोगियों के साथ भागकर भारत आ गए। 31 मार्च 1959 को दलाई लामा भारत आ गए थे। चीन ने दलाई लामा को लौटाने को भी कहा, लेकिन तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था। तब से ही चीन इस बात से काफी चिढ़ता है कि दलाई लामा को भारत ने शरण दे रखी है और वो उनको अपना दुश्मन और तिब्बत का अलगाववादी नेता मानता है। 

भले ही चीन को दलाई लामा से समस्या हो, लेकिन कई देशों के साथ उनके अच्छे रिश्ते हैं। दुनिया उनको एक शांतिदूत के तौर पर देखती है। इसके लिए दुनियाभर में शांति का संदेश देने के लिए उनको नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। भारत समेत कई देश उनका काफी सम्मान करते हैं। 

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