Sultana Daku Story: चिट्ठी लिखकर करता था डकैती, उसे पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने डर से खोल दिए 10 थाने!

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Sultana Daku Story: एक दौर था जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, हरिद्वार, बिजनौर और कोटद्वार जैसे इलाके सुल्ताना डाकू के नाम से कांपते थे। उसका खौफ इतना था कि ब्रिटिश हुकूमत को बाकायदा इन इलाकों में नए थाने खोलने पड़े। सहारनपुर जिले में जो आज कई थाने हैं, उनमें से कई की स्थापना सुल्ताना डाकू और स्वतंत्रता सेनानियों से निपटने के मकसद से की गई थी।

उस वक्त देहरादून और हरिद्वार भी सहारनपुर का हिस्सा हुआ करते थे। मेरठ कमिश्नरी के अधीन वेस्ट यूपी का लंबा चौड़ा हिस्सा आता था। 1909 में सहारनपुर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय की नींव रखी गई, और फिर धीरे-धीरे कई थानों का गठन हुआ—बड़गांव (1907), चिलकाना, बिहारीगढ़, मिर्जापुर, नकुड़, गंगोह, नगर कोतवाली, देहरादून, हरिद्वार और रुड़की।

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सुल्ताना डाकू: डाकू कम, किंवदंती ज़्यादा- Sultana Daku Story

सुल्ताना डाकू सिर्फ एक नाम नहीं था, वो एक ऐसा चेहरा था जिसे अमीरों के लिए काल और गरीबों के लिए मसीहा माना जाता था। साहित्यकार डॉ. वीरेंद्र आज़म बताते हैं कि सुल्ताना पुलिस की वर्दी पहनता था और उससे भी हैरानी की बात ये कि डाका डालने से पहले बाकायदा चिट्ठी भेजकर सूचना देता था।

उसकी हिम्मत देखिए जिस घर में डाका डालना होता, वहां पहले से चिट्ठी भेज दी जाती और तय तारीख पर वह आता और डाका डालता भी। पुलिस उसे कई बार पकड़ने गई लेकिन नाकाम रही।

उसने नजीबाबाद के एक पुराने किले को अपना अड्डा बना लिया था। वो किला जो नजीबुद्दौला ने बनवाया था, सुल्ताना के कब्जे में था और पुलिस उस इलाके में जाने से भी डरती थी।

उमराव सिंह और वो घोड़े वाली कहानी

एक किस्सा काफी मशहूर है, कोटद्वार के जमींदार उमराव सिंह को सुल्ताना ने चिट्ठी भेजी कि फलां तारीख को तुम्हारे घर डाका डालूंगा। उमराव सिंह ने गुस्से में अपने नौकर को चिट्ठी देकर पुलिस को सूचना देने भेजा। नौकर को घोड़ा दिया गया ताकि वह जल्दी पहुंचे। लेकिन रास्ते में सुल्ताना खुद अपने साथियों के साथ नहा रहा था। वर्दी में होने के चलते नौकर ने उसे ही पुलिस समझ लिया और चिट्ठी दे दी।

ये देखकर सुल्ताना तिलमिला गया और उसी रात उमराव सिंह को गोली मार दी।

गरीबों का मददगार, अमीरों का दुश्मन

सुल्ताना के बारे में एक लोककथा ये भी कहती है कि वो अमीरों को लूटकर गरीबों में बांटता था। किसी छोटे दुकानदार से सामान लेता, तो उसके दोगुने पैसे देता। और अगर कोई गरीब अपनी बेटी की शादी के लिए मदद मांगता, तो खुलकर चंदा देता।

वो अमीरों की लाशें पेड़ से लटका देता था ताकि बाकी लोग डरें। उसका खौफ इतना था कि ब्रिटिश हुकूमत ने बिहारीगढ़, फतेहपुर और नजीबाबाद जैसे इलाकों में नए थाने खोले।

ब्रिटिश सरकार की सख्त कार्रवाई

आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने सुल्ताना को पकड़ने के लिए स्पेशल अफसर कैप्टन यंग को भेजा। कैप्टन यंग ने 1923 में सुल्ताना और उसके कुछ साथियों को पकड़ लिया। उसी साल जून में हल्द्वानी जेल में उसे फांसी दे दी गई।

तब उसकी उम्र करीब 30 साल थी और उसका आतंक लगभग 10 साल तक चला था।

सुल्ताना की कहानी, इतिहास या हीरो?

सुल्ताना डाकू की कहानी सिर्फ डकैती की नहीं, बल्कि उस दौर की है जब एक व्यक्ति का नाम ब्रिटिश सत्ता की नींव हिला सकता था। चाहे वो डाकू रहा हो या ‘गरीबों का रॉबिनहुड’, उसकी वजह से सहारनपुर और आसपास के इलाकों में जो पुलिस ढांचा खड़ा हुआ, वो आज भी कायम है।

और शायद यही वजह है कि आज भी फिल्मों, किस्सों और लोकगीतों में सुल्ताना डाकू ज़िंदा है।

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