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Sonia Gandhi Political Legacy: 3 बार PM बनने का मौका खोकर भी दी स्थिर सरकारें – सोनिया गांधी की सियासी विरासत क्यों रहेगी अनमोल?

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Sonia Gandhi Political Legacy: सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी है। 1965 में, जब सोनिया गांधी ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही थीं, तब उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई थी। तीन साल बाद, 1968 में सोनिया भारत आईं और यहीं रहकर परिवार को मनाने के बाद राजीव गांधी से शादी कर ली। राजनीति में उनकी रुचि कभी नहीं रही, और न ही वह चाहती थीं कि राजीव गांधी राजनीति में कदम रखें। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। राजीव गांधी राजनीति में आए, प्रधानमंत्री बने, और बाद में आतंकवाद का शिकार होकर उनकी असमय मृत्यु हुई।

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राजीव गांधी के निधन के कुछ सालों बाद, सोनिया गांधी को राजनीति में प्रवेश करना पड़ा। कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता लेने के दो महीने बाद, 1998 में, वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं और फिर से कांग्रेस को एक नई दिशा देने की कोशिश की। हालांकि, शुरुआत में वह हिंदी में भी सहज नहीं थीं, लेकिन उन्होंने पार्टी को मजबूत नेतृत्व प्रदान किया और अपने फैसलों से कांग्रेस को सफलता दिलाई।

सोनिया गांधी की राजनीतिक यात्रा में कई महत्वपूर्ण मोड़ आए, जिनसे न केवल कांग्रेस को बल्कि देश को भी स्थिरता मिली। उनकी सबसे बड़ी सफलता यह रही कि उन्होंने कई बार प्रधानमंत्री पद के अवसरों को ठुकराया, लेकिन पार्टी की सफलता और राष्ट्रहित में अपने काम को प्राथमिकता दी। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीते और देश को स्थिर सरकार दी।

1. पार्टी को संकट से उबारना: Sonia Gandhi Political Legacy

राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को एक नई दिशा देने के लिए सोनिया गांधी को पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि उन्होंने पहले प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकराया। 1997 में पार्टी की अध्यक्ष बनने के बाद, उन्होंने कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व प्रदान किया। इसके बावजूद कि कई नेता पार्टी छोड़ चुके थे और कांग्रेस हार की स्थिति में थी, सोनिया गांधी ने पार्टी को एकजुट किया और उसे खड़ा किया।

2. प्रधानमंत्री पद से मना करना

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। इसके बाद, उन्होंने पार्टी की अध्यक्षता संभाली और अपने नेतृत्व में कांग्रेस ने दो बार चुनावों में जीत दर्ज की। यह उनका सबसे बड़ा बलिदान था, क्योंकि वह चाहती तो प्रधानमंत्री बन सकती थीं, लेकिन उन्होंने पीछे रहकर पार्टी और देश के लिए काम करने को प्राथमिकता दी।

3. स्थिर सरकार की प्रदान

2004 के आम चुनाव में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने महज 145 सीटें पाईं, लेकिन उनकी रणनीति ने विपक्ष को एकजुट किया और कई सहयोगी पार्टियों को साथ लाकर उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह को खड़ा किया। यही नहीं, 2009 में भी कांग्रेस ने 206 सीटें हासिल की और विपक्ष को पछाड़ दिया, जिससे देश को एक स्थिर सरकार मिली।

4. महत्वपूर्ण फैसलों में भूमिका

2004 से 2014 तक, सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून, डीबीटी, शिक्षा का अधिकार और सूचना का अधिकार जैसे ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा बनीं। इन नीतियों ने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया।

सोनिया गांधी की सियासी यात्रा का अंत

हालांकि, अब सोनिया गांधी ने अपनी सियासी पारी के समापन का संकेत दे दिया है। रायपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में, सोनिया गांधी ने कहा था कि भारत जोड़ो यात्रा के साथ उनकी राजनीतिक यात्रा समाप्त हो सकती है। उन्होंने कहा कि उन्हें 2004 और 2009 में कांग्रेस की जीत और डॉ. मनमोहन सिंह के कुशल नेतृत्व से व्यक्तिगत संतुष्टि मिली, लेकिन सबसे बड़ी खुशी उन्हें इस बात की है कि उनका कार्यकाल भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो रहा है, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।

सोनिया गांधी का राजनीतिक सफर अब लगभग समाप्ति की ओर है, लेकिन उनका योगदान भारतीय राजनीति और कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने हमेशा पार्टी और देश के हित में फैसले लिए और एक स्थिर नेतृत्व प्रदान किया।

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