एक सामान्य सिख से कितने अलग होते हैं ‘रामदासिया सिख’ ?

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Ramdasia Sikh full Details in Hindi – क्या आप जानते है कि पंजाब में दलित आबादी सबसे ज्यादा है. जिनमे प्रमुख चार समुदाय के लोग आते है रामदासिया, रविदासिया, आद-धर्मी और बाल्मीकि. इन समुदायों की आबादी पूरे पंजाब की आबादी का 32% है. आज हम बात करेंगे रामदासिया समुदाय/ सिखों के बारे में, जो सिख हिन्दू उप-समूह है. जो चमार के नाम से जाने जाने वाले, चमड़े के कारीगरों और मोची की जाति से उत्पन्न हुए. आजकल इस समुदाय के सिख खेती करते है, सरकारी अधिकारिक पदों पर है और प्रमुख राजनेता भी है. रामदासिया सिख आम तौर पर पंजाबी, हिन्दू ओए डोगरी भाषा बोलते है. रामदासिया सिख, गुरु रविदास जी के वे अनुयाई है जिनके पूर्वज चमार यानि चमड़े का काम करते थे. जिन्हें अनुसूचित जाति में जोड़ दिया गया है.

दोस्तों आज हम आपको रामदासिया सिखों के बारे में कुछ खास बातें बताएंगे. क्या आप जानते है रामदासिया सिख कौन होते है? और उनकी हमारे समाज में क्या भूमिका रही है ?

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कौन है रामदासिया सिख?

रामदासिया सिख आमतौर पर उन सिखों के लिए प्रयोग किया जाता है. जिन सिखों के पूर्वज ‘अछूत चमार’ जाति से थे. मूल रूप से यह वे सिख है, जो गुरु रविदास के अनुयायी होने के साथ चार जाति से है. पंजाब सरकार द्वारा रामदासिया सिखों को सामाजिक न्याय, अधिकारिता और अल्पसंख्यक विभाग द्वारा अनुसूचित जाति के रूप में जोड़ दिया गया है. रामदासिया सिखों को अन्य चमार जाति जैसे रविदासिया , जाटव के साथ अनुसूचित जाति के बराबर कर दिया गया है.

रामदासिया सिखों की धार्मिक आस्था

रामदासिया सिख, गुरु रविदास में आस्था रखते है. रामदासिया सिखों ने गुरु रविदास को समर्पित कई मदिर स्थापित किए. इन्होने गुरु रविदास जी का भारत में पहला तीर्थ स्थल कोलकता में बनाया गया और देश के बाहर पहला तीर्थस्थल 1939 में फिजी द्वीप पर नासिनु में स्थापित किया गया था. यह सिख गुरु रविदास के उन अनुयायियों में आते है जिनके पूर्वज चमार यानि की चमड़े का कम करते थे.

ब्रिटिश राज में रामदासिया सिख

विश्व युद्ध के दौरान रामदासिया सिख (Ramdasia Sikh full Details) की एकल-बटालियन रेजिमेंट-23वीं , 32वीं और 34वीं पायनियर रेजिमेंट बनाई गयी थी. प्रत्येक रेजिमेंट के तीन बटालियन शामिल थी. इन्होने यूरोप, मिस्र, मेसोपोटामिया और फ़िलिस्तीन में सेवा की और बेहतरीन प्रदर्शन किया. 1941 में रामदासिया सिखों को, मजहबी सीखे के साथ SLI में भर्ती कर दिया गया था. इसको एकल वर्ग रेजिमेंट भी कहा जाता था. जिसका मतलब है कि इस रेजिमेंट में केवल एक जनसांख्यिकीय (रामदासिया सिख) में भर्ती होते थे. इस रेजिमेंट को पहले रामदासिया रेजिमेंट कहा जाता था.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो को जातीय परम्परा को छोड़ना पड़ा और ज्सिके चलते अन्य समुदाय के लोगो को इसमें भर्ती करना पड़ा,  जैसे जाट सिख, पुजाबी मुसलमान. इन सबसे अलग भारत के विभाजन के समय रामदासिया और मजहबी जैसे नए मान्यता प्राप्त समुदाय की भर्ती महत्वपूर्ण हो गई थी.

भारत की आजादी के बाद रामदासिया सिख

भारत की आजादी के बाद ब्रिटिश भारतीय सेना, भारतीय सेना बन गयी थी. जिसमे रामदासिया सिखों और मजहबी सिखों ने SLI में अपनी सेवा जारी रखी. SLI ने आजादी के बाद हुए लगभग सभी संघर्षो में काम किया. जिसमे शामिल है 1947, 1965, और 1977 की पाकिस्तान के साथ लड़ाई, 1948 की हैदराबाद पुलिस कार्यवाही, 1962 में चीन के साथ लड़ाई. इस बटालियन ने भारत के हर संघर्ष के अपना योगदान दिया है.

और पढ़े : डॉ भीमराव अंबेडकर ने सिख धर्म क्यों नहीं अपनाया था ?

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