तिरुपति मंदिर के लड्डू में जानवरों की चर्बी वाले तेल के इस्तेमाल का विवाद अब राम मंदिर तक पहुंच गया है। अब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से चर्बी के लड्डू का कनेक्शन भी सामने आ रहा है। दरअसल, आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने तिरुपति मंदिर में लड्डू के मुद्दे पर बड़ी बात कही है। मुखपत्र में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तिरुपति तिरुमाला मंदिर से लड्डू अयोध्या भी भेजे गए थे। वहीं, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने जगन मोहन रेड्डी सरकार पर तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी वाले तेल का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। तिरुपति मंदिर में लड्डुओं के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2024 में राम मंदिर के अभिषेक के दौरान तिरुमाला के तिरुपति मंदिर से 1 लाख लड्डू अयोध्या भेजे गए थे। आरएसएस के इस दावे के बाद चर्बी वाले लड्डू के विवाद ने तूल पकड़ लिया है।
अयोध्या में भक्तों को बंटा चर्बी वाले लड्डुओं का प्रसाद
पंचजन्य में लिखी रिपोर्ट के अनुसार प्राण-प्रतिष्ठा के दिन अयोध्या में तिरुपति मंदिर से बड़ी मात्रा में लड्डू आए। भक्तों को इन लड्डुओं से बना प्रसाद भी दिया गया। जांच में यह भी पता चला कि आंध्र प्रदेश के पूर्व जगनमोहन रेड्डी के शासनकाल में तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल के अलावा बीफ का भी इस्तेमाल किया जाता था। आपको बता दें कि इस टिप्पणी से देश में बड़ी संख्या में लोग हैरान हैं।
दरअसल उस समय मीडिया में कई ऐसी खबरें प्रकाशित हुई थीं जिसमें कहा गया था कि इस उत्सव को खास बनाने के लिए प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ने अयोध्या में एक लाख छोटे लड्डू भेजने का फैसला किया है। हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ने राम मंदिर उत्सव के दौरान लड्डू भेजे हैं या नहीं। इस बीच आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने तिरुपति मंदिर के लड्डुओं को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है।
लड्डू में चर्बी पाए जाने के दावे पर RSS ने जताई नाराजगी
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए पंचजन्य ने कहा कि इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता! तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिलाया जा रहा था। जगनमोहन रेड्डी की सरकार ने हिंदुओं की आस्था के साथ अन्याय किया! लैब में किए गए सैंपल टेस्ट में बड़ी जानकारी सामने आई! आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जानकारी दी थी, अब मंदिर के लड्डू प्रसाद में घी मिलाया जा रहा है।
इस से शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता !
तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद में मिलाया जा रहा था जानवरों की चर्बी, सूअर का फैट और मछली का तेल।
जगनमोहन रेड्डी की सरकार ने हिन्दुओं की आस्था के साथ किया अन्याय!
लैब में हुए सैंपल टेस्ट में सामने आई बड़ी जानकारी !
तेलुगुदेशम पार्टी के प्रवक्ता अनम वेंकट रमन रेड्डी के अनुसार, श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के प्रभारी संगठन तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा आपूर्ति किए गए घी के नमूने को विश्लेषण के लिए गुजरात में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के पशुधन और खाद्य विश्लेषण और अध्ययन केंद्र (CALF) में भेजा गया था। वहां से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर मिलावट की पुष्टि हुई है। इस शोध में बताया गया है कि लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए घी में मछली का तेल, सूअर की चर्बी और जानवरों की चर्बी थी। आपको बता दें कि 9 जुलाई 2024 को जांच के लिए नमूना एकत्र किया गया था और एक सप्ताह बाद 16 जुलाई को रिपोर्ट मिली।
YSR कांग्रेस ने तिरुमला को अपवित्र किया
इससे पहले, टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि पिछले पांच सालों में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधियों ने तिरुमाला को अपवित्र किया है। यहां लड्डू में घी की जगह जानवरों की चर्बी डाली जाती है। हालांकि, वाईएसआर कांग्रेस के अनुसार, तिरुमाला मामले में चंद्रबाबू नायडू के दावे पूरी तरह से निराधार और मनगढ़ंत हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार करती है मंदिर का प्रबंधन
हालांकि, न तो आंध्र प्रदेश सरकार और न ही तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी), जो प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर की देखरेख करता है, ने लैब रिपोर्ट की आधिकारिक पुष्टि की। वाईएसआरसीपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य वाईवी सुब्बा रेड्डी ने दावा किया कि नायडू के आरोपों से भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंची है और देवता की पवित्र प्रकृति को नुकसान पहुंचा है।
सोचिए आप घर में बैठे हैं…टीवी देख रहे हैं, लैपटॉप पर काम कर रहे हैं या फिर रेडियो पर गानें सुन रहे हैं और उसी दौरान उसमें ब्लास्ट हो जाए. आप अभी सोच ही रहे हैं कि ये कैसे हुआ…इसी बीच आपको लगातार धमाके की आवाज सुनाई देने लगती है…सभी के टीवी ब्लास्ट होने लगते हैं…लैपटॉप फटने लगते हैं…वॉकी टॉकी में धमाका होने लगता है…पेजर ब्लास्ट होने लगते हैं…इन सब पर मंथन चल ही रहा होता है कि आप पर हवाई हमला हो जाता है और आपके 1000 से ज्यादा रॉकेट लॉन्चर बैरल तबाह कर दिए जाते हैं.
हिजबुल्लाह के साथ इजरायल ने ऐसा ही किया है…इजरायल ने बता दिया कि वह हिजबुल्लाह के कम्युनिकेशन नेटवर्क में घुस सकता है और जब चाहे उसे बर्बाद कर सकता है. लेकिन क्यों? इजरायल की लड़ाई तो हमास और फिलिस्तीन से चल रही थी…फिर एकाएक इजरायल ने लेबनान समर्थित हिजबुल्लाह को निशाने पर क्यों लिया? इजरायल ने सीधे तौर पर हिजबुल्लाह से लड़ाई क्यों मोल ले ली? इजरायल ने पेजर अटैक और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में ब्लास्ट कैसे किया? हमास को बर्बाद करने की चाह रखने वाला इजरायल हिजबुल्लाह पर क्यों टूट पड़ा? क्या 24 साल पुरानी लड़ाई का बदला लेगा इजरायल?
लेबनान पर क्यों टूट पड़ा इजरायल?
आपने राजकुमार का वो डायलॉग सुना होगा “जानी…हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, पर बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी और वह वक्त भी हमारा होगा.” राजकुमार का ये मशहूर डायलॉग मौजूदा समय में इजरायल पर काफी सटीक बैठता है. हिजबुल्लाह के आंतरिक सिस्टम पर अटैक की कहानी को समझने के लिए हमें आज से करीब 11 महीने पीछे चलना होगा…दिन था 7 अक्टूबर 2023 का. हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया और सैकड़ों इजरायली मारे गए. इजरायल अभी संभला भी नहीं था कि दूसरी ओर से हिजबुल्लाह ने हमास के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए इजरायल पर आक्रमण कर दिया. यानी एक ही दिन में 2 फ्रंट पर इजरायल की लड़ाई शुरु हो गई.
उस वक्त इजरायल ने हमास पर अपना ज्यादा ध्यान केंद्रित किया और हिजबुल्लाह को उलझाए रखा. अब इजरायल फिलिस्तीन के काफी अंदर तक घुस चुका है. हमास को काफी हद तक बर्बाद कर चुका है. स्थिति ऐसी हो गई है कि हमास को फिर से पनपने में दशकों लग जाएंगे लेकिन अभी तक युद्ध विराम हुआ नहीं है. इजरायल के काफी नागरिक अभी भी हमास के कब्जे में हैं और उन्हें छोड़ने के बदले हमास अपने कैदियों की रिहाई चाहता है.
जंग के बीच पिछले साल नवंबर में इजरायल और हमास में एक डील हुई थी. इसके तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे की कैद में मौजूद बंधकों को रिहा किया था. ध्यान देने वाली बात है कि हमास पर इजरायल की ओर से किए गए जवाबी हमले में अभी तक 40 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी नागरिक भी मारे जा चुके हैं..फिलिस्तीन में काफी अंदर तक इजरायल कब्जा जमा चुका है. जल्द ही इन दोनों के बीच एक बड़ी डील होने वाली है. रिपोर्ट्स की मानें तो इजरायल की ओर से हमास को शांति प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है.
ऐसे में अब दूसरे दुश्मन से निपटने की बारी थी, जिसने हमास के साथ ही दूसरी छोर से इजरायल पर हमला बोला था…अब बारी थी हिजबुल्लाह की. ऐसे में इजरायल ने पूरी तरह से अपना ध्यान हिजबुल्लाह पर केंद्रित कर दिया. पहले पेजर अटैक से इजरायल ने हिजबुल्लाह के कम्युनिकेशन सिस्टम को ध्वस्त किया..अभी हिजबुल्लाह कुछ समझ ही पाता उससे पहले ही वॉकी-टॉकी, टीवी, लैपटॉप और तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में हुए धड़ाधड़ अटैक से लेबनान में कोहराम मच गया. हिजबुल्लाह की कमर टूट गई और उसके बाद हिजबुल्लाह कमांडर नसरुल्लाह ने इजरायल को अंजाम भुगतने की चेतावनी तक दे डाली है.
पेजर और इलेक्ट्रॉनिकल डिवाइसों में कैसे हुआ ब्लास्ट?
हिजबुल्लाह पर इजरायल के इस आंतरिक पेजर और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में अटैक से कम से कम 32 लोगों की मौत हुई है, जबकि 4500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. दरअसल, पेजर को बीपर के नाम से भी जाना जाता है. यह एक छोटा, पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होता है जिसे छोटे मैसेज या अलर्ट प्राप्त करने और कुछ मामलों में मैसेज भेजने के लिए डिजाइन किया गया है. डिवाइस के मूल का काम मैसेज प्राप्त करना और भेजना है.
मीडिया रिपोर्ट्स में यह बताया जा रहा है कि फोन ट्रैक होने के खतरे के मद्देनजर जब से हिजबुल्लाह ने पेजर के उपयोग की बात कही थी, उसी दौरान इजरायल ने इजरायल ने एक शेल कंपनी स्थापित करने की योजना बनाई. पेजर बनाने वाले लोगों की वास्तविक पहचान को छिपाने के लिए कम से कम दो अन्य फर्जी कंपनियां भी बनाई गईं. उसी कंपनी से हिजबुल्लाह को पेजर सप्लाई हुआ और इसी बीच इजरायल ने वह कर दिखाया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है.
लेबनान का फिलिस्तीन कनेक्शन
आपको बता दें कि लेबनान, इजरायल की सीमा से सटा हुआ एक देश है, जो 1943 में आजाद हुआ. वहां ईसाई, सुन्नी मुसलमान, शिया मुसलमान, द्रुज़ और अन्य तबक़ों का एक मिश्रण है और वह क्षेत्र के सताए हुए अल्पसंख्यकों के लिए एक शरणस्थल रहा है. इसी के आधार पर लेबनान का संविधान बना और इस राष्ट्र ने इकबालिया प्रणाली अपनाया. इकबालिया प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद के अध्यक्ष के पद क्रमशः मैरोनाइट कैथोलिक ईसाई, सुन्नी मुस्लिम और शिया मुस्लिम के लिए आरक्षित हैं.
इस कहानी में मोड़ तब आता है जब इजरायल अपनी सीमाएं फैलाने की कोशिश में लगा था. दुनिया भर से यहूदी फिलिस्तीन में आकर बसने लगे थे और अपने पैर फैलाने लगे थे. इसके बाद 1948 में अमेरिका ने इजरायल को मान्यता दी. उससे पहले यह क्षेत्र ब्रिटेश के नियंत्रण में था. उसके बाद 5 अरब देशों ने मिलकर इजरायल पर हमला किया लेकिन उसी बीच इजरायल ने अरबों को जवाब देते हुए अपने अगल बगल के फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जा जमाना शुरु कर दिया. इस दौरान जमकर रक्तपात हुआ और बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी नागरिक फिलिस्तीन छोड़कर लेबनान पहुंच गए और लेबनान को ही अपना बसेरा बना लिया. अब लेबनान में स्थिति बिगड़ने लगी..जनसांख्यिकी में परिवर्तन आने लगा और स्थिति ऐसी बनी की 1975 के करीब लेबनान में गृह युद्ध छिड़ गया.
यह देश 15 सालों तक गृहयुद्ध में झुलसता रहा. इसी बीच 1982 में इजरायल ने लेबनान के बेरुत पर हमला कर दिया. उसी साल अब्बास अल-मुसावी और नसरुल्लाह ने मिलकर हिजबुल्लाह की स्थापना की. गृह युद्ध के दौरान इजरायल ने लेबनान में अपनी बढ़त बना ली थी और दक्षिणी लेबनान के कई हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था. 1990 में जब 15 साल चला लेबनानी गृहयुद्ध खत्म हुआ तो हिजबुल्लाह इकलौता गुट था जिसने अपने हथियार बरकरार रखे थे. 1992 में, अब्बास अल-मुसावी की मृत्यु के बाद, सिर्फ 32 साल की उम्र में हसन नसरल्लाह को हिजबुल्लाह का महासचिव चुना गया. मुसावी इजरायल के हवाई हमले में मारा गया था.
24 साल पुरानी लड़ाई का बदला?
फिर क्या था…पावर हाथ में आते ही नसरुल्लाह ने इजरायल को परेशान करना शुरु किया. मई 2000 तक हिजबुल्लाह ने इजरायल पर इतने हमले किए कि इजरायल को दक्षिणी लेबनान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना पड़ गया और दक्षिणी लेबनान पर इजरायल का 22 साल से चला आ रहा कब्जा खत्म हो गया. यह पहली बार था जब इजरायल के सैनिक पीछे हटे थे. इजरायली कब्जा खत्म होने के बाद लेबनान और पूरे अरब वर्ल्ड में नसरुल्लाह को ‘कल्ट फिगर’ का दर्जा मिला.
2006 में, जब संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से इजरायल के साथ संघर्ष-विराम की घोषणा हुई तो नसरल्लाह की व्यक्तिगत लोकप्रियता चरम पर थी. अरब जगत में समर्थकों ने नसरल्लाह की तस्वीर वाले पोस्टर बांटे थे. नसरल्लाह के कार्यकाल में, हिजबुल्लाह एक गुरिल्ला गुट से लेबनान का सबसे ताकतवर संगठन बन गया है. मौजूदा समय में लेबनान के राजनीतिक और सैन्य संगठनों पर भी हिजबुल्लाह का पूरा नियंत्रण है. हिजबुल्लाह एक शिया संगठन है, जिसका नियंत्रण लेबनान पर है…जबकि हमास एक सुन्नी संगठन है, जिसका नियंत्रण फिलिस्तीन पर है…लेकिन शिया-सुन्नी की लड़ाई के बीच भी ये दोनों एकदूसरे के समर्थक हैं.
दुनिया में कोई भी नहीं है सुरक्षित
हिजबुल्लाह के केस में भी कहानी हमास वाली ही है…पहले हमास ने हमला किया, जिसके बाद इजरायल ने उसे तबाह कर दिया…इधर इजरायल के दूसरे हिस्से पर हमला पहले हिजबुल्लाह ने किया…जिसे अब बर्बाद करने पर इजरायल तुला हुआ है..हिज़्बुल्लाह के कम्युनिकेशन नेटवर्क पर हमला करने से इसराइल की रणनीतिक तौर पर जीत हुई है. ये हमला कुछ ऐसा था, जैसा आप किसी सस्पेंस थ्रिलर किताब में पढ़ते हैं या थ्रिलर फ़िल्म में देखते हैं.
हालांकि, इस हमले से पूरे अरब जगत ने स्थिति काफी गंभीर हो गई है..कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि 1948 की तरह एक बार फिर से अरब जगत मिलकर इजरायल पर हमला न कर दे…लेकिन उस समय में भी इजरायल ने अकेले ही 5 अरब देशों को मात दे दी थी और काफी बड़े क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया था….ऐसे में अगर मौजूदा समय में सब मिलकर भी इजरायल पर हमला करते हैं तो इजरायल किस हद तक सेंधमारी कर सकता है, इसका प्रमाण उसने हाल ही में लेबनान में दे दिया है.
इस हमले से दूसरा खतरा यह पैदा हो गया है कि आज के समय में दुनिया का कोई भी देश खुद को पूर्ण रूप से सुरक्षित होने का टैग नहीं दे सकता..भारत में तो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बड़ी मात्रा में दूसरे देशों से आयात होते हैं…कई चीनी कंपनियों के मोबाइल फोन तो भारत के घर घर में यूज हो रहे हैं..ऐसे में कब क्या हो जाए..इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में उप सरपंच की हत्या के सिलसिले में हिरासत में लिए गए 27 वर्षीय आरोपी प्रशांत साहू की अज्ञात कारणों से हुई मौत की आपराधिक जांच शुरू कर दी गई है। यह जानकारी गुरुवार को पुलिस अधिकारियों ने दी। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि घटना के बाद कबीरधाम जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विकास कुमार (प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी) को निलंबित कर दिया गया है। वहीं, प्रशांत साहू की मौत को लेकर अब राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने जेल में बंद हत्या के संदिग्ध की मौत पर चिंता व्यक्त की है। इस बीच, भाजपा नेता की हत्या के संदिग्ध प्रशांत साहू का गुरुवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। प्रशांत साहू के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत कई कांग्रेस नेता उनके गांव पहुंचे। इस दौरान उन्होंने परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। भूपेश बघेल के मुताबिक इस स्थिति के लिए प्रशासन और पुलिस जिम्मेदार है। उन्होंने अपराधियों को कड़ी सजा देने की बात कही है।
पुलिस के अनुसार, रविवार को हिरासत में लिए गए 69 लोगों में साहू भी शामिल था। खबरों की मानें तो रेंगाखार पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में आने वाले लोहारीडीह गांव में उप सरपंच रघुनाथ साहू के घर में आग लगाकर उसकी हत्या करने के आरोप में साहू को हिरासत में लिया गया था। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, प्रारंभिक जांच से पता चला है कि रघुनाथ साहू पर इसलिए हमला किया गया कि क्योंकि किसी को लगा कि उन्होंने एक अन्य ग्रामीण कचरू साहू की हत्या कर दी है। कचरू साहू का शव पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के बीजाटोला गांव में एक पेड़ से लटका मिला।
ग्रामीणों ने उप सरपंच के घर को जलाया
पड़ोसी मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के बीजाटोला गांव में कचरू साहू का शव पेड़ से लटकता हुआ मिला। इस घटना के बाद भीड़ ने रघुनाथ साहू के घर पर धावा बोल दिया और घर में आग लगा दी। पुलिस रघुनाथ साहू के तीन घायल परिजनों को बचाने पहुंची, जिसमें उनकी पत्नी भी शामिल थीं, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया। आगजनी की घटना के बाद गांव में पहुंची पुलिस पर भी भीड़ ने हमला कर दिया। कबीरधाम जिले के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव समेत कई पुलिस अधिकारी भी घायल हुए। इस घटना के बाद पुलिस ने लोहारीडीह गांव के 40 ग्रामीणों को हिरासत में ले लिया। रविवार को प्रशांत साहू और अन्य ग्रामीणों को हिरासत में लिया गया। हिरासत में रहने के दौरान उसकी तबीयत खराब हो गई, जिसके चलते उसे अस्पताल लाया गया।
शराब पीने का आदी था साहू
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि साहू को दौरे पड़ते थे और वह शराब का आदी था। अधिकारियों ने बताया, “मंगलवार को साहू को फिर से जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया और उपचार के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। अगले दिन उसकी हालत बिगड़ गई।” उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मौत का सही कारण पता चलेगा। घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
एक अधिकारी निलंबित
पुलिस सूत्रों के अनुसार, कबीरधाम जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विकास कुमार को घटना के बाद निलंबित कर दिया गया है। गृह मंत्री विजय शर्मा ने उसी समय घोषणा की कि सरकार पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देगी।
परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा
शर्मा ने कहा, “मुख्यमंत्री ने प्रशांत साहू के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की भी घोषणा की है। इसके अलावा, इसी हत्या के मामले में गिरफ्तार किए गए उनके परिवार के सदस्यों को भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी।”
कांग्रेस ने साधा निशाना
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने हिरासत में हुई मौत से जुड़ी स्थिति की जांच के लिए एक टीम गठित की है। कांग्रेस विधायक और पार्टी की जांच टीम के संयोजक दलेश्वर साहू ने बुधवार रात मीडिया को दिए बयान में दावा किया, “प्रशांत साहू के शरीर पर चोट के निशान देखे गए हैं, जिससे साफ पता चलता है कि पुलिसकर्मियों ने उनकी बेरहमी से पिटाई की है। प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि पुलिस की प्रताड़ना के कारण उनकी मौत हुई है।”
भूपेश बघेल ने कहा- शरीर में चोट के निशान
इस घटना को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी बयान आया है। भूपेश बघेल के अनुसार प्रशांत के शरीर पर चोट के निशान हैं, जो इस बात के सबूत हैं कि पुलिस ने उसे बुरी तरह पीटा है। उसकी मां और भाई समेत कई स्थानीय लोगों को पुलिस ने प्रताड़ित किया है। बघेल ने आगे कहा कि निर्दोष लोगों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करने के बजाय अपराधियों को पकड़ना पुलिस की जिम्मेदारी है। परिवार से मिलने के बाद भूपेश बघेल ने उन्हें सांत्वना दी। बघेल ने बताया कि मैंने स्थानीय लोगों से बात की। सभी इस बात पर सहमत हैं कि पुलिस की बर्बरता खत्म होनी चाहिए।
प्रशांत के पूरे शरीर में चोटों के निशान हैं, उसके शरीर के जख्म इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पुलिस ने बेहद बर्बरता से मारा है.
उसके भाई-मां सहित बहुत से ग्रामीणों के साथ पुलिस ने बेहद अत्याचार किया है.
भूपेश बघेल ने आगे कहा, ‘छत्तीसगढ़ में ऐसी पुलिस बर्बरता कभी नहीं देखी गई। प्रशांत साहू की पिटाई से हत्या के बाद, यह बात सामने आई है कि उनकी मां को भी पुलिस ने प्रताड़ित किया, जिससे वह चलने में असमर्थ हो गईं और उनके शरीर पर निशान पड़ गए। भले ही उन्हें खून की उल्टी हो रही हो, लेकिन फिर भी उन्हें जेल में काम करना पड़ रहा है।’
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता गोविंदा भले ही अब सुर्खियों में नहीं रहते हों, लेकिन आज कई अभिनेता उनकी तरह मशहूर होने की ख्वाहिश रखते हैं। 1990 का दशक गोविंदा के लिए काफी लकी रहा। इस दौरान जब उनकी फिल्में बड़े पर्दे पर रिलीज होती थीं तो अक्सर बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर साबित होती थीं। इसी बीच 1993 में उनकी कॉमेडी फिल्म ‘आंखें’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई। आमिर खान ने इस फिल्म को ‘वल्गर’ कहकर इसमें मुख्य भूमिका निभाने से इनकार कर दिया। इसके बाद ये फिल्म गोविंदा को ऑफर की गई। इस फिल्म से किसी को कुछ खास उम्मीदें नहीं थीं, लेकिन जब ये फिल्म रिलीज हुई तो ये उस समय की ब्लॉकबस्टर फिल्म बन गई। और ये कहना गलत नहीं होगा कि इसी फिल्म ने गोविंदा के करियर को और भी ज्यादा शिखर पर पहुंचा दिया।
आमिर खान को यह फिल्म बिल्कुल पसंद नहीं आई और इस फिल्म के बारे में मीडिया से बात करते हुए आमिर ने कहा, ‘डेविड धवन मेरे अच्छे दोस्त हैं, लेकिन सच कहूं तो मुझे यह फिल्म पसंद नहीं आई। शायद डेविड को यह बात पता है। यह फिल्म इतनी बड़ी हिट कैसे हो गई, ये तो मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे यह फिल्म काफी क्रूड लगी। साथ ही, इसके कुछ सीन भी वल्गर हैं।‘
फिल्म ने रिलीज होते ही बनाया रिकार्ड
गोविंदा की इस कम बजट वाली फिल्म ने सिनेमाघरों में रिलीज होने के बाद खूब धमाल मचाया था। विकिपीडिया के आंकड़ों के मुताबिक ‘आंखें’ 1993 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था। डेविड धवन ने इस कॉमेडी फिल्म का निर्देशन किया था, जिसे अनीस बज्मी ने लिखा था। इस फिल्म में गोविंदा के साथ चंकी पांडे, रितु शिवपुरी, रागेश्वरी, शिल्पा शिरोडकर, बिंदु, हरीश पटेल, शक्ति कपूर, महावीर शाह और गुलशन ग्रोवर ने भी अहम भूमिका निभाई थी।
फिल्म बनाने में 2 करोड़ रुपये से भी कम खर्च हुआ
बॉक्स ऑफिस इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, इस फिल्म के निर्माताओं ने मुश्किल से 1.85 करोड़ रुपये का निवेश किया था, लेकिन जब यह सिनेमाघरों में रिलीज हुई, तो इसने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया। इस फिल्म से होने वाला मुनाफा बाकी सभी फिल्मों से कहीं ज़्यादा था। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म ने कुल 24.35 करोड़ रुपये कमाए।
फिल्म मे गोविंदा का डबल रोल
इस फिल्म में गोविंदा और चंकी पांडे का डबल रोल था। फिल्म की कहानी दो सुस्त भाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्हें उनके आलस्य के कारण घर से निकाल दिया जाता है। खबरों की मानें तो ‘आंखें’ ने गोविंदा के करियर को उड़ान देने में वाकई मदद की। ‘आँखें’ की लोकप्रियता के बाद, उस समय संघर्ष कर रहे गोविंदा ने राजा बाबू, कुली नंबर 1 और साजन चले ससुराल सहित कई कॉमिक ब्लॉकबस्टर फ़िल्में दीं।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तिरुपति मंदिर के प्रसाद पर ऐसा दावा किया है जिसे जानकर हर कोई हैरान है। उन्होंने कहा है कि पिछली वाईएसआरसीपी सरकार ने तिरुमाला में तिरुपति लड्डू प्रसाद तैयार करने के लिए घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया था। दरअसल, तिरुपति में लड्डू को प्रसाद के तौर पर परोसा जाता है। वहीं, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने लड्डू में मांस और वसा पाए जाने की पुष्टि की है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बोर्ड के निष्कर्ष में कहा गया है कि इसमें गोमांस, मछली का तेल और वसा का इस्तेमाल किया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन लड्डुओं को न केवल भक्तों में प्रसाद के तौर पर बांटा गया, बल्कि इन लड्डुओं को भगवान को भी प्रसाद के तौर पर चढ़ाया गया। मंदिर का संचालन तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) करता है।
सूत्र का दावा है कि तिरुपति मंदिर से लड्डू और अन्नदानम के नमूनों के विश्लेषण पर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की रिपोर्ट में चौंकाने वाली खोज की गई है। हालांकि, तिरुपति मंदिर में प्रसाद के रूप में परोसे जाने वाले लड्डू ने आंध्र प्रदेश में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिर में आने वाले अनगिनत भक्तों को यह प्रसाद दिया जाता है। सीएम नायडू के अनुसार, तिरुमाला के लड्डू भी घटिया सामग्री से बने थे।
The lord venkateswara swamy temple at Tirumala is our most sacred temple. I am shocked to learn that the Jagan Admn used animal fat instead of ghee in the #tirupati Prasadam. Shame on them for insulting the religious sentiments of crores of devotees pic.twitter.com/59ahaAZcVB
अमरावती में एनडीए विधायक दल की बैठक को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी कहा था कि अब लड्डू बनाने के लिए शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जा रहा है और मंदिर में हर चीज को सैनिटाइज किया गया है। इससे गुणवत्ता में सुधार हुआ है। आंध्र प्रदेश के आईटी मंत्री नारा लोकेश ने चंद्रबाबू नायडू की एक्स वाली टिप्पणी को शेयर करते हुए इस मुद्दे पर जगन मोहन रेड्डी पर निशाना साधा और कहा कि वाईएसआरसीपी सरकार भक्तों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं कर सकती।
नारा लोकेश ने लिखा, ‘तिरुमाला में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर हमारा सबसे पवित्र मंदिर है। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जगन प्रशासन ने तिरुपति प्रसादम में घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया। करोड़ों भक्तों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान न करने के लिए जगन और वाईएसआरसीपी सरकार पर शर्म आती है।’
The lord venkateswara swamy temple at Tirumala is our most sacred temple. I am shocked to learn that the @ysjagan administration used animal fat instead of ghee in the tirupati Prasadam. Shame on @ysjagan and the @ysrcparty government that couldn’t respect the religious… pic.twitter.com/UDFC2WsoLP
वाईएसआरसीपी ने नायडू द्वारा लगाए गए इन आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “चंद्रबाबू नायडू ने दिव्य मंदिर तिरुमाला की पवित्रता और करोड़ों हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचाकर घोर पाप किया है। तिरुमाला प्रसादम पर नायडू की टिप्पणी वास्तव में घृणित है। कोई भी इंसान ऐसे शब्द नहीं बोलेगा या ऐसे आरोप नहीं लगाएगा। इससे एक बार फिर साबित हो गया है कि वह राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।”
टीटीडी के पूर्व अध्यक्ष ने कही ये बात
वाईएसआरसीपी के राज्यसभा सदस्य और पूर्व टीटीडी (तिरुमाला मंदिर का प्रबंधन करने वाला बोर्ड) के अध्यक्ष ने भक्तों की आस्था को मजबूत करने के लिए कहा, “मैं और मेरा परिवार तिरुमाला प्रसादम के मामले में भगवान को साक्षी मानकर शपथ लेने के लिए तैयार हैं। लेकिन क्या नायडू भी अपने परिवार के साथ शपथ लेने के लिए तैयार हैं?”
YSRCP शासन में प्रसादम पर उठे हैं सवाल
वाईएसआरसीपी सरकार के दौरान, प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम आलोचना और विवाद का विषय था। टीडीपी ने अक्सर दावा किया कि उत्पाद की गुणवत्ता से गंभीर समझौता किया गया है। डेयरी विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद, टीटीडी ने हाल ही में एक आंतरिक मूल्यांकन किया और पाया कि “श्रीवारी लड्डू” का स्वाद इस्तेमाल किए गए घी की गुणवत्ता से काफी प्रभावित होता है।
टीटीडी के पास नहीं थी प्रयोगशालाएं
टीटीडी के पास पर्याप्त प्रयोगशालाओं की कमी थी और हाल के वर्षों में, वाणिज्यिक प्रयोगशालाएं पनीर की गुणवत्ता का पर्याप्त रूप से आकलन करने में विफल रहीं। टीटीडी ने हाल ही में एक नई संवेदी धारणा प्रयोगशाला की स्थापना की है और घी की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए मैसूर में एक शीर्ष प्रशिक्षण सुविधा में कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।
भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है तिरुपति मंदिर
आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में श्री वेंकटेश्वर मंदिर तिरुमाला पहाड़ी के ऊपर स्थित है। ये तिरुपति बाला जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के देवता भगवान वेंकटेश्वर हैं। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर ने मानवता को कलियुग की पीड़ा और कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने के लिए मानव रूप धारण किया था।
सनातन धर्म में सिंदूर को बहुत महत्व दिया गया है। और इस महत्व को सभी ने स्वीकार किया है, फिर चाहे वो भगवान हनुमान हों या विवाहित महिलाएं। भारतीय संस्कृति में सिंदूर लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। सिंदूर का उल्लेख रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक मिलता है। हिंदू धर्म में भी विवाहित महिलाएं 16 तरह के श्रृंगार करती हैं, जिसमें सिंदूर का एक अहम महत्व है। शादी के समय दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। इसके बाद से महिला हमेशा अपनी मांग में सिंदूर लगाती है। सिंदूर वैवाहिक सुख की निशानी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सिंदूर के पीछे का इतिहास क्या है? और इसे इतना महत्व क्यों दिया जाता है? अगर नहीं, तो आज हम आपको सिंदूर से जुड़ी हर एक बात बताएंगे।
विवाहित महिलाओं द्वारा मांग में सिंदूर लगाना वैवाहिक सुख और विवाहित महिला होने का प्रतीक माना जाता है। विवाह के समय जब दूल्हा-दुल्हन के मांग में सिंदूर लगाया जाता है, तो विवाह संपन्न माना जाता है। इसके बाद से विवाहित महिला हमेशा अपने मांग में सिंदूर लगाकर रखती है।
सिंदूर से जुड़ी मान्यताएं
सिंदूर के महत्व के बारे में रामायण और महाभारत काल से कहानियाँ मिलती हैं। जब विवाहित महिलाएँ अपनी माँग में सिंदूर लगाती हैं, तो उनके पति की आयु लंबी होती है, उन्हें अकाल मृत्यु से बचाया जाता है, उन्हें कोई खतरा नहीं होता है और उनका विवाह मज़बूत और प्रेमपूर्ण बना रहता है। माना जाता है कि विवाहित महिलाएँ सिंदूर से पहचानी जाती हैं।
मां पार्वती का मिलता है आशीर्वाद
ऐसी मान्यता है कि सिंदूर का रंग लाल होता है, जो देवी पार्वती की ऊर्जा को दर्शाता है। यही वजह है कि सिंदूर लगाने से देवी पार्वती से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। सिंदूर देवी लक्ष्मी के प्रति सम्मान का प्रतीक है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, शादी के समय विवाहित महिलाओं को 7 बार सिंदूर लगाया जाता है, लेकिन उसके बाद ऐसा नहीं किया जाता है।
रामायण काल में भी सिंदूर लगाने का उल्लेख
सिंदूर लगाने का इतिहास बहुत पुराना है, जिसकी शुरुआत रामायण काल से होती है। एक दिन हनुमान जी माता सीता के पास आए, जब वह अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थीं। उन्होंने उनसे पूछा कि वह इस खास लाल रंग का इस्तेमाल क्यों कर रही हैं। तब माता सीता ने हनुमान जी को जवाब देते हुए कहा, “मैं अपनी मांग में सिंदूर इसलिए लगाती हूं, क्योंकि भगवान श्री राम मेरी मांग में सिंदूर देखकर बहुत खुश होते हैं।”
भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी को सिंदूर बहुत पसंद है उसका कारण है
जब भगवान राम माता सीता और लखन भईया सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे।
उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं। हनुमान जी ने उत्सुक हो माता… pic.twitter.com/7IfEDZK4Gs
आपको बता दें कि हनुमान जी ने सोचा कि अगर भगवान राम माता सीता की मांग में थोड़ा सा सिंदूर देखकर इतने खुश हैं, तो वे उनके पूरे शरीर पर सिंदूर देखकर बहुत खुश होंगे। आपको बता दें कि हनुमान जी के मन में यह विचार आया कि अगर माता सीता की मांग में थोड़ा सा भी लाल रंग है, तो भगवान राम उनके पूरे शरीर का रंग देखकर बहुत खुश होंगे। हनुमान जी पूरे शरीर पर सिंदूर लगाकर सम्मेलन में पहुंच गए। उस समय वहां मौजूद सभी लोग हनुमान जी को देखकर हंसने लगे। लेकिन इससे भगवान श्रीराम काफी खुश हुए। कहा जाता है कि तब भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया कि अब से हनुमान जी को सिंदूर लगाया जाएगा और यह प्रथा अब तक चलती आ रही है।
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‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता मे आने के बाद लोगों से किए गए कई वादों में से एक है। मोदी अब 2014 में किए गए अपने वादे को पूरा करने जा रहे हैं। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को आखिरकार बुधवार, 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। आम चुनावों से पहले ही संघीय सरकार ने इसके लिए मंच तैयार कर दिया था। वास्तविक कठिनाई इसके अमल को लेकर थी। । यदि यह निर्णय लागू किया जाता है, तो आने वाले वर्षों में कुछ विधानसभाओं का टर्म कम हो जाएगा तो कहीं टर्म समाप्त होने के बाद राट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है। प्रशासन इस क्षेत्र में एक उपाय पेश करके राजनीतिक रुख अपना सकता है। वहीं, सरकार शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक पेश कर राजनीतिक आकलन कर सकती है। हालांकि, सरकार ने संकेत दिया है कि कैबिनेट ने सिर्फ समिति की सिफारिश को ही स्वीकार किया है।
वन नेशन वन इलेक्शन की प्रक्रिया तय करने के लिए आठ लोगों का एक समूह बनाया गया था, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। कोविंद कमेटी (Ramnath Kovind Committee) का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। कोविंद कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने-माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, राजनीति विज्ञानी सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) संजय कोठारी समेत 8 सदस्य हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को समिति का विशेष सदस्य बनाया गया है। वहीं 14 मार्च को समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। बुधवार को मोदी कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी। समिति ने सिफारिश की है कि सभी विधानसभाएं 2029 तक चलती रहें। आईए अब आपको बताते हैं वन नेशन वन इलेक्शन कब लागू होगा और उन विधानसभाओं का क्या होगा जिनका कार्यकाल अभी पूरा नहीं हुआ है?
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है।
इतने बड़े देश में बार-बार चुनाव होना… देश के लिए, देश के विकास के लिए, देश के अर्थतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए इस देश में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ होना ही चाहिए।
कमेटी ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया। इनमें से 32 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया। वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया। जबकि 15 दल ऐसे भी थे, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 191 दिनों की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है।
कोविंद कमेटी ने इन देशों से लिया रेफरेंस
-एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए कई देशों के संविधान का विश्लेषण किया गया। समिति ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपींस, इंडोनेशिया की चुनाव प्रक्रिया का अध्ययन किया।
-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे। जबकि स्वीडन चुनाव प्रक्रिया के लिए आनुपातिक चुनाव प्रणाली अपनाता है।
-जर्मनी और जापान की बात करें तो यहां पहले पीएम का चयन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं।
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव एक साथ होता है।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
सबसे पहले यह जान लेते हैं कि आखिर वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव है क्या। एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। देश के इतिहास को भी देखे तो आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन साल 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई थी। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। यहीं से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे
एक-देश-एक-चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है की देश भर में हो रहे चुनावी खर्च में भारी कटौती देखी जाएगी। इसका उदाहरण आपको इससे मिल जायेगा कि 1951-52 में लोकसभा का पहला चुनाव हुआ था। इस चुनाव में 53 दलों ने भागीदारी ली थी, 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था और कुल खर्च लगभग 11 करोड़ रुपए आया था। अब बात करते हैं हाल ही में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव के बारे में। इसमें 610 राजनीतिक पार्टियां थी और लगभग 9000 उम्मीदवार। इस चुनाव की खर्च पर नजर डाले तो इसमें तकरीबन 60 हज़ार करोड़ रुपए का खर्च आया था। यहां तक की अभी तक कुछ राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी खर्चों की जानकारी भी नहीं दी है। दूसरी तरफ वन-नेशन-वन-इलेक्शन से प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर भार कम होगा, सरकार की नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा और यह भी सुनिश्चित होगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी गतिविधियों में फंसे रहने के बजाय विकास की गतिविधियों में लगेंगी।
कौन सी पार्टियां इसके समर्थन में?
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), चिराग पासवान की एलजेपी, नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी सभी ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है। इसके अलावा, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), असम गण परिषद और शिवसेना के शिंदे गुट ने भी एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है।
इन पार्टियों ने किया विरोध
कांग्रेस वन नेशन, वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी है। इसके अलावा, समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM) समेत समेत पंद्रह पार्टियों ने इसका विरोध किया। वन नेशन, वन इलेक्शन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत पंद्रह पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
One Nation – One Election केवल BJP का जुमला ‼️
चुनाव आयोग चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा पा रहा है। दिल्ली का विधानसभा चुनाव महाराष्ट्र के साथ कराने में चुनाव आयोग असमर्थ है, तो यह One Nation – One Election कैसे करा पाएंगे?
इन राज्यों की विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल
अब बात करते हैं की अगर वन नेशन वन इलेक्शन लागू होता है तो कौन-कौन से राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल कम हो सकता है? बता दें, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने कम हो जाएगा। गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 महीने कम हो जाएगा। असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी का मौजूदा कार्यकाल कम हो जाएगा।
मंगलवार को लेबनान में हज़ारों विस्फोटों के कारण काफ़ी मुश्किल दिन रहा। ये विस्फोट पेजर में हुए, जो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हैं। जिनका इस्तेमाल मैसेजिंग ट्रांज़ेक्शन में किया जाता है। लेबनान अभी इस धमाके से उबर भी नहीं पाया था कि अगले दिन वॉकी टॉकी और सोलर पैनल सिस्टम में हुए धमाकों से लोग सहम गए। ऐसा माना जाता है कि वॉकी-टॉकी हमला पेजर विस्फोट से भी बड़ा था, क्योंकि इससे कई घरों और कारों में आग लग गई थी। अब तक, इन विस्फोटों में कुल 32 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 4500 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं। घायलों में से ज़्यादातर हिज़्बुल्लाह से जुड़े थे, जो एक इस्लामिक आतंकवादी समूह है। हिज़्बुल्लाह के अनुसार, इज़राइल कथित तौर पर पेजर पर बमबारी कर रहा है। ऐसा आरोप है कि इज़राइल ने 2022 में ही ऑपरेशन लेबनान की योजना बनाई थी।
सीरिया और लेबनान मे धमाके के पीछे इज़राइल जिम्मेदार?
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक स्टोरी में दावा किया गया है कि पिछले दो दिनों में सीरिया और लेबनान के विभिन्न हिस्सों में सोलर पैनल, पेजर और वॉकी-टॉकी में हुए विस्फोटों के लिए इज़राइल जिम्मेदार है। रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व इज़राइली रक्षा और खुफिया अधिकारियों ने कहा कि इज़राइल को शुरू से ही यकीन था कि हिज़्बुल्लाह सेल फोन के बजाय पेजर का उपयोग करने पर जोर देता है। तथ्य यह है कि उसी हंगरी कंपनी ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह के लिए पेजर और वॉकी-टॉकी का उत्पादन किया था, जिससे इस दावे को बल मिला।
Explosion occurred during the funeral procession of Mahdi Ammar, the son of Lebanese MP Ali Ammar, in Sohmor, Lebanon. pic.twitter.com/VrSFS9YXJ7
हिज्बुल्लाह चीफ की हिदायत के बाद इजरायल ने की प्लानिंग
हिजबुल्लाह के मुखिया नसरुल्लाह लंबे समय से हिजबुल्लाह के आतंकवादियों द्वारा सेल फोन या इंटरनेट कॉलिंग के बजाय वॉकी-टॉकी और पेजर के इस्तेमाल की वकालत करते रहे हैं। जब उन्होंने 2022 में पहली बार सार्वजनिक रूप से पेजर के इस्तेमाल पर चर्चा की, तो इज़राइल ने ऑपरेशन लेबनान की योजना तैयार करना शुरू कर दिया। इस साल फरवरी में हिजबुल्लाह के आतंकवादियों और समर्थकों से बात करते हुए, नसरुल्लाह ने घोषणा की कि “अगर इज़राइल हाई-टेक हो जाता है, तो हम लो-की (Low Key) हो जाएंगे।”
उन्होंने दावा किया था कि इज़राइल हिजबुल्लाह के लड़ाकों के ठिकाने को ट्रैक करने के लिए मोबाइल नेटवर्क का उपयोग करता है। यदि वे इज़राइल के एजेंट हैं, तो आप एजेंट को अपने हाथों में पकड़ते हैं। आप, आपके पति या पत्नी और आपके बच्चे जो स्मार्टफोन पकड़े हुए हैं, वे केवल डिवाइस नहीं हैं; वे वास्तव में इज़राइल के लिए जासूस हैं। इन सेल फोन को दफना दें। उन्हें लोहे के बक्से में सुरक्षित रखें।
इजरायल ने 2022 में खड़ी कर दी थी शेल कंपनी
हिजबुल्लाह प्रमुख ने 2022 में ऑपरेशन लेबनान को अंजाम देने के लिए हंगरी के बुडापेस्ट में दो से तीन शेल कंपनियां बनाई थीं। इन शेल कंपनियों में से एक BAC कंसल्टिंग KFT थी। इस कंपनी ने बाद में ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी के साथ लॉन्ग टर्म पार्टनरशिप की और इस पार्टनरशिप के तहत पेजर और वॉकी टॉकी जैसे वायरलेस डिवाइस बनाने शुरू किए। रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल की योजना के तहत बनाई गई इस शेल कंपनी को अंतरराष्ट्रीय पेजर निर्माता के तौर पर पेश किया गया था। यह कंपनी ताइवान की गोल्ड अपोलो के ब्रांड नाम से पेजर और वॉकी टॉकी बनाती थी।
हंगरी के बुडापेस्ट में BAC Consulting KFT कंपनी का हेडक्वार्टर
इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी देने वाले तीन इज़रायली खुफिया कर्मियों के अनुसार, इज़रायल ने पेजर बनाने के उद्देश्य से दो से तीन शेल व्यवसाय स्थापित किए थे। अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए, BAC व्यापक अनुरोधों को स्वीकार करता था और उन्हें पूरा करता था। लेकिन इसका सारा ध्यान हिज़्बुल्लाह और उनके पेजर कमांड पर केंद्रित था। जांच के अनुसार, यह व्यवसाय विस्फोटक PETN के साथ बैटरियों को मिलाकर उन्हें पेजर में डालता था। मई 2022 में, इन पेजरों को शुरू में लेबनान भेजा गया था। हालांकि उस समय लेबनान को कम पेजर भेजे गए थे, लेकिन जब नसरुल्लाह ने पहली बार हिज़्बुल्लाह लड़ाकों पर इज़रायली सेना के हमलों में तेज़ी के जवाब में इनका उपयोग करने की चर्चा की, तो निगम ने इन पेजरों के निर्माण में तेज़ी ला दी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिजबुल्लाह के लिए ये पेजर और वॉकी-टॉकी उनकी सुरक्षा के साधन थे, लेकिन इजरायली खुफिया अधिकारी इन उपकरणों को बटन कहते हैं, जिन्हें ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए सही समय पर दबाया जा सकता है और इस सप्ताह सही समय आ गया।
कंपनी ने दावों को नकारा, हिजबुल्लाह ने कहा- बदला लेंगे
ताइवान की जिस कंपनी से ये पेजर मंगवाए जाने की बात कही गई थी, उसने इन सभी दावों को नकार दिया है। ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी ने कहा है कि हिजबुल्लाह तक जो पेजर पहुंचे, वे उसने नहीं बनाए। गोल्ड अपोलो ने कहा है कि पेजर एक यूरोपीय कंपनी बनाती है और उसने गोल्ड अपोलो से लाइसेंस लिया है। इसीलिए जिन पेजरों में विस्फोट हुआ, उन पर गोल्ड अपोलो का स्टीकर लगा था और डिजाइन भी गोल्ड अपोलो के पेजरों जैसा ही था। हिजबुल्लाह ने इस घटना के बाद कहा है कि वह इसका बदला लेगा और इसके लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है।
हाल ही में अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से आतिशी को दिल्ली का नया सीएम बनाया गया. अब इसके साथ ही आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होने जा रही हैं, जो कि कुछ समय पहले दिल्ली सरकार में शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, संस्कृति, वित्त और पर्यटन मंत्री का पद संभाल रही थी. आतिशी आम आदमी पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति की सदस्य भी हैं. जब से इन्हें सीएम बनाने का फैसला लिया गया है, उसके बाद से ही इनकी पढ़ाई लिखाई को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. कुछ लोग इन्हें भारतीय राजनीति का सबसे पढ़ा लिखा नेता तक बता रहे हैं लेकिन सच्चाई क्या है? इस लेख में हम आपको आतिशी की शिक्षा के बारे में बताएंगे.
कौन हैं आतिशी?
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री बनी आतिशी मार्लेना पंजाबी और राजपूत परिवार से तलूक रखती है. उनके माता-पिता ने उनका नाम “मार्लेना” रखा था. उनकी पार्टी के अनुसार, यह नाम मार्क्स और लेनिन का एक संयोजन है. उन्होंने 2018 में राष्ट्रीय चुनावों से ठीक पहले अपने दैनिक जीवन में अपने उपनाम का उपयोग बंद करने और “आतिशी” को अपना नाम बनाने का फैसला किया. आतिशी का जन्म और पालन-पोषण दिल्ली में हुआ, जहां उन्होंने स्प्रिंगडेल्स स्कूल नई दिल्ली से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की इसके बाद 2001 में, उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने शेवनिंग छात्रवृत्ति प्राप्त की और 2003 में इतिहास में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की रोड्स स्कॉलर के रूप में, उन्होंने 2005 में ऑक्सफ़ोर्ड के मैग्डलेन कॉलेज में पढ़ाई की है.
बता दे, आतिशी का राजनीतिक जीवन काफी अच्छा रहा है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक टीचर के रूप में की थी. उसके बाद उन्होंने कई एनजीओ के लिए काम किया फिर 2013 में नौकरी छोड़ कर राजनीती में आने का फैसला किया और कई समाज के लिए कई कार्य किए है. इसके अलवा आतिशी के माता-पिता की बात करे तो दोनों ही दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफ्फेसर रह चुके है. खबरों की मानें तो कहा जाता है कि तृप्ता वाही और विजय सिंह दोनों वामपंथी झुकाव वाले थे.
आतिशी कितनी संपत्ति की मालकिन है
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली की नई cm आतिशी मार्लेना के पास कुल समाप्ति ना कोई गाड़ी है और ना ही बंगला, उनके पास कुल 1 करोड़ 41 लाख रुपये की संपत्ति है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा में तीन खाते हैं. इन खातों में आतिशी के नाम पर करीब 1 लाख 38 हजार रुपये की रकम जमा है. वहीं, एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक में आतिशी ने 39 लाख और 18 लाख रुपये की दो एफडी कराई हुई हैं.
दरअसल, आम आदमी पार्टी की ही राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने आतिशी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. स्वाति मालीवाल का कहना है कि “दिल्ली की मुख्यमंत्री एक ऐसी महिला को बनाया जा रहा है जिनके परिवार ने आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी से बचाने की लंबी लड़ाई लड़ी है. उनके माता पिता ने आतंकी अफजल गुरु को बचाने के लिए माननीय राष्ट्रपति को दया याचिकाऐं लिखी है. उनके हिसाब से अफजल गुरु निर्दोष था और उसको राजनीतिक साज़िश के तहत फँसाया गया था. वैसे तो आतिशी मार्लेना सिर्फ़ ‘Dummy CM’ है, फिर भी ये मुद्दा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. भगवान दिल्ली की रक्षा करे!” इसके अलवा स्वाति मालीवाल ने कहा कि दिल्ली की सांसद होने के नाते दिल्ली और देश के लिए आवाज उठाना मेरी ज़िम्मेदारी है. में सही गलत के लिए हमेशा बोलुगी स्वाति ने आगे कहा कि मेरे खिलाफ जो मर्ज़ी बोलो, पर आतंकी अफजल से रिश्तों पर जवाब देना होगा.
दिल्ली के लिए आज बहुत दुखद दिन है। आज दिल्ली की मुख्यमंत्री एक ऐसी महिला को बनाया जा रहा है जिनके परिवार ने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु को फांसी से बचाने की लंबी लड़ाई लड़ी।
उनके माता पिता ने आतंकी अफ़ज़ल गुरु को बचाने के लिए माननीय राष्ट्रपति को दया याचिकाऐं लिखी।
क्या बिहार के दबंगों को पुलिस प्रशासन का डर नहीं है? क्या बिहार की कानून व्यवस्था और पुलिस प्रशासन इतना कमजोर हो गया है कि एक पूरी बस्ती को आग के हवाले कर दिया जाए? दरअसल ये सारे सवाल बिहार के नवादा जिले में हुई हालिया घटना को लेकर उठ रहे हैं। जहां दबंगों का कहर महादलित टोले पर टूटा है। दबंगों ने पहले महादलित टोले पर फायरिंग कर दहशत फैलाई। उसके बाद टोले के 80 घरों को आग के हवाले कर दिया। घटना मुफस्सिल थाना इलाके की बताई जा रही है। घटना के बाद गुरुवार की सुबह का मंजर बिल्कुल भयावह था। घटना के बाद बड़ी संख्या में पुलिस बल घटनास्थल पर पहुंच कर गश्त कर रही है। घटना में कई जानवरों के जलकर मरने की खबर है। बिहार के नवादा में जमीन विवाद को लेकर दलितों के घर जलाए जाने पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा है।
लोगों के रहने और खाने का सारा सामान जल चुका है। देर रात से ही इस घटना के बाद इलाके में लगातार छापेमारी की जा रही है। इस मामले में अब तक ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। जानकारी के अनुसार पुलिस को एक खोखा भी मिला है। प्रशासनिक टीम इलाके के सभी पीड़ितों को सहायता प्रदान कर रही है। प्रशासन ने देर रात तक सभी के लिए भोजन और रहने की व्यवस्था की। हम अभी और जानकारी दे रहे हैं।
आग लगाने के पीछे का कारण!
इस वारदात को पास के गांव में रहने वाले दलित समुदाय के दबंगों ने अंजाम दिया है। घटना के दौरान फायरिंग करने के अलावा स्थानीय लोगों ने प्राणपुर गांव के मुनि पासवान और उसके साथियों पर घर में आग लगाने का आरोप लगाया है। पूरी कहानी का विषय जमीन विवाद है। कई सालों से दलित परिवार बिहार के कृष्णा नगर में सरकारी जमीन पर रहता था। इस जमीन पर विरोधी पक्ष ने भी दावा किया है। इस दौरान जमीन पर कब्जे की लड़ाई चल रही है और मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है। इसी दौरान यह घटना हुई। जिसमें जिला मजिस्ट्रेट आशुतोष कुमार वर्मा ने पुष्टि की है कि अब तक कुल 21 घर जले हैं। जबकि एसपी अभिनव धीमान ने शुरुआती दौर में कुल 10 लोगों की गिरफ्तारी की पुष्टि की है।
नीतीश के मंत्री ने कहा- नीतीश सरकार में दलित सुरक्षित
बिहार सरकार के मंत्री जनक चमार ने नवादा में हुई बड़ी त्रासदी पर टिप्पणी करते हुए कहा, “इस घटना के पीछे जो भी होगा उसके खिलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।” नवादा में हुई त्रासदी काफ़ी दुखद है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। इस पर इस सरकार के ज़िम्मेदार लोग मुक़दमा दायर करेंगे। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार बिहार के दलितों को पूरी सुरक्षा देती है। दलित समुदाय का नेतृत्व मौजूदा बिहार प्रशासन करेगा जो दबंगों के खिलाफ़ कार्रवाई करेगा।
दर्जनों मवेशी भी जले
गांव वालों ने बताया कि गांव में बहुत सारे लोग आ गए हैं और भू-माफिया दलितों को उनकी मर्जी के खिलाफ़ ज़मीन बेचने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इस ज़मीन को लेकर कई सालों से विवाद चल रहा था। अचानक रात के समय गुंडों का एक झुंड गांव में आ धमका और हवा में गोलियाँ चलाने लगा, जिससे पूरे इलाके में दहशत फैल गई। इसके बाद दलितों की बस्ती में आग लगा दी गई, जिससे 22 से ज़्यादा घर, कुछ मवेशी और अनाज जलकर राख हो गए।
अधिकारी कर रहे कैंप
घटना की जानकारी मिलते ही नवादा सदर अंचल के थानाध्यक्ष विकास कुमार पुलिस बल के साथ वहां पहुंचे। वहां बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी तैनात थे। मामले की हर बारीकी की जांच की गई। बताया जाता है कि इलाके के सभी कानून प्रवर्तन अधिकारी वहां पहुंचकर अपना कैंप जमा चुके हैं।
नवादा मामले में तेजस्वी यादव का बयान
नवादा कांड को लेकर आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने बयान जारी करते हुए कहा, ‘आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी, बिहार में आपकी डबल इंजन पॉवर्ड सरकार में दलितों के घर जला दिए गए है। यह भारत देश की ही घटना है। कृपया इस मंगलराज पर दो शब्द तो कह दिजीए कि यह सब प्रभु की मर्जी से हो रहा है इसपर NDA के बड़बोले शक्तिशाली नेताओं का कोई वश नहीं है। यह भी बता दिजीए कि बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी के मुख्यमंत्री ने महीनों से बोलना बंद कर रखा है। वो ना मीडिया से बात करते है और ना ही पब्लिक से? वो जो भी बोलते है वो अधिकारियों का ही लिखा हुआ बोलते है क्योंकि जब वह स्वयं का बोलते है तो कहीं से कहीं और कुछ से कुछ बोलने लग जाते है शायद इसलिए ही यह पाबंदी लगायी गयी है। NDA को बिहार की नहीं बल्कि अपराधियों की चिंता है।’
आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी,
बिहार में आपकी डबल इंजन पॉवर्ड सरकार में दलितों के घर जला दिए गए है। यह भारत देश की ही घटना है। कृपया इस मंगलराज पर दो शब्द तो कह दिजीए कि यह सब प्रभु की मर्जी से हो रहा है इसपर NDA के बड़बोले शक्तिशाली नेताओं का कोई वश नहीं है।
बिहार के नवादा में जमीन विवाद को लेकर दलितों के घर जलाए जाने की घटना को लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मामले पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा,‘नवादा में महादलितों का पूरा टोला जला देना, 80 से ज्यादा परिवारों के घरों को नष्ट कर देना बिहार में बहुजनों के विरुद्ध अन्याय की डरावनी तस्वीर उजागर कर रहा है। अपना घर-संपत्ति खो चुके इन दलित परिवारों की चीत्कार और भयंकर गोलीबारी की गूंज से वंचित समाज में मचा आतंक भी बिहार की सोई हुई सरकार को जगाने में कामयाब नहीं हो पाए।भाजपा और NDA के सहयोगी दलों के नेतृत्व में ऐसे अराजक तत्व शरण पाते हैं. भारत के बहुजनों को डराते हैं, दबाते हैं, ताकि वो अपने सामाजिक और संवैधानिक अधिकार भी न मांग पाएं। और, प्रधानमंत्री का मौन इस बड़े षडयंत्र पर स्वीकृति की मोहर है। बिहार सरकार और राज्य पुलिस को इस शर्मनाक अपराध के सभी दोषियों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई कर, और पीड़ित परिवारों का पुनर्वास करा कर उन्हें पूर्ण न्याय दिलाना चाहिए।‘
नवादा में महादलितों का पूरा टोला जला देना, 80 से ज़्यादा परिवारों के घरों को नष्ट कर देना बिहार में बहुजनों के विरुद्ध अन्याय की डरावनी तस्वीर उजागर कर रहा है।
अपना घर-संपत्ति खो चुके इन दलित परिवारों की चीत्कार और भयंकर गोलीबारी की गूंज से वंचित समाज में मचा आतंक भी बिहार की…
एक्स पर अपनी पोस्ट में प्रियंका गांधी कहा,’नवादा, बिहार में महादलितों के 80 से ज्यादा घरों को जला देने की घटना बेहद खौफनाक और निंदनीय है। दर्जनों राउंड फायरिंग करते हुए इतने बड़े पैमाने पर आतंक मचाकर लोगों को बेघर कर देना यह दिखाता है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। आम ग्रामीण-गरीब असुरक्षा और खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं। मेरी राज्य सरकार से मांग है कि ऐसा अन्याय करने वाले दबंगों पर सख्त कार्रवाई हो और सभी पीड़ितों का समुचित पुनर्वास किया जाए।’
नवादा, बिहार में महादलितों के 80 से ज्यादा घरों को जला देने की घटना बेहद खौफनाक और निंदनीय है। दर्जनों राउंड फायरिंग करते हुए इतने बड़े पैमाने पर आतंक मचाकर लोगों को बेघर कर देना यह दिखाता है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। आम ग्रामीण-गरीब असुरक्षा और खौफ…
घटना को लेकर बीजेपी सांसद संजय जायसवाल का भी बयान सामने आया है। जायसवाल ने कहा,‘बिहार में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई होती है। राजद के शासन में सीएम कार्यालय से आदेश आता था कि किसको जलाना है और मारना है। आज बिहार में अपराधियों पर कार्रवाई होती है। ये एनडीए का सुशासन है, इसलिए अपराधी बचेंगे नहीं।’
कांग्रेस अध्यक्ष ने साधा निशाना
देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे लेकर बिहार सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “बिहार के नवादा में महादलित टोला पर दबंगों का आतंक एनडीए की डबल इंजन सरकार के जंगलराज का एक और प्रमाण है। बेहद निंदनीय है कि करीब 100 दलित घरों में आग लगाई गई, गोलीबारी की गई और रात के अंधेरे में गरीब परिवारों का सब कुछ छीन लिया गया। भाजपा और उसके सहयोगी दलों की दलितों-वंचितों के प्रति घोर उदासीनता,आपराधिक उपेक्षा व असामाजिक तत्वों को बढ़ावा अब चरम पर है। प्रधानमंत्री मोदी जी हमेशा की तरह मौन हैं, नीतीश जी सत्ता के लोभ में बेफिक्र हैं और एनडीए की सहयोगी पार्टियों के मुंह में दही जम गया है।”
मायावती और चंद्रशेखर ने भी उठाए सवाल
वहीं, बीएसपी चीफ मायावती ने ट्वीट करते हुए कहा, बिहार के नवादा में दबंगों द्वारा गरीब दलितों के काफी घरों को जलाकर राख करके उनका जीवन उजाड़ देने की घटना अति-दुखद व गंभीर। सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के साथ ही पीड़ितों को पुनः बसाने की व्यवस्था के लिए पूरी आर्थिक मदद भी करे। वहीं, दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने ट्वीट करते हुए कहा है कि बिहार के नवादा जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में कृष्णा नगर दलित बस्ती में 80 घरों में आगजनी व गोलीबारी की घटना जंगलराज का जीता-जागता उदाहरण है। हमारी प्रदेश की टीम ने आज घटनास्थल पर पहुँच कर पीड़ितों से मुलाकात करेगी। पीड़ितों में भय का माहौल है। मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमा से माँग करता हूँ कि मामले में संलिप्त अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार कर भय का ये माहौल शीघ्र खत्म करने, कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति के लिए व पीड़ितों की आर्थिक मदद का हर सम्भव प्रयास करे और साथ ही मामले की न्यायिक जाँच की भी माँग करता हूँ।
बिहार में पहले भी हो चुका दलितों पर ऐसा हमला
नवादा जिले की इस घटना ने दशकों पुराने जख्मों को फिर से हरा कर दिया है। बिहार में दलितों के खिलाफ ऐसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं। इनमें लक्ष्मणपुर बाथे कांड, शंकर बिगहा नरसंहार और बेलछी नरसंहार जैसी घटनाएं शामिल हैं। यह घटना दलितों के खिलाफ नरसंहार को उजागर करती है और बताती है कि बिहार में शुरू से ही दलितों के प्रति दमनकारी रवैया रहा है।
क्या था लक्ष्मणपुर बाथे कांड
1990 के दशक में लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड इन भीषण हत्याकांडों में से एक था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। 1 दिसंबर 1997 को अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे टोले में 58 दलितों की हत्या कर दी गई थी। कहा जाता है कि 58 लोगों को रणवीर सेना गिरोह ने गोली मार दी थी, जिसकी स्थापना उच्च जाति के लोगों ने की थी। मृतकों में 16 बच्चे और 27 महिलाएं थीं। 27 में से करीब दस गर्भवती भी थीं। हत्यारों ने यह खूनी खेल करीब तीन घंटे तक खेला।
शंकर बिगहा नरसंहार का था?
एक समय था जब बिहार में जातिगत नरसंहार चरम पर था। उस दौरान ऊंची जातियों और पिछड़ी जातियों के बीच खूनी नरसंहार होते थे। उसी दौरान बेलछी नरसंहार हुआ। खबरों की मानें तो यह नरसंहार 1977 के बेलछी नरसंहार से शुरू हुआ था, यह नरसंहार जून 2000 के मियांपुर नरसंहार तक जारी रहा। 25 जनवरी 1999 को शंकर बिगहा में 22 दलितों की हत्या कर दी गई थी। कहा जाता है कि यह नरसंहार जमीन की लड़ाई में हुआ था।
बेलछी नरसंहार
27 मई 1977 को बेलछी कांड हुआ था। बिहारशरीफ के इस गांव में दबंग मध्यम वर्ग के जमींदारों ने जमीन विवाद में 11 दलितों को जिंदा जला दिया था। खबरों की मानें तो गांव में दलित समुदाय के 12 लोगों को सुबह एक समुदाय के लोगों ने गोली मार दी। इसके बाद उन्होंने उन्हें एक जगह इकट्ठा किया और आग लगा दी। घटना के बाद पड़ोसी समुदाय के लोग डर के मारे गांव छोड़कर चले गए थे।