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ये एक्ट्रेस है माधुरी दीक्षित की कार्बन कॉपी, अक्षय को बुलाती थी भैया

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Madhuri Dixit And Fahreen Khan
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बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी कई एक्ट्रेसेस हैं, जिनका चेहरा आपस में काफी मेल खाता है. ऐसी ही एक एक्ट्रेस 90 के दशक में हुआ करती थी, जिनका चेहरा हुबहू एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित से मेल खाता था. अगर आज भी फैंस दोनों एक्ट्रेसेस की पुरानी फोटोज देख लें तो धोखा खा जायेंगे. दोनों ही एक्ट्रेसेस ने अपने-अपने करियर में बेस्ट दिया लेकिन एक ने अचानक फिल्म इंडस्ट्री ने दूरी बना ली और दूसरी आजतक बॉलीवुड में एक्टिव है. हम यहां जिस एक्ट्रेस की बात कर रहे हैं, उन्होंने अपने करियर में कई हिट फिल्मों में काम किया है और कई स्टार्स के साथ उनकी जोड़ी जमती थी. ये एक्ट्रेस कोई और नहीं बल्कि फरहीन खान हैं.

फरहीन खान की डेब्यू फिल्म

फरहीन खान ने साल 1992 में आई फिल्म ‘जान तेरे नाम’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी. फरहीन खान की एक्टिंग के साथ-साथ लोग उनकी खूबसूरती के कायल थे. कई लोग तो उन्हें माधुरी दीक्षित की जुड़वां बहन तक कहने लगे थे. यहाँ तक कि मीडिया उन्हें ‘माधुरी दीक्षित नंबर 2′ कहकर बुलाने लगी थी. उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया. उन्होंने अक्षय कुमार के साथ भी हिट फिल्में दी, जिससे जुड़ा एक किस्सा उन्होंने अपने इंटरव्यू के दौरान शेयर किया था. वो अपनी प्रोफेशनल लाइफ से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में बनी रहीं. वो एक शादीशुदा क्रिकेटर से प्यार कर बैठी थीं, जिसके लिए उन्होंने खुशी-खुशी एक्टिंग छोड़ दी.  फरहीन ने अपने करियर के पीक पर क्रिकेटर मनोज प्रभाकर से शादी करने का फैसला लिया और दिल्ली शिफ्ट हो गईं.

फरहीन खान ने शादी के बाद फिल्म इंडस्ट्री से नाता तोड़ बिजनेस में हाथ आजमाना शुरू कर दिया. आज के समय में वो एक ऑर्गेनिक स्किनकेयर लाइन की कंपनी चला रही हैं और नैनीताल में एक होमस्टे भी ऑपरेट कर रही हैं. पिछले साल एक इंटरव्यू में, फरहीन ने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव, बॉलीवुड करियर और शादी के बारे में खुलकर बात की थी. फरहीन ने बॉलीवुड ठिकाना को दिए इंटरव्यू में बताया था कि ‘मेरे परिवार से कोई भी सदस्य एक्टिंग की दुनिया में नहीं था. एक्ट्रेस रीना रॉय-बरखा रॉय मेरी मां की बचपन की सहेली हैं. मस्ती-मस्ती में मैंने फोटोशूट किया. संयोग से उसी बिल्डिंग में एक प्रोड्यूसर रहते थे’.

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आगे बात करते हुए फरहीन ने बताया, ‘उन्हें फोटोशूट पसंद आया और इस तरह से मुझे मेरी  पहली फिल्म मिली. मुझे फिल्मों में आने के लिए कोई स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. मेरी पहली फिल्म ‘जान तेरे नाम’ 1991 में शूट हुई थी और फरवरी 1992 में रिलीज हुई थी. मैंने आखिरी बार फिल्म इंडस्ट्री में साल 2000 तक काम किया. मैं फैमिली को बहुत ज्यादा तवज्जो देती हूं’.

अक्षय को बुलाना पड़ा था भैया; वो कौन-सी फिल्म थी ?

फरहीन खान ने बॉलीवुड के खिलाड़ी कुमार अक्षय कुमार के साथ कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन एक फिल्म ऐसी थी, जिसमें उन्होंने अक्षय की बहन का किरदार निभाया था. फिल्म ‘सैनिक’, में फरहीन ने अक्षय कुमार की बहन का रोल निभाया था. इस फिल्म के बारे में बात करते हुए फरहीन ने बताया कि एक समय पर उन्हें अक्षय पर क्रश था लेकिन जब शूटिंग के दौरान उन्हें ‘भैया’ कह कर बुलाना पड़ता था, तो वो बहुत अंदर से हिल जाती थीं. उन्होंने कहा, ‘जब मैं 90 के दशक में घूमने गई थी, तब पहली बार मैंने अक्षय को शूटिंग करते देखा. उनका लुक और हैंडसम चेहरा मुझे बहुत पसंद आया. तभी से मैं उनके साथ काम करने का ख्याल रखने लगी थी’. हालाँकि, दोनों की ऑन स्क्रीन जोड़ी को भी काफी पसंद किया गया था.

कैसे हुई हिन्दू धर्म में शादी

आपको बात दें कि फरहीन की मां हिंदू और पिता मुस्लिम थे लेकिन उन्हें मुस्लिम धर्म की कट्टरता पसंद नहीं थी. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, ‘मुझे बचपन से ही लगता था कि मुझे हिंदू लड़के से शादी करनी है. मुझे मुस्लिम कट्टरता पसंद नहीं थी. मैं मनोज प्रभाकर की दूसरी पत्नी हूं’. अपनी लव स्टोरी शेयर करते हुए फरहीन ने बताया कि मनोज से उनकी पहली मुलाकात 1993 में ट्यूलिप स्टार होटल के जिम में हुई थी, जहां सब लोग मनोज से ऑटोग्राफ ले रहे थे. उस समय वो उन्हें नहीं पहचानती थीं, लेकिन मनोज उन्हें पहचानते थे. पहली ही मुलाकात में उन्हें मनोज पसंद आए और बातें शुरू हुईं. उस वक्त मनोज पहले से शादीशुदा थे, लेकिन उनकी शादी ठीक नहीं चल रही थी. इसके बाद दोनों ने 1994 में शादी कर ली. फरहीन उनसे 10 साल छोटी हैं.

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Bigg Boss 18: पहले ही दिन घर में हुआ हंगामा, आपस में भिड़े रजत दलाल और तजिंदर बग्गा, जानें और क्या-क्या हुआ

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Bigg Boss 18
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सदी के सबसे विवादित शो में से एक बिग बॉस ने टीवी पर फिर से दस्तक दे दी है। बीते दिन रविवार रात शो का ग्रैंड प्रीमियर हुआ और शो के होस्ट सलमान खान ने 18 कंटेस्टेंट्स को बिग बॉस के घर में एंट्री करवाई। इस बार बिग बॉस 18 और भी ज्यादा विवादित होने वाला है क्योंकि इसमें टीवी और फिल्म एक्ट्रेस, वकील, राजनेता और यूट्यूबर की एंट्री हुई है। विवादों के लिए मशहूर इस शो ने पहले ही दिन विवाद खड़ा कर दिया है। शो के दो कंटेस्टेंट पहले ही दिन आपस में भिड़ गए। ये 2 कंटेस्टेंट रजत दलाल और तजिंदर बग्गा हैं। वहीं शो के एक और कंटेस्टेंट शहजादा धामी को लोगों ने उनकी जगह दिखा दी।

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पहले दिन भिड़े रजत दलाल-तजिंदर बग्गा

बिग बॉस एक ऐसा शो है जहां कंटेस्टेंट के बीच लड़ाई-झगड़े, गाली-गलौज और झगड़े आम बात है। कई बार कंटेस्टेंट हाथापाई पर भी उतर आते हैं। बिग बॉस का नया सीजन शुरू हो चुका है और पहले ही दिन रजत दलाल और तजिंदर बग्गा एक दूसरे से झगड़ते नजर आए। दरअसल, हुआ ये कि बातचीत करते-करते तजिंदर बग्गा ने बाइक वाली घटना का जिक्र कर दिया और रजत दलाल भड़क गए। उन्होंने कहा कि रजत का बाइक वाला वीडियो वायरल हुआ है और ये वीडियो इस बात का सबूत है कि बाइक गिरी नहीं।

Rajat Dalal-Tajinder Bagga
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रजत की बात सुनकर तजिंदर ने उस पर तंज कसते हुए कहा कि उसने बाइक को गिरते हुए देखा है। यह सुनकर रजत दलाल भड़क गया। रजत ने अपना आपा खोते हुए कहा- मैं बहुत बड़ा गंवार हूं लेकिन प्यार से बात करता हूं नहीं तो 2 मिनट में तेरा भूत बना दूंगा।

रजत दलाल का बाइक वाला विवाद

आपको बता दें कि रजत दलाल एक मशहूर यूट्यूबर हैं। उन्होंने अपनी कार से एक बाइक को टक्कर मार दी थी और इसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ था। इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ था और लोगों ने उन्हें खूब ट्रोल भी किया था। हालांकि रजत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। जब इस घटना का जिक्र बिग बॉस के घर में हुआ तो उनका पारा चढ़ गया।

शहजादा धामी ने उड़ाया किसका मजाक

इस बार ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से बाहर हुए एक्टर शहजादा धामी बिग बॉस 18 में हिस्सा ले रहे हैं। घर में कदम रखते ही उनकी टीवी एक्टर अविनाश मिश्रा से पट गई। दोनों को पहले दिन गार्डन एरिया में देखा गया। इस दौरान शहजादा ने चुम दरंग के नाम का मजाक उड़ाया। शहजादा इस बात पर जोर देता रहा कि उसका नाम सिर्फ चुम है। अविनाश ने जवाब में कहा कि शहजादा का पूरा नाम सामने आना चाहिए, लेकिन शहजादा इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। इसके बाद चुम दरंग सामने आती है, अपनी पूरी पहचान बताती है और शहजादा को चुप करा देती है।

 

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सोशल मीडिया पर लोग शहजादा की जमकर आलोचना कर रहे हैं। लोगों को पहले ही दिन शहजादा का रवैया पसंद नहीं आया। एक ने लिखा- शहजादा धामी चूम दरंग के नाम का मजाक उड़ा रहे हैं और यह ठीक नहीं है। एक अन्य ने लिखा- शहजादा धामी की हरकतें छपरी जैसी हैं। एक ने कहा- शहजादा धामी को पहले खुद को देखना चाहिए कि क्या हुआ है।

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भाविश अग्रवाल vs कुणाल कामरा: कॉमेडियन और सीईओ के बीच छिड़ा ट्वीट वॉर, जानें किस बात को लेकर खड़ा हुआ विवाद

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Bhavish Aggarwal vs Kunal Kamra
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ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल (Bhavish Aggarwal) और ‘स्टैंड अप कॉमेडियन’ कुणाल कामरा (Kunal Kamra) के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। दरअसल, रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric) स्कूटर की गुणवत्ता को लेकर तीखी बहस के चलते दोनों आपस में भिड़ गए। बहस तब शुरू हुई जब अग्रवाल ने ओला गिगाफैक्ट्री की तस्वीर पोस्ट की। इस पर कामरा ने कई ओला इलेक्ट्रिक स्कूटर की तस्वीर पोस्ट की, जो कथित तौर पर मरम्मत के लिए एक साथ खड़े थे। ओला स्कूटर ग्राहक विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने खराब स्कूटरों की शिकायत कर रहे हैं। इस बीच कॉमेडियन कुणाल कामरा के एक ट्वीट पर ओला इलेक्ट्रिक के संस्थापक भाविश अग्रवाल ने कुछ ऐसा कह दिया जो अब उनके लिए और मुश्किलें खड़ी करता नजर आ रहा है।

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क्या है मामला?

दरअसल, भाविश अग्रवाल ने 5 अक्टूबर को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म X पर ओला की गीगाफैक्ट्री की एक तस्वीर पोस्ट की थी। कॉमेडियन कुणाल कामरा ने इस पोस्ट को रीट्वीट करके ओला के खराब इलेक्ट्रिक स्कूटर पर सवाल उठाए। ट्वीट में कुणाल कामरा ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का जिक्र किया और कहा कि भारतीय उपभोक्ता क्या कहते हैं, इस पर कोई ध्यान नहीं देता। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग दैनिक परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर निर्भर हैं और पूछा कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो लोग इलेक्ट्रिक कारों पर कैसे भरोसा कर पाएंगे। अपने ट्वीट में उन्होंने यूजर फोरम @jagograhakjago का भी जिक्र किया। उन्होंने लोगों से अपने ओला इलेक्ट्रिक स्कूटर से जुड़ी समस्याओं के बारे में ट्वीट करने का भी आग्रह किया।

ओला के फाउंडर का आया ये रिएक्शन

भाविश अग्रवाल ने कुणाल कामरा को जवाब देते हुए ट्वीट किया, “अगर आप (@kunalkamra88) इतनी परवाह करते हैं, तो कृपया हमारी मदद करें।” इसके अलावा, भाविश ने कुणाल के ट्वीट को “पेड” बताया और कहा कि वह कुणाल को इसे लिखने के लिए दिए गए मुआवजे से ज़्यादा पैसे देंगे। इन मामलों से परे, उन्होंने कुणाल के कॉमेडी करियर का भी ज़िक्र किया।

भाविश यहीं नहीं रुके और आगे लिखा, “अगर आप मदद नहीं कर सकते तो चुपचाप बैठ जाइए और हमें अपना काम करने दीजिए। हम अपने सर्विस नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं और बैकलॉग को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।”

लोगों का फूटा गुस्सा

भाविश अग्रवाल के इस रवैये से एक्स यूजर काफी नाराज दिखे। उन्होंने ओला संस्थापक को आड़े हाथों लिया और खरी-खोटी सुनाई। विक्रम नाम के यूजर ने एक्स पर लिखा, “मैं ओला का ग्राहक था लेकिन कंपनी की सर्विस बहुत खराब है। इस पर स्कैम 2025 या 2027 नाम की सीरीज बननी चाहिए।” वहीं, एक अन्य यूजर ने ओला इलेक्ट्रिक के कारोबार में घाटे के आंकड़े गिनाते हुए कहा कि जिसका कारोबार खुद घाटे में चल रहा है, वह दूसरों को ‘फेल’ बता रहा है।

@theprayagtiwari नाम के एक यूजर ने लिखा, “आप कितने अहंकारी हैं! यह जवाब आपकी अज्ञानता को दर्शाता है। समाधान देने के बजाय, आप सवाल उठाने वाले को ही दोषी ठहराते हैं। बहुत बढ़िया, मिस्टर अग्रवाल।”

कंपनी के सामने खराब स्कूटरों का पहाड़

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओला के सर्विस सेंटरों पर हर महीने करीब 80,000 स्कूटर पहुंच रहे हैं और कंपनी के पास इन्हें रिपेयर करने के लिए कर्मचारियों की कमी है। इस वजह से कई ग्राहक कई महीनों तक स्कूटर रिपेयर का इंतजार कर रहे हैं। कंपनी का कहना है कि वह अपने सर्विस नेटवर्क को बेहतर बना रही है और सर्विस एजेंट्स की संख्या भी बढ़ा रही है, ताकि ग्राहकों की समस्याओं का जल्द समाधान हो सके।

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इस वजह से सैफ ने बनवाया था करीना के नाम का टैटू, सच्चाई जानकर आप भी हो जायेंगे हैरान

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Kareena Kapoor And Karishma Kapoor
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बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर ने अपने करियर में कई सुपरहिट फिमे दी है. एक्ट्रेस की गिनती बॉलीवुड के हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस में होती है. वह पिछले 2 दशक से फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव हैं और अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेर रही हैं. इसके अलावा करीना अक्सर फैमिली को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है. करीना कपूर और सैफ अली खान की शादी को लगभग 12 साल हो चुके हैं. शादी से पहले दोनों ने कई सालों तक एक-दूसरे को डेट किया था. इस दौरान सैफ ने अपने हाथ पर करीना के नाम का टैटू भी बनवाया था, जो काफी चर्चा में भी रहा. लेकिन क्या आप जानते है? आखिर सैफ ने करीना ने नाम का टैटू क्यों बनवाया था?

सैफ ने क्यों बनवाया था करीना के नाम का टैटू

हाल ही में करीना कपूर को कपिल शर्मा के शो ‘द ग्रेट इंडियन कपिल शो’ के सीजन 2 में देखा गया है. शो का एक प्रोमो सामने आया है, जिसमें करीना अपनी बहन करिश्मा कपूर के साथ शो में नजर आ रही हैं. ‘द ग्रेट इंडियन कपिल शो’ देखा जा रहा है कि कैसे करीना और करिश्मा कपिल शर्मा के साथ खूब सारी बातें करने के साथ-साथ मस्ती करती नजर आ रही हैं. इस बीच करीना ये भी बताया कि क्यों सैफ ने अपने हाथ पर उनके नाम का टैटू बनवाया था? इसके पीछे की वजह सुनने के बाद करिश्मा के साथ-साथ कपिल भी हैरान रह गए थे. उन्होंने बताया कि वो सैफ के प्यार जताने का एक तरीका था और वो करीना को स्पेशल फील कराना चाहते थे.

वही, प्रोमो वीडियो में देखा जा सकता है कि कपिल शर्मा, करीना कपूर से उनकी बहन करिश्मा कपूर के बारे में सवाल पूछते नजर आते हैं. कपिल पूछते हैं, ‘करिश्मा की ऐसी कौन सी आदत है जो आपको सबसे ज़्यादा परेशान करती है’? इस पर करीना हंसते हुए जवाब देती हैं, ‘ये हमेशा तैयार होने में बहुत ज्यादा वक्त लगाती है’. फिर कपिल उनसे पूछते हैं, ‘आपके बच्चे ज्यादा शरारती हैं या फिर उनके पापा’? इस पर करीना मजाक में कहती हैं, ‘आपको तो पता ही होगा, वो कितनी बार आपके शो में आ चुके हैं’.

इसके अलावा कपिल, करीना से पूछते हैं, ‘हमें आपके और सैफ सर के बीच के रिश्ते के बारे में तब पता चला, जब उन्होंने अपने हाथ पर आपका नाम टैटू करवाया था’. इस पर करीना बताती हैं, ‘नहीं, नहीं, टैटू बनाने के लिए तो मैंने खुद ही कहा था. मैंने कहा था कि अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो अपने हाथ पर मेरा नाम लिखवाओ’. उनकी इस बात को सुनने के बाद कपिल शर्मा हैरान रह जाते हैं और सब हंसने लगते हैं. साथ ही अपनी लाइफ के कई दिलचस्प किस्सों को भी शेयर करती नज़र आई है.

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वर्क फ्रंट पर करीना कपूर और करिश्मा कपूर  

अगर हम करीना के वर्कफ्रंट की बात करें तो वो आखिरी बार फिल्म ‘द बकिंघम मर्डर्स’ में नजर आई थी, जो हाल ही में रिलीज हुई एक सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म है. करीना इस फिल्म की को-प्रोड्यूसर भी हैं. दूसरी ओर, करिश्मा कपूर के वर्कफ्रंट की बात करें तो करिश्मा को आखिरी बार नेटफ्लिक्स थ्रिलर ‘मर्डर मुबारक’ में देखा गया था. इसके अलावा वो छोटे पर्दे पर एक डांस रियलिटी शो भी जज कर रही हैं.

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Sarthak Surgical Hospital: इस अस्पताल की हर दीवार पर लगी है डॉ. अंबेडकर की तस्वीर, प्रार्थना के लिए बनाया गया है बौद्ध विहार

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Sarthak Surgical Hospital
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वाराणसी में सार्थक सर्जिकल अस्पताल एक अनूठी पहल है, जहां हर दीवार पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर की तस्वीरें हैं और अस्पताल में बौद्ध विहार भी है, जो बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रार्थना करने का एक शांतिपूर्ण स्थान है। यह अस्पताल न केवल चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है बल्कि सामाजिक समानता और सेवा के आदर्शों को भी बढ़ावा देता है। आइए आपको बताते हैं कि इस अस्पताल को बनाने के पीछे क्या प्रेरणा है और इस अस्पताल का दलितों से क्या संबंध है।

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डॉ. विनोद कुमार का योगदान

इस अस्पताल के संस्थापक डॉ. विनोद कुमार अपने सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे विशेष रूप से गरीब मरीजों को मुफ्त में चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग भी उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें। उनका यह काम सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

डॉ. अंबेडकर की विरासत

अस्पताल की दीवारों पर लगी डॉ. बी.आर. अंबेडकर की तस्वीरें और उनके विचारों का संदेश इस बात का प्रतीक है कि यह स्थान केवल चिकित्सा सेवा का केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और समरसता का भी केंद्र है। अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेते हुए, अस्पताल में सभी का समान रूप से स्वागत किया जाता है, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, या सामाजिक पृष्ठभूमि से हों।

Dr. Vinod Kumar
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 बौद्ध विहार

अस्पताल में बौद्ध अनुयायियों के लिए एक बौद्ध विहार भी बनाया गया है, जहाँ मरीज़ और उनके रिश्तेदार शांति और मानसिक आराम के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। यह स्थान लोगों को आध्यात्मिक शक्ति देता है, जो उनके इलाज के दौरान सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बन सकता है।

मुफ्त चिकित्सा सेवाएं

डॉ. विनोद कुमार गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं। उनकी सेवा वाराणसी और उसके आस-पास के इलाकों के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है, जहां कई लोग महंगे चिकित्सा खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। उनके अस्पताल में जाति, धर्म या आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद सभी को समान सम्मान और सेवा मिलती है।

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सामाजिक न्याय और सेवा का प्रतीक

सार्थक सर्जिकल अस्पताल सिर्फ एक अस्पताल नहीं है बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और सेवा भावना का प्रतीक है। डॉ. विनोद कुमार का यह कदम समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक बड़ा सहारा है और डॉ. अंबेडकर के विचारों के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धांजलि है।

डॉ. विनोद कुमार का प्रमुख प्रेरणा स्रोत

डॉ. विनोद कुमार की प्रेरणा का मुख्य स्रोत डॉ. भीमराव अंबेडकर हैं। डॉ. अंबेडकर का जीवन और उनके विचार डॉ. विनोद कुमार के कार्यों और उनकी समाज सेवा के पीछे प्रेरणा का आधार हैं। डॉ. अंबेडकर ने जीवन भर दलितों, पिछड़ों और सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और समानता, शिक्षा और सामाजिक न्याय का संदेश दिया।

डॉ. अंबेडकर से मिली प्रेरणा

डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष और उनके सिद्धांत, खासकर सामाजिक न्याय और समानता के लिए उनका संघर्ष, डॉ. विनोद कुमार के जीवन और कार्य को प्रेरित करता है। आंबेडकर हमेशा समाज के वंचित वर्गों के उत्थान की बात करते थे और यह विचार डॉ. विनोद की चिकित्सा सेवाओं में भी झलकता है, जहां वे गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त चिकित्सा सहायता प्रदान करते हैं।

शिक्षा और सेवा का महत्व

डॉ. अंबेडकर शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण हथियार मानते थे, जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति और समाज को सशक्त बनाया जा सकता है। इसी प्रेरणा से डॉ. विनोद ने मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करके गरीब और पिछड़े वर्गों की मदद करने का संकल्प लिया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनका ज्ञान और विशेषज्ञता केवल आर्थिक रूप से संपन्न लोगों तक ही सीमित न रहे, बल्कि समाज के कमजोर वर्ग को भी इसका लाभ मिले।

बौद्ध धर्म और आध्यात्मिकता

डॉ. आंबेडकर की तरह डॉ. विनोद कुमार भी बौद्ध धर्म से प्रेरित हैं। इसी वजह से उन्होंने अस्पताल में एक बौद्ध विहार बनवाया, जहाँ मरीज़ और उनके रिश्तेदार प्रार्थना कर सकते हैं और मानसिक शांति पा सकते हैं। डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया क्योंकि यह धर्म समानता, शांति और करुणा के सिद्धांतों पर आधारित है। डॉ. विनोद के सेवा कार्यों में भी यही मूल्य नज़र आते हैं।

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आखिर कांशीराम हमेशा मीडिया से क्यों नाराज़ रहते थे? पूर्व BBC पत्रकार मार्क टुली ने बताई इसकी वजह

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BBC journalist Mark Tully
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कांशी राम (1934-2006) भारतीय राजनीति में एक प्रमुख समाज सुधारक और दलित आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने दलितों, पिछड़े वर्गों और अन्य सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों के लिए एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन खड़ा किया। कांशी राम को मुख्य रूप से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, जिसने भारत में दलित राजनीति को एक नई दिशा दी और समाज में सामाजिक न्याय और समानता के लिए आवाज़ उठाई। लेकिन उन्होंने इन सभी कामों के लिए कभी मीडिया का सहारा नहीं लिया। क्योंकि वे अक्सर मीडिया से बहुत नाराज़ रहते थे। बीबीसी के पूर्व पत्रकार मार्क टुली ने अपने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया था।

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पूर्व बीबीसी पत्रकार मार्क टुली, जिन्होंने भारत में अपने लंबे पत्रकारिता करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को कवर किया, ने एक बार बताया था कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम अक्सर उनसे नाराज रहते थे।

कांशीराम की नाराजगी की वजह

कांशीराम अपने विचारों और आंदोलन के प्रति बेहद समर्पित थे। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन वे अक्सर मीडिया से नाखुश रहते थे, खासकर जिस तरह से मुख्यधारा का मीडिया उनके काम को कवर करता था। मार्क टुली ने भी कांशीराम के आंदोलन और विचारधारा पर रिपोर्टिंग की, लेकिन कांशीराम को लगा कि मीडिया उनके संघर्ष को सही तरीके से नहीं दिखा रहा है या उनके उद्देश्यों को गलत तरीके से पेश कर रहा है।

KanshiRam
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मीडिया नहीं देता आंदोलन को पर्याप्त महत्व

कांशीराम का मानना ​​था कि मीडिया उनके आंदोलन को पर्याप्त महत्व नहीं दे रहा था और उनकी पार्टी के उद्देश्यों को सही संदर्भ में नहीं दिखा रहा था। उनके अनुसार, मीडिया हमेशा मुख्यधारा की पार्टियों पर ध्यान केंद्रित करता था, जबकि दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए उनकी पार्टी के संघर्ष को नजरअंदाज कर दिया जाता था। कांशीराम की शिकायत थी कि पत्रकार अक्सर सवालों को गलत दिशा में ले जाते थे या उन्हें विवादास्पद बना देते थे, जिससे उनके आंदोलन की छवि खराब होती थी।

मार्क टुली के साथ मतभेद

मार्क टुली ने माना कि उनके और कांशीराम के बीच इस नाराजगी के बावजूद, वे हमेशा कांशीराम का सम्मान करते थे। कांशीराम के साथ उनके साक्षात्कार और बातचीत कभी-कभी गरमागरम हो जाती थी, क्योंकि टुली उनके पत्रकारिता के सिद्धांतों पर आधारित सवाल पूछते थे, जो कांशीराम को परेशान कर सकते थे। कांशीराम को लगता था कि टुली जैसे वरिष्ठ पत्रकारों को उनके आंदोलन की गहराई को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उसे वैसा ही दिखाना चाहिए जैसा वह था।

BBC journalist Mark Tully
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कांशीराम का मीडिया के प्रति दृष्टिकोण

कांशीराम मीडिया के प्रति संदेहपूर्ण रवैया रखते थे, क्योंकि उनका मानना ​​था कि मीडिया उनके विचारों को सही तरीके से नहीं समझता। वह हमेशा अपने आंदोलन और उसके उद्देश्यों के बारे में मीडिया से अधिक संवेदनशीलता और गहराई की अपेक्षा रखते थे। कांशीराम एक मुखर वक्ता थे और उन्होंने अपने विचार बेबाकी से व्यक्त किए, लेकिन मीडिया द्वारा उनके विचारों की व्याख्या से अक्सर उनके और पत्रकारों के बीच तनाव पैदा होता था।

हालांकि, कांशीराम की नाराजगी के बावजूद मार्क टुली ने हमेशा कांशीराम के संघर्ष और उनके सामाजिक आंदोलन को गंभीरता से लिया। उनके और कांशीराम के बीच मतभेद थे, लेकिन इससे पत्रकारिता के प्रति टुली की प्रतिबद्धता और कांशीराम के विचारों का महत्व कम नहीं हुआ।

और पढ़ें: क्या आप जानते हैं कहां रखी है कांशीराम जी की कलम और अन्य चीजें, तो इस संग्रहालय के बारे में जरूर जानें 

नानोकी: पंजाबी विरासत और संस्कृति का अनूठा केंद्र, 25 घर हैं विरासत और रोमांच का अद्भुत संगम

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अगर आप पंजाब की समृद्ध विरासत और संस्कृति को करीब से देखना चाहते हैं, तो नानोकी नाम का यह छोटा सा गांव आपके लिए एक बेहतरीन जगह हो सकता है। करीब 25 घरों वाला एक छोटा सा गांव नानोकी विरासत, इतिहास और रोमांच का अनूठा संगम पेश करता है। यहां का हर घर और गली पंजाबी जीवनशैली को दर्शाता है, जो शहरों की भीड़-भाड़ से दूर एक सरल और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अनुभव देता है।

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गांव में मात्र 45 मतदाता

नाभा से 37 किलोमीटर दूर भादसों ब्लॉक में स्थित इस गांव में मात्र 45 मतदाता हैं। 1987 में भारत सरकार ने इसे ‘बिगेस्ट लिटल विलेज’ का खिताब दिया था। भादसों से इसकी दूरी मात्र चार किलोमीटर है। इस गांव के निवासी आबजिंदर सिंह ग्रेवाल पेशे से किसान हैं। 2007 में उन्होंने खेती के साथ-साथ विरासत को संजोने के उद्देश्य से नाइट कैंपिंग फार्म की शुरुआत की। इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और इंग्लैंड से आने वाले पर्यटकों की संख्या अधिक होती है।

Nanoki Punjabi
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क्या है खासियत

1987 तक इस गांव में सिर्फ़ 13 घर थे। ये सभी एक ही परिवार के हैं। इसीलिए इसे ‘बिगेस्ट लिटल विलेज’ का खिताब दिया गया। अब यहां 25 घर हैं। इस गांव को लुधियाना के लालटनकलां गांव के ग्रेवाल परिवार ने बसाया था। ग्रेवाल परिवार के अभिजिंदर सिंह के खेत में मिट्टी के बर्तन और उन्हें बनाने की विधि भी सिखाई जाती है। यहां खेती के पुराने औजार भी मौजूद हैं जिनका अब बहुत कम इस्तेमाल होता है।

पंजाबी विरासत की झलक

नानोकी में आपको पंजाब की पारंपरिक जीवनशैली की झलक मिलेगी। यहां के घर पुराने अंदाज में बने हैं, मिट्टी की दीवारें हैं और यहां की जीवनशैली बहुत ही साधारण है। स्थानीय लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोकर रखते हैं और यहां आने वाले पर्यटकों को एक अनमोल अनुभव देते हैं, जो धीरे-धीरे आधुनिक दुनिया में खोता जा रहा है।

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एडवेंचर और ग्रामीण जीवन

विरासत के साथ-साथ, नैनोकी कई रोमांचकारी अवसर भी प्रदान करता है। हरी-भरी फसलें, खेतों में ट्रैक्टर की सवारी, बैलगाड़ी की सवारी और पारंपरिक पंजाबी खेल आपको रोमांचकारी अनुभव देंगे। नैनोकी आकर आप ग्रामीण जीवन का हिस्सा बन सकते हैं, जहाँ आप खेतों में काम करने, गाय-भैंसों का दूध निकालने और पारंपरिक पंजाबी भोजन पकाने जैसे अनुभवों में भाग ले सकते हैं।

गांव का सादगी भरा जीवन

नानोकी के लोग बेहद मिलनसार और सरल हैं। यहाँ आपको पंजाबी संस्कृति के मुख्य पहलुओं जैसे भांगड़ा, गिद्दा और गुरबानी की मधुर ध्वनियाँ और स्थानीय भोजन का अनुभव मिलेगा। पंजाब की मिट्टी की खुशबू, गाँव की ताज़गी और खेतों की चहल-पहल इस गाँव को एक अनोखा आकर्षण देती है।

विरासत और आधुनिकता का संगम

नानोकी वैसे तो एक छोटा सा गांव है, लेकिन यह विरासत और आधुनिकता का अद्भुत संगम है। एक तरफ जहां पारंपरिक जीवनशैली का अनुभव किया जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ आधुनिक साहसिक गतिविधियां भी उपलब्ध हैं, जो इसे एक अनूठा पर्यटन स्थल बनाती हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेले

नानोकी में स्थानीय त्यौहार और मेले आयोजित किए जाते हैं, जहाँ पंजाबी लोकगीत, नृत्य और खेल खेले जाते हैं। ये कार्यक्रम पर्यटकों को पंजाब की रंग-बिरंगी संस्कृति और उत्सवों की झलक दिखाते हैं।

अगर आप पंजाबी विरासत, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेना चाहते हैं, तो नानोकी आपके लिए एकदम सही जगह है।

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सिर्फ मायावती ही नहीं, ये हैं वो गुमनाम महिलाएं जिनका कांशीराम के बहुजन संघर्ष में योगदान रहा

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कांशीराम के बहुजन संघर्ष और उनके द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के इतिहास को अक्सर मायावती के नेतृत्व से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इस आंदोलन के पीछे कई महिलाएं भी थीं जिन्होंने अहम भूमिका निभाई। इन महिलाओं ने कांशीराम की सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन उनकी भूमिका को वह पहचान नहीं मिली जिसकी वह हकदार थीं। यहां हम उन गुमनाम महिलाओं की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने कांशीराम के बहुजन आंदोलन को मजबूत करने में अपना अमूल्य योगदान दिया:

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सावित्रीबाई फुले 

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। सवित्री बाई ने भी बहुजन आंदोलन के साथ अपना नाम जोड़ा और दलित समुदायों में शिक्षा और जागरूकता फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास किए और कांशीराम के विचारों के प्रचार-प्रसार में अहम योगदान दिया। सावित्रीबाई फुले ने समाज के उन वर्गों के लिए आवाज़ उठाई जो शिक्षा और समानता से वंचित थे। उन्होंने न केवल लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया बल्कि जातिगत भेदभाव और अन्याय के खिलाफ़ भी लड़ाई लड़ी। उनके प्रयासों से बहुजन समाज में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार हुआ, जिसने दलित समुदाय को सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया।

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झलकारी बाई

झलकारी बाई ने बहुजन समाज में विशेष रूप से अपने साहस और बलिदान से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक प्रमुख महिला योद्धा थीं, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वह दलित समुदाय से थीं और उनका संघर्ष बहुजन समाज के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा। वह स्वतंत्रता संग्राम की नायिका बनकर उभरीं।

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झलकारी बाई न केवल एक योद्धा थीं, बल्कि उन्होंने अपने समुदाय को संगठित करने और जागरूकता फैलाने का भी काम किया। उनका संघर्ष समाज के वंचित वर्गों के लिए प्रेरणा बन गया, जिन्हें समाज में समान अधिकारों और अवसरों के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनके बलिदान और बहादुरी की कहानियाँ बहुजन समाज के गौरव और संघर्ष का प्रतीक हैं।

ऊदा देवी

1857 की लड़ाई के दौरान, दलित स्वतंत्रता योद्धा ऊदा देवी और उनकी साहसी महिलाओं ने ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ाई लड़ी थी। महिलाओं की सेना स्थापित करने के लिए, ऊदा देवी ने बेगम हजरत महल से उन्हें एक योद्धा के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा था। अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के एक छोटे से गाँव में ऊदा देवी का जन्म हुआ था। वह पासी जाति की सदस्य थीं। पासी समुदाय हर साल 16 नवंबर को मुक्ति की लड़ाई में ऊदा देवी की लड़ाई और भूमिका को याद करता है। उन्हें एक साहसी दलित महिला के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता का विरोध किया और उस पर विजय प्राप्त की।

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उदा देवी जैसी बहादुर महिलाओं का योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था, बल्कि उन्होंने बहुजन समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने में भी बहुत बड़ा योगदान दिया।

बता दें, दलित समुदाय की एकता के लिए कांशीराम ने ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई, झलकारी बाई और उदा देवी जैसे महापुरुषों को दलित चेतना का प्रतीक बनाया। इसी वजह से इन महिलाओं ने न केवल बहुजन समाज पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई, बल्कि कांशीराम के विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का भी काम किया। हालाँकि उनके योगदान को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

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Amar Akbar Anthony: विनोद खन्ना की जगह पहले धर्मेंद्र को मिलने वाला था पुलिस अफसर का रोल, जानें फिल्म से जुड़ी खास बातें

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“अमर अकबर एंथनी”1977 में रिलीज़ हुई एक बहुचर्चित बॉलीवुड फिल्म थी, जिसका निर्देशन मनमोहन देसाई ने किया था। फिल्म की स्टार कास्ट में अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे। हालांकि, शुरुआती दौर में इस फिल्म के लिए धर्मेंद्र का नाम भी चर्चा में था। लेकिन धर्मेंद्र अपने बिज़ी शेड्यूल के कारण अमर अकबर एंथनी में काम नहीं कर पाए और उनकी जगह विनोद खन्ना को ले लिया गया। इसी बीच फिल्म में शबाना आजमी की एंट्री हो गई। इन बदलावों के बावजूद फिल्म बड़ी हिट साबित हुई और बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय फिल्मों में से एक बन गई। आइए समझते हैं कि धर्मेंद्र कैसे फिल्म से बाहर हुए और शबाना आजमी की एंट्री कैसे हुई:

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मनमोहन देसाई को ‘मसाला फिल्मों’ का जनक माना जाता है और “अमर अकबर एंथनी” उनके करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी। देसाई ने इस फिल्म के जरिए रोमांस, कॉमेडी, ड्रामा और एक्शन का अनूठा मिश्रण पेश किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

धर्मेंद्र का फिल्म से बाहर होना

पहले इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के लिए धर्मेंद्र को चुना गया था। मनमोहन देसाई ने विनोद खन्ना वाले रोल के लिए धर्मेंद्र को कास्ट किया था, लेकिन धर्मेंद्र अपनी दूसरी फिल्मों की वजह से इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन पाए। उस समय धर्मेंद्र के पास कई बड़े प्रोजेक्ट थे और उनकी डेट्स पहले से ही बुक थीं, जिसकी वजह से वे “अमर अकबर एंथनी” की शूटिंग के लिए समय नहीं निकाल पाए। बाद में धर्मेंद्र की जगह विनोद खन्ना को फिल्म में कास्ट किया गया। यह फैसला फिल्म के लिए फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि विनोद खन्ना ने अपना रोल बखूबी निभाया और फिल्म की बड़ी सफलता में अपना योगदान दिया।

शबाना आज़मी की एंट्री

इसी बीच शबाना आज़मी को फ़िल्म में लेने का फ़ैसला तब लिया गया जब मनमोहन देसाई को मुख्य महिला किरदारों के लिए मज़बूत और गरिमामय अभिनेत्रियों की ज़रूरत थी। शबाना आज़मी को फ़िल्म में लेने पर पहले विचार नहीं किया गया था। फ़िल्म में मूल रूप से सिर्फ़ दो मुख्य अभिनेत्रियाँ, परवीन बॉबी और नीतू सिंह को लेने की योजना थी, लेकिन बाद में शबाना आज़मी को फ़िल्म में तीसरी मुख्य महिला किरदार के रूप में लिया गया।

शबाना आज़मी उस समय की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक थीं और उन्हें एक गंभीर अभिनेत्री के रूप में जाना जाता था। हालांकि “अमर अकबर एंथनी” मुख्य रूप से एक हल्की-फुल्की मसाला फ़िल्म थी, लेकिन शबाना आज़मी ने फ़िल्म में अपने किरदार को सहजता से निभाया और फ़िल्म को और भी मनोरंजक बना दिया।

फिल्म की सफलता

फिल्म की सफलता की बात करें तो “अमर अकबर एंथनी” बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। यह फिल्म उस समय साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई थी और इसे बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता मिली थी। इसे उस समय की कई अन्य ब्लॉकबस्टर फिल्मों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा माना जाता था। फिल्म की जबरदस्त सफलता के कारण इसे कई पुरस्कार भी मिले, जिसमें अमिताभ बच्चन का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल है।

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Debt Crisis: दुनिया के ये 5  देश कभी भी हो सकते हैं दिवालिया, इनमें से तीन भारत के पड़ोसी हैं

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इस समय दुनिया के कई देश गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। इनमें से कई देश भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और दिवालिया होने की कगार पर हैं। इन देशों की हालत इतनी खराब है कि कोई भी दूसरा देश या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान उन्हें कर्ज देने को तैयार नहीं है। दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे देशों में से तीन भारत के पड़ोसी देश हैं।

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बांग्लादेश

156 बिलियन डॉलर के अपने मौजूदा कुल कर्ज के साथ, बांग्लादेश ने 2008 से अपने कर्ज को पांच गुना बढ़ा दिया है। एसएंडपी ग्लोबल जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने बांग्लादेश को “जंक” रेटिंग दी है। हाल ही में राजनीतिक अशांति के कारण बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था खराब हो गई है। बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार में जनवरी 2023 में 32 बिलियन डॉलर से सितंबर 2024 में 20 बिलियन डॉलर तक की गिरावट आई है। पिछले पांच वर्षों में, केंद्रीय बैंक ने टका का अवमूल्यन किया है, लेकिन अभी तक, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है।

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श्रीलंका

श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझ रहा है। विदेशी कर्ज की वजह से देश की मुद्रा का भारी अवमूल्यन हुआ है, और आवश्यक वस्तुओं की कमी हो रही है। अगस्त 2024 में, श्रीलंका की मुद्रास्फीति दर केवल 1.1% थी, जो सितंबर 2022 में 67% से कम थी। 2023 में, जीडीपी 2017 में $94 बिलियन से घटकर $84.4 बिलियन हो गई, लेकिन 2024 के जनवरी-जून में इसमें वृद्धि हुई। 2022 और 2023 में 9.5% की गिरावट के बाद श्रीलंका की अर्थव्यवस्था स्थिर होने लगी है। हालाँकि, गरीबी और कर्ज की बढ़ती दरें अर्थव्यवस्था को उबरने में और अधिक मुश्किल बना सकती हैं।

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पाकिस्तान 

पाकिस्तान लंबे समय से कर्ज की समस्याओं से जूझ रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था IMF और दूसरे देशों की मदद पर निर्भर हो गई है, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अभी भी खस्ताहाल में है, जबकि IMF ने देश को दिवालियापन से बाहर निकलने में मदद की है। मई 2024 के IMF पूर्वानुमान के अनुसार, पाकिस्तान को 2029 तक कम से कम 123 बिलियन डॉलर के विदेशी वित्त की आवश्यकता होगी। अनुमानों के अनुसार, पाकिस्तान की जीडीपी 2022 में 375.44 बिलियन डॉलर से घटकर 2023-2024 में 374.904 बिलियन डॉलर हो जाएगी। अगस्त में, कमी के बावजूद मुद्रास्फीति 9.6% पर रही।

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घाना

घाना एक और ऐसा देश है जो कर्ज के कारण अपने आर्थिक भविष्य को लेकर चिंतित है। विदेशी कर्ज और निवेश की कमी इसके मुख्य कारण हैं। घाना, एक अफ्रीकी देश है, जिस पर कुल 44 बिलियन डॉलर का कर्ज है। यह घाना के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 70.6% है। दिसंबर 2022 में देय अपने अधिकांश बाहरी दायित्वों का भुगतान करने में विफल रहने के बाद घाना की अर्थव्यवस्था संकट में आ गई। घाना में मुद्रास्फीति और उधार की कीमतें दोनों आसमान छू रही हैं। 2021 और 2023 के बीच, घाना का विदेशी मुद्रा भंडार 9.7 बिलियन डॉलर से गिरकर 5.9 बिलियन डॉलर हो गया।

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जाम्बिया

जाम्बिया भी कर्ज में डूबा हुआ है। देश की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही है और उसे विदेशी सहायता की सख्त जरूरत है। 2020 में, दक्षिणी अफ्रीका का एक देश जाम्बिया अपने यूरोबॉन्ड दायित्व पर चूक गया। इसने इस साल अपने 6.3 बिलियन डॉलर के विदेशी ऋण का पुनर्गठन करने वाला पहला देश बनकर इतिहास भी रच दिया। आईएमएफ के अनुसार, यदि 2024 के ऋण पुनर्गठन समझौते में वाणिज्यिक ऋण और अन्य खंडों का पुनर्गठन नहीं किया जाता है, तो जाम्बिया को एक और डिफ़ॉल्ट का सामना करने का जोखिम हो सकता है।

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