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होली पर इस दरगाह में बरसते हैं प्यार के सूफियाने रंग, हिन्दू मुस्लिम सौहार्द की है बेजोड़ मिसाल

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होली पर इस दरगाह में बरसते हैं प्यार के सूफियाने रंग, हिन्दू मुस्लिम सौहार्द की है बेजोड़ मिसाल

होली के रंगों को प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इसकी कोई मजहब या जात नहीं होती. इसी कथन का एक नमूना आपको उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में स्थित देवा शरीफ दरगाह में देखने को मिल जाएगा. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र 42 किलोमीटर दूर बाराबंकी की इस दरगाह में होली के रंगों में सूफियाना प्यार की झलक देखने को मिलती है. दरअसल हिन्दुओं का पर्व कही जाने वाली होली को इस दरगाह में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. ये हिंदुस्तान की एकमात्र ऐसी दरगाह है जो देश में सौहार्द का संदेश देती है.

होली पर अलग होती है छठा

देवा शरीफ की रौनक तो वैसे पूरे साल रहती है लेकिन होली पर इसकी अलग की छठा देखने को मिलती है. यहां होली समारोह में शामिल होने दूर दूर से लोग आते हैं. यहां मुसलमान होली भी खेलते हैं और दिवाली के दीये भी जलाते हैं. यहां होली में केवल गुलाब के फूल और गुलाल से ही होली खेलने की परंपरा है. कौमी एकता गेट पर पुष्प के साथ चाचर का जुलूस निकाला जाता है. इसमें आपसी कटुता को भूलकर दोनों समुदाय के लोग भागीदारी करके संत के ‘जो रब है, वही राम है’ के संदेश को पुख्ता करते हैं.

हाजी साहब ने शुरू की थी परंपरा

देवा शरीफ हाजी वारिस अली शाह की जन्मस्थली है, जिन्होंने मानवता के लिए प्रेम के अपने संदेश से कई पीढ़ियों के जीवन को प्रभावित किया है. सूफी संत हाजी वारिस अली शाह को सभी धर्म के लोग चाहते थे. इसलिए हाजी साहब हर वर्ग के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते हैं. वह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेल कर सूफी पंरपरा का इजहार करते थे. इसीलिए उनके निधन के बाद आज भी यह परंपरा आज जारी है. बता दें देवा शरीफ एक ऐतिहासिक हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक स्थल है. यहां कौमी एकता की पहचान हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है. यहां साल भर लोग दर्शन के लिए आते हैं. यहां की होली उत्सव की कमान पिछले चार दशक से शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं.

ऐसे पहुंचे

हवाई मार्ग यात्रियों के लिए देवा शरीफ से सबसे नजदीकी अड्डा लखनऊ एयरपोर्ट है. अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे है तो आपको बाराबंकी रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ेगा. यहां से देवा शरीफ 12 किलोमीटर की दूरी पर है. लखनऊ से इसकी दूरी 42 किलोमीटर है. अगर आप रोड के जरिये सफ़र तय करना चाहते हैं तो यहां आने के लिए आपको आसानी से परिवहन की सुविधाएं मिल जायेंगी. बाराबंकी से हर आधे घंटे पर आपको बस सेवाएं मिल जायेंगी. वहीँ लखनऊ के कैसरबाग़ से भी सीधी बस सेवाएं मिलती हैं.

क्रिकेट के अलावा एड, सोशल मीडिया से भी विराट कोहली करते हैं खूब कमाई, जानकर रह जाएंगे शॉकड!

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क्रिकेट के अलावा एड, सोशल मीडिया से भी विराट कोहली करते हैं खूब कमाई, जानकर रह जाएंगे शॉकड!

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली आज जिस मुकाम पर है उसे उन्होनें अपनी मेहनत से हासिल किया है. जब विराट बल्लेबाजी करने के लिए मैदान में उतरते हैं, तो अच्छे से अच्छे गेंदबाज के पसीने छूट जाते है. ना सिर्फ क्रिकेट में बल्कि कमाई के मामले में भी विराट कोहली सबसे आगे है. आइए आज हम आपको बताते हैं कि विराट कितने पैसे कमाते है…

भारतीय कप्तान A+ कैटगिरी के खिलाड़ियों की कैटगिरी में आते है. इसलिए उनको हर साल 7 करोड़ रुपये की फीस मिलती है. क्रिकेट के अलावा भी विराट कई जगह से काफी तगड़ी कमाई करते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार विराट लगभग 19 ब्रांडों के ब्रांड एंबेसडर है, जिससे उनको हर साल 150 करोड़ मिलते हैं.

इसी वजह से उनकी कमाई बाकी सभी खिलाड़ियों से सबसे ज्यादा है. इसके अलावा विराट विज्ञापनों के जरिए भी काफी पैसा कमाते हैं. प्यूमा, ऑडी, पामोलिव, मान्यवर समेत बड़े ब्रांड्स के लिए एड्स करके काफी कमाई करते हैं.

इतना ही नहीं सोशल मीडिया के जरिए भी विराट ताबड़तोड़ कमाई करते हैं. जानकारी के मुताबिक कोहली इंस्टाग्राम पर बस एक प्रमोशनल पोस्ट डालने के लिए 1.20 लाख डॉलर यानी करीब 82 लाख रुपये की बड़ी फीस लेते हैं.

विराट की कमाई का पता फोर्ब्स मैग्जीन 2018 से भी चला था. इसमें विराट का नाम दुनिया के सबसे ज्यादा कमाई करने वाली खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल था. इस लिस्ट में विराट 83 नंबर पर थे. 2018 में विराट इंडिया के ऐसे पहले खिलाड़ी थे, जिन्होनें फोर्ब्स की टॉप 100 वाली लिस्ट में अपनी जगह बनाई थी.

फोर्ब्स की लिस्ट के मुताबिक साल 2018 में विराट कोहली ने लगभग 161 करोड़ रुपये कमाई थे. इनमें से 27 करोड़ रुपये उन्हें क्रिकेट से मिले तो वहीं बाकि 134 करोड़ रुपये उन्होनें विज्ञापन के जरिए कमाए थे.

वहीं बात अगर फोर्ब्स इंडिया 2019 लिस्ट की करें तो इसके मुताबिक सबसे ज्यादा कमाई करने वाले भारतीय सेलिब्रिटीज में विराट कोहली टॉप पर थे. फोर्ब्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक विराट ने 252.72 रुपये की कमाई की थी. बता दें कि फोर्ब्स इंडिया टॉप 100 सेलब्रिटीज उनकी अनुमानित कमाई और प्रिंट-सोशल मीडिया पर उनकी पॉपुलैरिटी को ध्यान में रखकर चुनती है. ये जानकार आप शॉक्ड हो जाएंगे कि विराट हर दिन लगभग 70 लाख रुपये की कमाई करते हैं.

भारत की वो खूबसूरत झील जिसमें दफ़न है रहस्यों का पिटारा, दिल्ली से बस इतनी दूर!

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भारत की वो खूबसूरत झील जिसमें दफ़न है रहस्यों का पिटारा, दिल्ली से बस इतनी दूर!

भारत एक बेइंतेहा खूबसूरत देश है. यहां ऐसी कई खूबसूरत जगहें हैं जिन्हें देख एक पल के लिए लोग स्तब्ध रह जाते हैं. कई लोगों को तो अपनी आखों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है. कई जगहें तो ऐसी है जो अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे हैं. इसके पीछे कई पौराणिक मान्यताएं और धार्मिक आस्था जुड़ी है. आज हम आपको ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आप हैरत में पड़ जायेंगे.

ऐसे हुआ था झील का निर्माण

एक रिसर्च के मुताबिक ये पता चला है कि ये झील उल्का पिंड के पृथ्वी से तेजी से टकराने से बनी है. शोध से पहले बताया गया कि ये झील करीब 52,000 साल पुरानी है जबकि शोध की मानें तो इसका निर्माण हुए 5 लाख 70 हज़ार साल हो चुके हैं. इसे लोनर क्रेटर झील कहते हैं. बताया जाता है कि वो उल्का पिंड 20 लाख टन वजनी था और 90,000 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से पृथ्वी की ओर गिर रहा था. काफी सालों तक ये भी माना जाता रहा कि ये लोनर क्रेटर झील ज्वालामुखी के मुंह के कारण बनी. लेकिन यहां मस्केलिनाइट भी पाया गया है जो कि एक ऐसा कांच है जो केवल तेज गति से टकराने से ही बनता है.

ये कहानियां भी प्रचलित

हालांकि स्थानीय लोग अभी भी इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं पर विश्वास रखते हैं. उनके हिसाब से सारे वैज्ञानिक तर्क गलत हैं. कहानी के अनुसार लोनसुर नाम के राक्षस ने क्षेत्र में आतंक मचा रखा था. वो लोगों को परेशान और प्रताड़ित करता था. जिसके बाद इस असुर का वध करने खुद भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया और इस असुर को धरती के गर्भ में पहुंचाने के लिए काफी तेज पटका. काफी तीव्र तरीके से पटकने के चलते वहां एक झील रुपी गड्ढा बन गया. बता दें इस लोनार शहर के बीच में एक दैत्य सूडान नाम का मंदिर भी स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जिन्होंने राक्षस लोनासुर का विनाश किया था.

ऐसे पहुंचे इस खूबसूरत जगह

लोनर महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में एक छोटा सा शहर है. आप हवाई मार्ग के जरिये निकटतम एयरपोर्ट औरंगाबाद से भी यहां पहुँच सकते हैं. ये दिल्ली से बस 24 घंटे की दूरी पर है. मुंबई और औरंगाबाद के बीच 20 से अधिक ट्रेनें गुजरती हैं जो मनमाड जंक्शन से गुजरती है. इस बीच आपको हरे भरे खेत, झरनों के शानदार नज़ारे, पहाड़ जैसे मनमोहक द्रश्य देखने को मिलेंगे जो आपके सफ़र को सुहावना बनाने का काम करेंगे. औरंगाबाद में केंद्रीय बस स्टैंड ट्रेन स्टेशन से लगभग 1 किमी दूर है. काफी सैलानी औरंगाबाद में अजंता और एलोरा की गुफाएं देखने आ जाते हैं और वहीँ से वापस लौट जाते हैं. वो लोनर क्रेटर देखने नहीं जाते, लेकिन आपको इस खूबसूरत जगह का एक बार सफ़र तो ज़रूर करना चाहिए.

शशि थरूर के गले में लटके इस डिवाइस को न समझे मामूली, खासियत और कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान!

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शशि थरूर के गले में लटके इस डिवाइस को न समझे मामूली, खासियत और कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान!

अपने लाइफस्टाइल और अंग्रेजी के लिए प्रसिद्ध कांग्रेस नेता शशि थरूर आए-दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहते हैं. वहीं, आजकल ये अपने एक खास गैजेट की वजह से सुर्खियों में हैं. इन दिनों सोशल मीडिया पर शशि की जो तस्वीरें वायरल हो रही हैं, उनमें आप एक गैजेट को देख सकते हैं जो उनके गले पर लटका नजर आएगा. मामूली सा दिखने वाला ये गैजट आम नहीं है आइए आपको इस गैजट की खासियत बताते हैं…

चलता-फिरता पावरहाउस कहलाए जाने वाले पावरबैंक के बारें में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन क्या आपने कभी चलते-फिरते एयरप्यूरीफायर के बारे में सुना व देखा है? अगर नहीं तो आपको बता दें कि शशि थरूर के गले में जो डिवाइस लटका हुआ है वो एक चलता-फिरता एयरप्यूरीफायर है, जो एयरटैमर (AirTamer) है.

क्या है एयरटैमर की खासियत?

बता दें कि जिसके पास ये एयरटैमर होता है उसको किसी एंटी पॉल्यूशन मास्क या सैनेटाइजर की आव्यश्कता नहीं होती है. ये एयरटैमर हवा को साफ करने का कार्य करता है. लगभग 3 फुट तक की हवा को ये एयरप्यूरीफायर साफ करता है.

हर तरह के बैक्टिरिया को मारने में सक्षम

ई-कॉर्मस साइट अमेजन पर दी गई जानकारी के अनुसार एयरटैमर साथ होने से आपके पास खतरनाक वायुकण नहीं आते हैं. जिसके चलते आपको एकदम साफ और ताजी हवा मिलती है. इस गैजेट की मदद से बैक्टिरिया मार जाते है.

चार्ज करना है बेहद आसान

इतना ही नहीं इस एयरप्यूरीफायर को आप बेहद आसान तरीके से चार्ज भी कर सकते हैं. एक माइक्रो यूएसबी चार्जिंग केबल के जरिए इसे आप चार्ज कर सकते हैं. बता दें कि अगर इस एयरप्यूरीफायर की कीमत कि तो इसे आप 8,499 रुपये में खरीद सकते हैं. इतना ही नहीं इस एयरप्यूरीफायर के फिल्टर को बदलने की भी कोई भी जरूरत नहीं है. इस डिवाइस का वजन केवल 50 ग्राम है.

ट्वीट कर डिवाइस के बारे में बता चुके हैं थरूर

आपको बता दें कि एक ट्विटर यूजर ने सांसद थरूर के गले में लटके देखे डिवाइस के बारे में 07 फरवरी को पूछा था, जिसका जवाब थरूर ने दिया था. वो बात अलग है कि कई यूजर्स ऐसे भी थे जिन्होंने इस डिवाइस को जीपीएस ट्रैकर बताया था. इतना ही नहीं कुछ यूजर्स ने तो इसे ऑनलाइन ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी भी कहा था.

इस तरह से करें चीनी लहसुन की पहचान, भूल से भी किया अगर इसका सेवन तो जा सकती है जान!

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इस तरह से करें चीनी लहसुन की पहचान, भूल से भी किया अगर इसका सेवन तो जा सकती है जान!

हर मर्ज की दवा और खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन (Garlic) को जाना जाता है. ज्यादातर लोगों के घरों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, ये बाजारों में भी अलग-अलग कीमतों में बिकता है, देखने में कोई सफेद तो कोई हल्का सा पिंक्सि कलर में बिकता है. लहसुन भी कई तरह की वेराइटी में बाजारों में उपलब्ध होता है. ऐसे में आपको ये ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं आप चीनी लहसुन (Chinese Garlic) का तो सेवन नहीं कर रहे हैं.

हालांकि वाणिज्य मंत्रालय द्वारा 5 साल पहले चीन से लहसुन की खरीदारी पर रोक लगा दी थी, लेकिन हाल ही में कोलकाता में चीन से लाया हुआ लहसुन पाया गया है. जानकारों की मानें तो चीनी लहसुन का ऊपरी हिस्सा बाहर से देखने में सफेद रंग का होता है, लेकिन उसमें के बीज का रंग गुलाबी या थोड़ा काला होता है. इसके अलावा ये चीनी लहसुन आकर में भी बड़ा होता है.

ये तो हम सभी जानते हैं कि हाल ही में चीन में कोरोना वायरस के कारण हजारों लोगों की मौत हो चुकी है जिसका दहशत लोगों में है. वहीं, अगर बात करें चीनी लहसुन कि इस लहसुन को पहले क्लोरीन से ब्लीच किया जाता है जिससे ये देखने में ऊपर की ओर से एकदम सफेद लगे. इतना ही नहीं इसमें कीड़ा मारने वाली औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है. जानकारों को ये भी कहना है कि व्यक्ति की सेहत के लिए चीनी लहसुन हानिकारक है. इसमें कासीनजन (carcinogenic) और जहरीला (toxic) मौजूद होता है. ज्यादा वक्त तक इसका इस्तेमाल करने पर स्वास्थ्य रोग हो सकता है.

पश्चिम बंगाल टास्क फोर्स के सदसय कमल के मुताबिक जिस दिन से चीनी लहसुन की खरीद बिक्री को बंद किया गया है तबसे एनफोर्समेंट डिपार्टमेंट और टास्क फोर्स की टीम हर सब्जी मंडी और दुकानों की जांच करते हैं जिससे कि आम लोगों तक ये जानलेवा लहसुन न पहुंच चुके. उनका आगे कहना है कि ये लहसुन लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है, मीडिया और अख़बारों के जरिए चीनी लहसुन को लेकर आगाह किया जा रहा है. आपको बता दें कि कोलकाता के कई मंडियों में चीनी लहसुन की बिक्री होने की खबरें हैं. दुनियाभर में लहसुन उत्पादन को लेकर भारत का स्थान दूसरे नंबर पर है.

BJP नेता कैलाश विजयवर्गीय ने 20 साल तक जो किया वो करने में नेताओं की बंध जायेगी घिग्घी!

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BJP नेता कैलाश विजयवर्गीय ने 20 साल तक जो किया वो करने में नेताओं की बंध जायेगी घिग्घी!

बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय अक्सर अपने विवादित बयानों और तीखे तेवर के लिए जाने जाते हैं. हाल ही में उन्होंने 20 वर्ष बाद अन्न का निवाला खाया है. बात सुनने में थोड़ी आश्चर्य करने वाली है लेकिन सौ आने सच है. मतलब 20 सालों से अन्न उनके भोजन का हिस्सा ही नहीं था. बताया जाता है कि उन्होंने ऐसा मुश्किल संकल्प इंदौर के विकास के लिए ही लिया था.

महात्मा ने कही थी ये बात

बता दें, कैलाश विजयवर्गीय सन 2000 में जब इंदौर के मेयर निर्वाचित हुए उस समय उन्‍हें किसी महात्‍मा ने बताया था कि शहर पितृ दोष से ग्रस्‍त है, और इसी वजह से इंदौर का विकास रुका हुआ है. उन्होंने इस दोष को दूर करने के लिए एक उपाय बताया. महात्मा ने कहा कि अगर इंदौर के पितृ पर्वत पर भगवान श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्‍थापित की जाए तो यह दोष दूर हो सकता है.

विजयवर्गीय ने लिया ये संकल्प

कैलाश विजयवर्गीय ने अपने जन्‍मस्‍थान इंदौर की उन्‍नति के लिए संकल्‍प लिया कि वह जब तक पितृ पर्वत पर विश्‍व की सबसे ऊंची अष्‍टधातु की प्रतिमा स्‍थापित नहीं कराएंगे तब तक अन्‍न ग्रहण नहीं करेंगे. अब आख़िरकार 20 साल बाद जाकर उनका यह संकल्‍प पूरा हुआ है. इंदौर के पितृ पर्वत पर 72 फीट ऊंची, 108 टन वजन की अष्‍टधातु की हनुमान जी की प्रतिमा स्‍थापित कर उसकी प्राण प्रतिष्‍ठा की गई. जिस पर करीब 15 करोड़ रुपये का खर्चा हुआ है.

20 साल बाद किया अन्न ग्रहण

हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा के साथ महामंडलेश्वर जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी जी महाराज, संत मुरारी बापू और वृंदावन से महामंडलेश्वर गुरुशरणानंदजी महाराज की उपस्थित में कैलाश विजवर्गीय ने 20 साल बाद संकल्‍प पूरा होने पर अन्‍न ग्रहण किया. बता दें इन 20 वर्षों में कैलाश को उनकी पत्नी आशा विजयवर्गीय का पूरा सहयोग मिला. आशा ने उन्‍हें फल, साबूदाने, सवा के चावल वगैरह की खाद्य सामग्री खाने के लिए दी. दो दशकों में लगभग यहां एक लाख पौधे भी लगाए गए जो अब वृक्ष का रूप ले चुके हैं.

कभी 500 की सैलरी पाने वाला ये डिजाइनर आज कमाता है करोड़ों, कुछ ऐसा था फर्श से अर्श तक का सफ़र

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कभी 500 की सैलरी पाने वाला ये डिजाइनर आज कमाता है करोड़ों, कुछ ऐसा था फर्श से अर्श तक का सफ़र

आज के समय में फैशन की दुनिया में मनीष मल्होत्रा एक बड़ा नाम हैं. भारत के सबसे नामी डिज़ाइनर में गिने जाने वाले मनीष के डिजाईन किये हुए कपड़े हर सेलेब से लेकर बड़े बड़े उद्योगपतियों के घरानों में पहने जाते हैं. लेकिन इस मुकाम को पाना मनीष के लिए बिलकुल भी आसान नहीं था. उन्हें अपनी जिंदगी में इस दौरान काफी मुश्किलों से जूझना पड़ा जिसका जिक्र उन्होंने हाल ही में अपने इंटरव्यू में किया है.

मां के कपड़े देख हुआ फैशन से प्यार

हाल ही में दिए गए इंटरव्यू में मनीष ने बताया कि उन्हें पढ़ाई करना बिलकुल पसंद नहीं था. हालांकि इस मामले में उनका घरवालों की तरफ से कोई दबाव नहीं था. वो जो भी करना चाहते थे बचपन से ही उन्हें अपनी मां का हमेशा से सपोर्ट मिला. वो ये भी बताते हैं कि फैशन की तरफ उनका झुकाव मां के कपड़ों से होता चला गया. बचपन में वो अपनी मां के लिए कपड़े सेलेक्ट करने में उनकी मदद करते थे.

सिर्फ 500 रुपये थी पहली कमाई

पंजाबी माहौल में पले बढ़े मनीष ने छठी कक्षा में पेंटिंग और आर्ट की क्लास ज्वाइन की थी. उन्हें ये क्लास बेहद पसंद थी. स्कूल में मनीष को अपना इन्ट्रेस्ट तो पता चल गया लेकिन उसको सही आकार कॉलेज में आकर मिला. कॉलेज में उनके कनेक्शन बनते गए. जिसके बाद उन्होंने मॉडलिंग के साथ ही बुटीक में काम करना शुरू किया. यहां उन्होंने बारीकी से डिजाईनिंग सीखी जिसकी उन्हें मासिक मात्र 500 रुपये तनख्वाह मिलती थी. लेकिन वो इस सैलरी में संतुष्ट थे क्योंकि उस दौरान उनके पास विदेश से डिजाईनिंग सीखने के पैसे नहीं हुआ करते थे.

श्रीदेवी की मौत ने दिया गहरा सदमा

आख़िरकार उनकी मेहनत और लगन काम आई, और अपने करियर में उन्हें एक बड़ा ब्रेक मिला. 25 साल की उम्र में उन्हें जूही चावला की एक फिल्म में बतौर डिजाइनर काम करने का मौका मिला. लेकिन उनके लिए टर्निंग पॉइंट ‘रंगीला’ फिल्म साबित हुई जिसके लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया. इसके बाद तो जैसे प्रसिद्धि उनके कदम चूमती गई और 2005 में उन्होंने खुद का लेबल लांच कर दिया.

हालांकि एक वक़्त ऐसा भी आया जिसने मनीष को अंदर तक झकझोर कर रख दिया. 24 फरवरी 2018 में श्रीदेवी की मौत उनके लिए किसी गहरे झटके से कम नहीं थी. श्रीदेवी का यूं आकस्मिक तरीके से दुनिया से चले जाने की स्थिति से उबर पाना मनीष के लिए आसान नहीं था लेकिन इस स्थिति का सामना करने में भी उनके काम ने ही उनकी मदद की.

Leap Year: हर 4 साल बाद आखिर क्यों बढ़ता है एक दिन और फरवरी में ही क्यों होते हैं 29 दिन?

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Leap Year: हर 4 साल बाद आखिर क्यों बढ़ता है एक दिन और फरवरी में ही क्यों होते हैं 29 दिन?

हर चार साल बाद 366 दिनों वाला वर्ष आता है जिसे ‘लीप ईयर’ (Leap Year) कहते हैं. हालांकि साल में कितने दिन होते हैं अगर ये सवाल किया जाए तो 365 ही कहा जाता है, क्योंकि हर वर्ष फरवरी माह सिर्फ 28 दिनों का होता है. जबकि लीप ईयर में फरवरी का महीना 29 दिनों का होता है. वहीं, इस साल यानी 2020 में 29 फरवरी (29 February) का दिन पड़ रहा है. क्या आप ये जानते हैं कि लीप ईयर अन्य वर्षों की तुलना में एक दिन अधिक क्यों होता है? अगर नहीं, तो आइए आपको बताते हैं…

आखिर क्यों बढ़ता है एक दिन?

पृथ्वी के मौसम के अनुरूप एक कैलेंडर होता है. इसमें पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में लगे समय के हिसाब से दिनों की संख्या होती है. बता दें कि पृथ्वी को सूर्य के चारों तरफ एक चक्कर पूरा करने में करीब 365.242 दिन का वक्त लगता है. हालांकि हर वर्ष में आमतौर पर सिर्फ 365 दिन होते हैं. वहीं, अगर पृथ्वी द्वारा लगाए गए अतिरिक्त वक्त 0.242 दिन को चार बार जोड़ेंगे तो ये वक्त 1 दिन के समान होता है.

जिसके चलते 4 सालों में तकरीबन 1 पूरा दिन होता है और कैलेंडर में हर चार साल में एक बार अतिरिक्त दिन जोड़ा जाता है, जिसे लीप ईयर कहा जाता है. जो देखने में गलत लग सकता है, लेकिन इस गलती को ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) द्वारा सुधारा किया गया था, जिसके जरिए हमें दिन-तारीख का अब पता चलता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर को साल 1582 में पेश किया था.

क्या ग्रेगोरियन कैलेंडर से पहले भी कोई कैलेंडर था?

अगर आपका भी ये ही सवाल है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर से पहले कोई कैलेंडर था या नहीं तो आपको बता दें कि इससे पहले भी एक कैलेंडर हुआ करता था, जिसे जूलियन कैलेंडर के नाम से जाना जाता है. इस कैलेंडर को 45 ईसा पूर्व में लाया गया था, लेकिन इस प्रणाली में लीप ईयर को लेकर कैलेंडर अलग होता था.

जब जूलियन कैलेंडर में 4 के बाद आ गई 15 तारीख

पृथ्वी के एक चक्कर लगाने के निश्चित वक्त की जानकारी न होने के चलते जूलियन कैलेंडर में खामियां आने लगीं. जिसके चलते ये कैलेंडर 10 दिन पीछे हो गया यानी 4 अक्तूबर के बाद सीधे 15 अक्तूबर की तारीख आएगी थी, इस तरह की गलती को सुधारा गया था. जूलियन कैलेंडर में पोप ने लीप ईयर सिस्टम को भी संशोधित किया. जिसके बाद नई प्रणाली को ग्रेगोरियन कैलेंडर के तौर पर जाना जाने लगा.

लीप ईयर ऐसे करें पता

जो साल पूरी तरह से 4 से भाग किया जा सकता है वो लीप ईयर कहलाता है, जैसे- 2000 को 4 से पूरी तरह भाग किया जा सकता है. ऐसे ही 2004, 2008, 2012, 2016 और अब इस नए साल 2020 को इसी क्रम में शामिल किया जा सकता है.

दूसरी ट्रिक ये भी है कि अगर कोई साल 100 से पूरी तरह भाग किया जा सके तो वो लीप ईयर नहीं होगा, लेकिन अगर वही साल पूरी तरह से 400 की संख्या से भाग हो जाता है तो वो लीप ईयर कहला जाएगा. जैसे- 1500 को 100 से भाग कर सकते हैं लेकिन ये 400 से पूरी तरह डिवाइड नहीं होगा. ऐसे ही साल 2000 को 100 और 400 दोनों से पूरी तरह भाग कर सकते हैं, जिसके चलते साल 2000 लीप ईयर कहलाएगा.

FSSAI: मिठाई बेचने वाली दुकानों के लिए सरकार ने पेश किया ये नियम, अब 1 जून से जरूरी होंगी ये चीजें!

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FSSAI: मिठाई बेचने वाली दुकानों के लिए सरकार ने पेश किया ये नियम, अब 1 जून से जरूरी होंगी ये चीजें!

“हलवाई की दुकान” यहां से गुजरने पर एक पल के लिए कदम तो आपके भी ठहरते होंगे. यहां से आने वाले तरह-तरह के पकवानों की खुशबू आपको रोक ही लेती होगी, लेकिन अगर ये दुकान घर के पास होती है तो यहां से खान-पान का सामान लेने में आप शायद थोड़ा डरते भी होंगे कि इसकी क्वालिटी सही होगी भी या नहीं. वहीं, अब आपको किसी भी स्थानीय मिठाई की दुकानों या पड़ोस वाली हलवाई की दुकान (sweet shop) से सामाने लेने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ेगा, क्योंकि इन दुकानों के सामानों को लेकर सरकार ने इनकी क्वालिटी में सुधार लाने के लिए नए नियम लागू करने का फैसला लिया है.

जी हां, 1 जून 2020 के बाद से सभी स्थानीय मिठाई की दुकानों के लिए एक नया नियम लागू हो जाएगा, जिसके तहत उन्हें अपने परातों एवं डब्बों में बिक्री के लिए रखी गई मिठाईयों के “निर्माण की तारीख” (Date of manufacture) और “उपयोग की उपयुक्त अवधि” (Suitable duration of use) जैसी जानकारी को जरूर लिखना होगा. हालांकि अभी भी इन जानकारियों को पहले से बंद डिब्बाबंद मिठाई के डिब्बे पर लिखना जरूरी है.

इसलिए उठाया गया ये कदम

आम लोगों के स्वास्थ्य खतरों को ध्यान में रखते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी (FSSAI-Food Safety and Standards Authority of India) ने ये कदम उठाया है. ये निर्देश उसके बाद जारी की गए जब सूचना मिली कि उपभोक्ताओं को बासी या खाने की अवधि खत्म होने के बाद भी मिठाइयों की बिक्री की गई.

FSSAI ने दिया आदेश

FSSAI द्वारा आदेश देते हुए कहा गया कि “सार्वजनिक हित में और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, ये तय किया गया है कि खुली बिक्री वाली मिठाइयों के मामले में, बिक्री के लिए रखी मिठाई के कंटेनर या ट्रे पर ‘निर्माण की तारीख’ और ‘उपयोग की अवधि’ जैसी जानकारियों को प्रदर्शित करना होगा.”

इस दिन से ये नियम हो जाएगा लागू

आदेश के मुताबिक 1 जून, 2020 से ये प्रभावी होगा. राज्यों के खाद्य सुरक्षा आयुक्तों (Food safety commissioners) को इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना होगा. जिसके चलते कोई भी हलवाई की दुकान में अब मिठाई ‘निर्माण की तारीख’ और ‘उपयोग की अवधि’ जैसी जानकारी के बिना नहीं बेचा जा सकेगा.

एक दूसरे से कितने अलग हैं मोदी-ट्रंप के विशेष विमान, खासियतें ऐसीं कि बाल भी नहीं हो पायेगा बांका

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एक दूसरे से कितने अलग हैं मोदी-ट्रंप के विशेष विमान, खासियतें ऐसीं कि बाल भी नहीं हो पायेगा बांका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने की ख़बरों के बीच उनका विशेष विमान भी सुर्ख़ियों में है. किसी ताकतवर देश का नेता जब दूसरे देश के दौरे पर होता है, तब उड़ान के दौरान आसमान में सुरक्षा के कड़े इंतजामात होते हैं. ट्रंप का विमान ‘एयर फोर्स वन’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें वो सारे सुरक्षा तंत्र लगे होते हैं जो किसी भी हमले को नाकाम कर सके. जबकि पीएम मोदी के विशेष विमान का नाम एयर इंडिया वन है. ये बोईंग 747-400 विमान है. इस विमान का इस्तेमाल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की हवाई यात्रा में इस्तेमाल किया जाता है. आइये जानें क्या है इन दोनों सुप्रीम नेताओं के विशेष विमान में विशेष अंतर.

अमेरिकी राष्ट्रपति का विमान

 

अमेरिकी राष्ट्रपति का विमान एयरफोर्स वन खास तरीके से निर्मित बोइंग 747-200B सीरीज के विमानों में से एक है. इनके विमान को भी उड़ता वाईट हाउस माना जाता है. इस विमान की खासियत ये है कि विमान में होने के बाद भी अमेरिकी राष्ट्रपति किसी से भी कनेक्ट रह सकते हैं. साथ ही अगर अमेरिका पर हमला हो जाए, तो इस विमान को मोबाइल कमांड सेंटर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.

भारतीय पीएम का विमान

पीएम मोदी का विमान एयर इंडिया वन भी किसी से कम नहीं है. ये एक ‘उड़ता हुआ किला’ है जिसमें आधुनिक संचार उपकरण लगे हैं. इसका डिप्लॉयमेंट नई दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट स्थित द एयर हेडक्वार्टरस कम्युनिकेशन स्क्वाड्रन के अधीन होता है. पीएम की यात्रा के वक़्त ये एक मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय में तब्दील होता है. इसमें बेहद आधुनिक और सुरक्षित कम्युनिकेशन सिस्टम लगे होते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति के बेड़े में दो विमान

अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष विमान एयर फोर्स वन के बेड़े में दो विमान हैं. एक के उड़ान भरने पर दूसरा स्टैंड बाय मोड में रहता है. स्टैंड बाय मोड वाला विमान चंद मिनटों के नोटिस पर उड़ने के लिए हमेशा तैयार रहता है. ये विमान पूरी तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए समर्पित है.

यात्री सेवा में लगा दिया जाता है पीएम मोदी का विमान

अगर पीएम मोदी के विमान एयर इंडिया वन का VVIP यूज़ नहीं होता है तो ये सामान्य यात्री सेवा में लगा दिया जाता है. लेकिन इस व्यवस्था को जल्द ही ख़त्म किया जा सकता है. खबरें है कि पीएम मोदी के लिए लाया जा रहा विशेष विमान कभी यात्री सेवा में नहीं यूज़ किया जायेगा.

26 साल बाद बदलने वाला है पीएम मोदी का विमान

एयर इंडिया वन 26 साल से भारतीय पीएम के लिए विशेष विमान के तौर पर काम कर रहा है. लेकिन अब इसकी जगह जल्द ही बोइंग 700-300ER इस वर्ष जुलाई के महीने में लेने वाला है. पिछले साल जनवरी में बोइंग ने दो 700-300ER विमानों की डिलीवरी कर दी थी. जिसके बाद इस दोनों विमानों को एडवांस्ड सुरक्षा कवर देने के लिए अमेरिका भेज दिया गया था. विमान में मिसाइल सिस्टम और काउंटर-मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम्स (CMDS) लगे होंगे. साथ ही लार्ज एयरक्राफ्ट इन्फ्रारेड काउंटर मेजर्स (LAIRCM) सेल्फ प्रॉटेक्शन सूट्स (SPS) भी होंगे.