हम सब जानते है कि बाबा साहेब का जन्म एक महार परिवार में हुआ था, जिसको उस समय अछूत जाति माना जाता है. साथ ही उनके घर की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं थी. लेकिन फिर भी बाबा साहेब के पिता ने बाबा साहेब को खूब पढ़ाया था. बाबा साहेब अपने समय के सबसे पढ़े लिखे व्यक्तियों में से थे. बाबा साहेब भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थी, जिन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डिग्री प्राप्त की थी. बाबा साहेब को किताब से बहुत लगाव था. वह रात भर किताब पड़ते थे, सुबह 2 घंटे के लिए सोते थे. बाबा साहेब ने अपने जीवन का काफी लम्बा समय विभिन्न धर्मो का गहन अध्ययन करने में लगा दिया था. क्यों कि उन्होंने बचपन से ही हिन्दू धर्म में जातिगत भेदभाव का सामना किया था, जिसके चलते वह अपना धर्म बदलना चाहते थे.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बाबा साहेब के जीवन के कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू करायेंगे, जिनसे आप वाखिफ नहीं है. आज हम आपको बताएंगे कि बाबा साहेब ने बिड़ला के पैसों को लेने से इंकार क्यों कर दिया था.
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बाबा साहेब ने बिड़ला के पैसों को लेने से कर दिया था इनकार
हम आपको बता दे कि बाबा साहेब को बचपन से ही जातिगत भेदभव का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद अपने जीवन के एक लम्बे समय तक उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन समाज की स्थिति पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. बाबा साहेब ने हिन्दू धर्म मे जातिगत भेदभाव होने के कारण, अपने धर्म परिवर्तन करने का फैसला कर लिया था. जिसके चलते उन्होंने काफी धर्मो का गहन अध्ययन किया था. बाबा साहेब ने अपने एक भाषण में हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ गीता की भी आलोचना की थी.
हम आपको बता दे कि 1950 में एक महशूर उद्योगपति घनश्याम दास बिडला के भाई जुगल किशोर बिडला बाबा साहेब के घर आए, बाबासाहेब के सहयोगी रहे शंकरानंद शास्त्री ‘माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर’ में लिखते हैं कि “भगवतगीता की आलोचना करने पर बिडला ने बाबा साहेब से सवाल किया की भगवतगीता एक पवित्र ग्रन्थ है. उसे हिन्दुओं का साथ पाने के लिए गीता के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए”
“बिडला ने बाबा साहेब को कहा कि जहाँ तक छुआछुत को दूर करने की बात है, वो इसके लिए उसे दस लाख रूपये देने के लिए तैयार है, लेकिन बाबा साहेब ने उसके पैसे लेने से इंकार कर दिया और कहा कि मैं खुद को किसको बेचने के लिए पैदा नहीं हुआ हूं”.
बाबा साहेब ने हिन्दू धर्म के पवित ग्रन्थ की आलोचना के ऊपर कहा की, मैंने भगवतगीता की आलोचना इसीलिए की, भगवतगीता समाज को बाटने की शिक्षा देती है. जो हमारे समजा के लिए सही नहीं है. बाबा साहेब ने खुद के जमीर को कुछ पैसो के लिए बेचने से इंकार कर दिया था. और दलितों को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई जारी रखी. बाबा साहेब ने अपने अंतिम दिनों में हिन्दू धर्म को छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लिया था.
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