Kanshiram letter to his Family in Hindi – कांशीराम जिन्होंने दलितों को ये नारा दिया अब हमें अपने हक के लिए लड़ना होगा क्योंकि गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी और इस नारे और कांशीराम की दलितों को सम्मान दिलाने की सोच ने दलितों को नया पायदान दिया. कांशीराम वो शख्स थे जिन्होंने दलितों के साथ हो दुर्व्यवहार के लिए आवाज उठाई और दलितों को समाज में उनकी पहचान दिलाने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की और इस आंदोलन की शुरुआत करने के पहले उन्होंने एक 24 पन्ने का खत लिखा. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको काशीराम के उसी 24 पन्ने के खत के बारे में बताने जा रहे हैं.
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नौकरी के दौरान कांशीराम ने देखा भेदभाव और शोषण
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का जन्म रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हुआ था. पहले उनका परिवार दलित था लेकिन बाद उनके परिवार ने सिख धर्म अपना लिया. इस सिख धारण को अपनाने के बाद जहाँ उनके परिवार को बड़ी जातियों के बारबार सम्मान तो नहीं मिला लेकिन दलितों के ऊपर होने वाले अत्याचार और अपमान थोडा कम हो गया.
वहीं 1956 में ग्रेजुएट होने के बाद कांशीराम ने 1958 में पुणे के पास स्थित किरकी के डीआरडीओ (DRDO) में आरक्षण के तहत लैब असिस्टेंट की नौकरी की और इस नौकरी के दौरान उन्होंने देखा कि पिछड़ी जाति के लोगों के साथ किस तरह का भेदभाव या उनका किस तरह से शोषण हो रहा है और यही से कांशीराम के मन में पिछड़ी जाति के लोगो के साथ हो रहे भेदभाव और शोषण को खत्म करने की शुरुआत हुई.
कांशीराम ने क्यों छोड़ दी DRDO की नौकरी
जाति का भेदभाव अंबेडकर जी के साथ हुआ था और इस भेदभाव को लेकर अंबेडकर जी ने कई सारी किताबें भी लिखी और इनमे से एक किताब डीआरडीओ में कांशीराम के साथ काम करने वाले खपारडे ने उन्हें पढने के लिए दी और इस किताब का नाम ‘एनाहिलेशन ऑफ कास्ट’ था, इस किताब को कांशीराम ने बिना सोये तीन बार पढ़ा और इस किताब को पढ़ने के बाद उन्होंने अंबेडकर जी की एक और किताब पड़ी और उन्हें पता चला कि देश में अछूतों का कितना बुरा हुआ है और यहाँ से कांशीराम ने नए सफ़र की शुरुआत की और ये सफर दलितों को ऊपर हों रहे अत्याचर और शोषण को खत्म करने था और इसके लिए उन्होंने नौकरी छोड़ना तय किया.
परिवार को लिखा 24 पन्ने का खत
कांशीराम ने नौकरी छोड़ दी और नौकरी छोड़ने पर उन्होंने अपने परिवार (Kanshiram letter to his Family) को 24 पन्ने का एक पत्र लिखा और पत्र में उन्होंने अपने परिवार के लिए लिखा कि अब वे संन्यास ले रहे हैं और इस वजह से उनक परिवार के साथ कोई भी रिश्ता नहीं है. वहीं वो अब परिवार के किसी भी आयोजन में शामिल नहीं होंगे घर नहीं आयेंगे. कभी अपना घर नहीं खरीदेंगे. गरीबों दलितों का घर ही उनका घर है. कोई नौकरी नहीं करेंगे. इसी के साथ उन्होंने पत्र में ये भी लिखा कि कि वे पूरी जिंदगी में शादी नहीं करेंगे और उनका पूरा जीवन पिछड़ों के उत्थान को समर्पित है. वहीं जब तक बाबा साहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठेंगे.
पिता के अंतिम संस्कार में भी नहीं हुए शामिल
कांशीराम ने 24 पन्ने का खत लिखकर जो भी फैसले किये थे इस फैसले का सबूत उनके पिता की देहांत पर देखने को मिला. जैसे की उन्होंने फैसला किया वो परिवार से रिश्ता नहीं रखेंगे तो वहीं वो अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए और दलितों के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया.
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