साल 2002 में हुए गोधरा काण्ड में बोगी जलाने वाले दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने 8 दोषियों की जमानत मंजूर कर ली है. आपको बता दें ये सभी दोषी उम्रकैद की सजा काट रहे थे. इन सभी दोषियों को निचली अदालत और हाई कोर्ट से उम्रकैद की सजा मिली थी. ट्रेन की बोगी को आग लगाए जाने के बाद पूरा गुजरात सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया था. हालांकि कोर्ट ने ऐसे 4 आरोपियों को जमानत देने से माना कर दिया जिन्हें निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी और बाद में जब मामला जब हाई कोर्ट में पंहुचा था तो कोर्ट ने इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.
Godhra train burning: Supreme Court grants bail to 8 convicts; refuses relief to four on death row
report by @DebayonRoy #SupremeCourtofIndia #SupremeCourt https://t.co/1NVyyczjLA
— Bar & Bench (@barandbench) April 21, 2023
CJI डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने उन्हें राहत देते हुए इस बात पर ध्यान दिया कि वे कितना समय जेल में बिता चुके हैं और उनकी अपीलों के जल्द ही निस्तारण के लिए लिए जाने की संभावना नहीं है.
जमानत मिलने वाले आरोपियों के नाम
सुप्रीम कोर्ट ने जिन आरोपियों को जमानत दी है उनके नाम हैं- अब्दुल सत्तार गद्दी, यूनुस अब्दुल हक, मो. हनीफ, अब्दुल रउफ, इब्राहिम अब्दुल रज़ाक़, अयूब अब्दुल गनी, सोहेब यूसुफ और सुलेमान अहमद. इन सभी लोगों पर ट्रेन में जल रहे लोगों को बाहर आने से रोकने का दोष साबित हुआ है.
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जिन 4 लोगों को रिहा करने से कोर्ट ने आज मना कर दिया है, वह हैं- अनवर मोहम्मद, सौकत अब्दुल्ला, मेहबूब याकूब मीठा और सिद्दीक मोहम्मद मोरा. इन पर हत्या में सीधे शामिल होने का दोष साबित हुआ है. गुजरात सरकार ने इनको मौत की सज़ा देने की मांग की है.
7 लोगों की जमानत याचिका पेंडिंग
साबरमती एक्सप्रेस की बोगी को फूंकने के केस में कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी माना है. इन दोषियों में शुक्रवार को 8 लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है. जबकि 15 लोगों की जमानत याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है. सात लोगों की जमानत याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. एक दोषी को पिछले साल दिसंबर में ही जमानत मिल गई थी.
किस आधार पर दोषियों को दी गई जमानत?
पिछले साल दिसंबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के एक दोषी फारुक को जमानत दी थी. निचली अदालत में फारुक पर ट्रेन के जलते डिब्बे से लोगो को बाहर आने से रोकने के लिए पथराव का दोष साबित हुआ था. उस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को आधार बनाया था कि फारूक 17 साल से जेल में है.
जबकि, इस साल 18 अप्रैल को निचली अदालत से फांसी की सज़ा मिलने के कारण इरफान घांची और सिराज मेदा की जमानत याचिका सुप्रीम ठुकरा कर चुका है. कई दोषियों की जमानत पर अभी सुप्रीम कोर्ट ने विचार नहीं किया है.
’11 लोगों को मिली थी सजा -ए-मौत’
मामले के कुल 31 दोषियों में से 11 को निचली अदालत ने मृत्युदंड दिया था, जबकि 20 को आजीवन कारावास की सज़ा दी थी. अक्टूबर 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने 11 लोगों की फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदल दिया था. वहीं निचली अदालत से उम्र कैद पाने वाले 20 लोगों की सज़ा को हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था. इन सभी लोगों की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
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गुजरात सरकार ने किया विरोध
गुजरात सरकार का प्रतिनिध्गित्व ने कहा था कि ये केवल पथराव का मामला नहीं है, क्योंकि दोषियों ने साबरमती की एक बोगी में आग लगा दी थी जिससे कुल 59 लोगों की मौत हुई थी. सजा के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं लंबित हैं. गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को ट्रेन की एस-6 बोगी में आग लगाए जाने से 59 लोगों की मौत हो गई थी.
इसके बाद राज्य के कई हिस्सों में दंगे भड़क उठे थे. उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2017 के अपने फैसले में गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में 11 दोषियों को दी गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. उसने 20 अन्य को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था.