आखिर पाकिस्तान में कभी क्यों नहीं उठती खालिस्तान की मांग? जानिए सिखों को कैसे कण्ट्रोल करता है पाकिस्तान

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खालिस्तान की भावना पंजाब के इतिहास में शुरू से ही मौजूद रही है। आजादी से पहले भी पंजाब के अलग राष्ट्र की मांग हो रही थी। हालांकि, आजादी के बाद खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ लिया। इसका मुख्य कारण पंजाब का विभाजन माना गया। भारत से पाकिस्तान के अलग होने के बाद पंजाब दो भागों में बंट गया, कई प्रमुख सिख गुरुद्वारे पाकिस्तान शासित पंजाब में चले गये। आजादी के बाद पंजाब का 60% से ज्यादा हिस्सा पाकिस्तान में आ गया जबकि करीब 38% हिस्सा भारत में आ गया। लेकिन अगर आप ध्यान देंगे तो भारत में पंजाब का हिस्सा पाकिस्तान से कम होने के बावजूद आपको खालिस्तानी आंदोलन सिर्फ भारत में ही देखने को मिलेगा। पाकिस्तान में भी पंजाब का एक बड़ा हिस्सा है, वहां भी सिख हैं, लेकिन पाकिस्तान के सिखों ने  खालिस्तान को लेकर कभी आवाज नहीं उठाई।

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कहां से आया खालिस्तान शब्द

आइए सबसे पहले जानते हैं खालिस्तान से जुड़े इस खालसा शब्द का मतलब। खालसा अरबी शब्द खालिस से बना है, जिसका अर्थ शुद्ध होता है। गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में सिखों के बीच खालसा संप्रदाय की स्थापना की थी। खालिस्तान इसी खालसा से बना है और इसका मतलब खालसा का शासन है।

कहा जाता है कि खालिस्तान शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1940 में हुआ था। ये वो दौर था जब देश आज़ाद नहीं हुआ था। 1930 में शायर मो. इकबाल की पाकिस्तान की मांग के दस साल बाद भारत और पाकिस्तान के बीच खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ लिया। आजादी के बाद से सिखों का कहना था कि भाषा के आधार पर एक अलग पंजाब देश बनाया जाना चाहिए और भाषाओं की सूची में गुरुमुखी को भी शामिल किया जाना चाहिए। हालांकि 1966 में भाषा के आधार पर पंजाब को एक अलग राज्य बना दिया गया। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने 1966 में सिखों के लिए अलग राज्य तो बना दिया, लेकिन अंदर ही अंदर मांग जारी रही।

भारत में खालिस्तान की मांग बढ़ती रही

विदेशों में खालिस्तानी आंदोलन की नींव पड़ रही थी, देश में पंजाब बन चुका था. 1978 में एक बार फिर जोर दिया गया और पंजाब के लिए विशेष दर्जे की मांग की गयी। रक्षा, संचार, विदेश नीति और मुद्रा को छोड़कर बाकी सभी चीजों पर राज्य का अधिकार देने की मांग की गई। हालांकि, विदेशों में लगातार खालिस्तान की मांग उठ रही थी। इधर पंजाब में भिंडरावाले मजबूत होता जा रहा था। 80 के दशक में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ीं, धीरे-धीरे खालिस्तान आंदोलन बढ़ता गया।

वर्तमान स्थिति की बात करें तो मौजूदा व्यवस्था के तहत विदेशों में बसे सिखों का अलगाव बढ़ गया है, खासकर किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद जब वहां मौजूद सिखों को दक्षिणपंथी मीडिया और सोशल मीडिया में खालिस्तानी समर्थक के रूप में चित्रित किया गया था।

खालिस्तान में पाकिस्तान की एंट्री

अब बात करते हैं पाकिस्तान की, कैसे पाकिस्तान खालिस्तान के चंगुल से छूटा हुआ है। अगर खालिस्तान अपने ही धर्म के लोगों के हितों की मांग कर रहा है तो ये खालिस्तान पाकिस्तान में बैठे सिखों के लिए आवाज क्यों नहीं उठाता। इन सवालों का एक ही जवाब है और वो है पाकिस्तान का खालिस्तान से कनेक्शन। दरअसल, आज खालिस्तान जिस दम पर भारत से भिड़ने की कोशिश कर वह सपोर्ट उसे पाकिस्तान से ही मिल रहा है। दरअसल, भारत को तोड़ने की अपनी रणनीति के तहत पाकिस्तान अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देशों में खालिस्तान आंदोलन को समर्थन देने के लिए पैसे दे रहा है। जहां पाकिस्तानी आबादी बड़ी है और सत्ता के गलियारों तक उसकी पहुंच है, वहां उनका काम आसान हो जाता है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के पूर्व प्रमुख हामिद गुल का कहना है कि भारत के पंजाब में खालिस्तान आंदोलन पाकिस्तानी सशस्त्र बलों द्वारा बिना कोई पैसा खर्च किए खालिस्तानियों के रूप में पड़ोसी देश तक पहुंचने का एक तरीका है। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI के पास भी एक विशेष सेल है जो केवल पंजाब और खालिस्तान आंदोलनों से निपटती है।।

पाकिस्तान रचता रहा है साजिश

माना जाता है कि 1971 में पहली बार अमेरिका ने तत्कालीन पाकिस्तानी जनरल याह्या खान के साथ मिलकर पंजाब में भारत के खिलाफ विद्रोह भड़काने की साजिश रची थी। इंदिरा गांधी ने अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA पर भी पंजाब में अशांति फैलाने का आरोप लगाया। हालांकि अमेरिका ने इन आरोपों से इनकार किया है।

खुद पाकिस्तान के कई बड़े रक्षा विशेषज्ञों ने माना है कि खालिस्तान आंदोलन के पीछे उनका हाथ है। वरिष्ठ पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ और पाकिस्तानी सेना में गहरी पैठ रखने वाले जैद हामिद ने कैमरे के सामने कहा कि हां, हमने भारत को नीचा दिखाने के लिए खालिस्तान आंदोलन शुरू किया था।

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