ये दिल दहला देने वाली कहानी है राजा कोलंदर( Raja Kolander) की. वो नाम से भले ही राजा था लेकिन था एक सीरियल किलर. जिसने एक दो नहीं बल्कि 14 लोगों को सिर्फ अपने शौक के लिए मार डाला. उसके शौक भी बेहद अजीब और डरावने थे. जिसकी शक्ल देखने मात्र से ही आपकी हालत टाइट हो जाती. ये ना सिर्फ लोगों का कत्ल करता बल्कि उनकी शरीर को कई टुकड़ों में काटता और फिर लाश के टुकड़ों को अलग-अलग जगह पर फेंक देता या फिर अपने फॉर्म हाउस में दफना देता, लेकिन ये लाश के सिर को अपने साथ ले जाता. ये सीरियल किलर खोपड़ी को फोड़कर उसके अंदर से दिमाग निकालकर उसे सूप बनाकर पीता था. आज इस लेख में आपको बताएँगे इसके 14 नरमुंडों की कहानी…
साल 2000, दिन 14 दिसम्बर प्रयागराज
शंकरगढ़ कस्बे में रहने वाले पत्रकार धीरेंद्र सिंह (Dhirendra Singh) दैनिक समाचार पत्र आज में काम करते थे. उन्होंने अपने काम से अपनी अलग पहचान बनाई थी. उस दिन भी वो अपने काम पर जाने के लिए घर से निकले थे, लेकिन फिर कभी लौटकर वापस नहीं आए. उनके परिजनों ने उन्हें सभी जगह तलाश किया. उनके बारे में पड़ोस से लेकर दफ्तर तक और दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक पूछताछ की, लेकिन धीरेंद्र का कुछ पता नहीं चला. मामला पुलिस तक जा पहुंचा. पुलिस ने बिना देर किए थाना कीडगंज में पत्रकार की गुमशुदगी दर्ज कर ली और धीरेंद्र की तलाश शुरु कर दी. लेकिन पुलिस को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि ये तलाश लंबी होने वाली है.
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कौन है रामनिरंजन कोल? (Who is Ram Niranjan Kol)
दरअसल, राम निरंजन कोल का नाम ही राजा कोलंदर है. वह प्रयागराज शंकरगढ़ इलाके का रहने वाला है. 90 के दौर में राजा कोलंदर नैनी में मौजूद सीओडी छिवकी में कर्मचारी था. उसकी पत्नी फूलन देवी उन दिनों इलाहाबाद जिला पंचायत की सदस्य थी. राजा कोलंदर ने 90 के दशक में ही जुर्म की राह पकड़ी थी. पुलिस रिकॉर्ड की माने तो साल 1998 में थाना धूमनगंज क्षेत्र के मुंडेरा मुहल्ले में टीवी-वीसीआर किराए पर चलाने वाले एक युवक का मर्डर हुआ था. जिसमें राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर का नाम आया था. इसके बाद वो फरार हो गया था. साल 2000 में भी उसने ताबड़तोड़ वारदातों को अंजाम दिया और पुलिस का सिरदर्द बन गया. अपनी काली करतूतों से उसने इलाके में दहशत पैदा कर दी थी.
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राम निरंजन से कैसे बना रजा कोलंदर
जुर्म की दुनिया में राम निरंजन कोल का नाम बड़ा होता जा रहा था. वह आदिवासी कोल समाज से आता है. लिहाजा, उसका रौब और दहशत देखकर उसकी जाति-बिरादरी के लोग उसे कोल जाति का राजा मानने लगे. तभी उसका नाम राम निरंजन कोल (Ram Niranjan Kol) की बजाय राजा कोलंदर हो गया. फिर पुलिस हो या गाँव के आम लोग, सब उसे राजा कोलंदर के नाम से जानने लगे थे. धीरे-धीरे उसका यही नाम जुर्म की दुनिया में भी आम हो गया. कम ही लोग उसके असली नाम से वाकिफ थे.
यूं खुला धीरेंद्र सिंह की हत्या का राज
पत्रकार धीरेंद्र (Dhirendra Singh murder) को गायब हुए करीब 8 दिन बीत चुके थे. उनके परिवार वाले पुलिस के सामने किसी अनहोनी की आशंका पहले ही जता चुके थे. परिवारवालों ने उनके साथ किसी अनहोनी की आशंका पहले ही जाता दी थी. अब राजा कोलंदर पुलिस की गिरफ्त में था. पुलिस ने उससे पूछताछ शुरू की. पहले वह पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन बाद में उसने पुलिस के सामने जो कहानी बयां की उसे सुनकर पुलिसवाले भी खौफजदा हो गए. हकीकत ये थी कि 14 दिसम्बर 2000 को ही पत्रकार धीरेंद्र सिंह का कत्ल हो चुका था.
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ये थी कत्ल की वजह
उसके कबूलनामे से पुलिस के सामने वो राज खुलने जा रहा था, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी. राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर के बयान दर्ज किए जा रहे थे. वो बोलता जा रहा था, पुलिसवाले खामोशी से सुनते जा रहे थे. इस कत्ल की पटकथा 1998 में ही लिखी गई थी. जब एक मामले में पत्रकार धीरेंद्र सिंह के भाई ने राजा कोलंदर को नामजद करते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी. तभी से राजा कोलंदर धीरेंद्र सिंह के परिवार से दुश्मनी रखने लगा था. उसे पता था कि पत्रकार होने के नाते धीरेंद्र की पुलिस में खासी इज्जत थी. उसके खिलाफ दर्ज हुए मामले में भी उसका हाथ था. लिहाजा वो उससे रंजिश में बदला लेना चाहता था. कुछ जानकारों के मुताबिक पत्रकार धीरेंद्र सिंह को राजा कोलंदर की कुछ काली करतूतों के बारे में पता चल गया था. इस वजह से भी वो धीरेंद्र को अपना दुश्मन मानता था.
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गोली मारकर की थी हत्या
पुलिस को अपने बयान में राजा कोलंदर ने बताया कि वारदात के दिन उसने पत्रकार धीरेंद्र सिंह को विश्वास में लेकर अपने पिपरी फार्म हाउस पर बुलाया था. जब धीरेंद्र सिंह वहां पहुंचे तो दिन ढल चुका था. सर्दियों का मौसम था. जब धीरेंद्र सिंह अपनी मोटरसाइकिल से वहां पहुंचे तो राजा कोलंदर और उसका साला वक्षराज वहां अलाव जलाकर वहीं बैठे थे. उन दोनों ने धीरेंद्र सिंह को भी आग के सामने बैठ जाने को कहा. जब धीरेंद्र भी अलाव के पास बैठ गए तभी उनकी पीठ पर वक्षराज ने गोली मार दी. मौके पर ही धीरेंद्र सिंह ने दम तोड़ दिया.
कर दिए थे लाश के इतने टुकड़े
राजा कोलंदर और उसका साला वक्षराज लाश को ठिकाने लगाने की तैयारी पहले ही कर चुके थे. उन दोनों ने धीरेंद्र की लाश को टाटा सूमों कार में डाला और मध्य प्रदेश की सीमा में दाखिल हो गए. जहां उन दोनों ने पहले धीरेंद्र का सिर और लिंग उसके जिस्म से काटकर अलग किया. फिर लिंग और धड़ को वहीं खेत में दफना दिया. जबकि उसका सिर एक पन्नी में लपेटकर रीवा के बाणसागर तालाब में फेंक दिया. उसके कपड़े उन्होंने एक झाड़ी में फेंक दिए थे. इसके बाद दोनों वहां से निकलकर वापस फार्म हाउस पर आ गए.
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अपने ही दोस्तों का करता था कत्ल
नब्बे के दशक के आखिरी सालों और दो हज़ार की शुरूआत में इस सीरियल किलर का शंकरगढ़ इलाके में आतंक काफी ज्यादा बढ़ गया. ये अपना रुतबा बढ़ाने के लिए एक के बाद एक लोगों के कत्ल कर रहा था. ये खुद को राजा मानता था और चाहता था कि लोग इसे राजा की तरह ही ट्रीट करें. अपराध की दुनिया इसका साला वक्षराज इसका साथ देता था. इसके अलावा एक शख्स काली प्रसाद भी इसके जुर्म का राजदार था. काली प्रसाद श्रीवास्तव ही इसे वो जुर्म करने के बाद पुलिस से बचने के तरीके बताता था. काली के बताए रास्तों की वजह से ही राजा कोलंदर लंबे समय तक पुलिस के हाथ नहीं आया, लेकिन बाद में इस सनकी सीरियल किलर ने काली प्रसाद का भी कत्ल कर दिया.
ऐसे हाथ लगी थी राजा कोलंदर की डायरी
पुलिस जब जांच के दौरान राजा कोलंदर और जिला पंचायत सदस्य फूलन देवी के घर पहुंची तो वहां से धीरेंद्र सिंह का सामान बरामद हो गया. इसी तलाशी के दौरान पुलिस के हाथ वो डायरी भी लगी, जो आगे पुलिस के लिए एक बड़ा राजफाश करने वाली थी. पुलिस के अधिकारियों ने जब राजा कोलंदर की उस डायरी के पन्ने पलटने शुरू किए तो उनके होश उड़ गए. उस डायरी में कत्ल और दरिंदगी की ऐसी दास्तान लिखी थी कि हर कोई सुनकर हैरान परेशान था. कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि जिसे लोग आम मुजरिम समझते थे, वो असल में एक वहशी आदमखोर दरिंदा है.
डायरी ने किये 14 खौफनाक मौत के खुलासे
सच सामने आने लगा तो पुलिस के हाथ पाव भी फूलने लगे. पुलिस ने राजा कोलंदर की निशानदेही पर अशोक कुमार, मुइन, संतोष और कालीप्रसाद के नरमुंड बरामद किए तो डायरी में लिखी सारी कहानी सच हो गई. पूछताछ में पता चला कि आदमखोर राजा कोलंदर ने कुल मिलाकर 14 लोगों का कत्ल किया. वह जरा-जरा सी बात पर लोगों का खून कर देता था. फिर उनकी खोपड़ी से भेजा निकाल उबालता और सूप बनाकर पी जाता था. वो लाश को अलग-अलग टुकड़ों में बांटकर जंगल या दूर दराज के सुनसान इलाकों में फेंक दिया करता था. पुलिस उन सभी मामलों की तहकीकात करती रही.
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खोपड़ी का सूप बनाकर पीता था हैवान
दरअसल काली प्रसाद ने राजा कोलंदर से कुछ पैसे लिए थे जिसे वो वापस नहीं लौटा रहा था इसलिए इसने उसे भी मौत के घाट उतार दिया. राजा कोलंदर भी ये मानता था कि काली प्रसाद का दिमाग काफी तेज चलता था और इसलिए इसने काली को मारने के बाद उसकी खोपड़ी को फोड़ डाला. उसके अंदर के खोपड़ी के पार्ट्स को पानी में उबाल कर सूप बनाया और पी लिया. राजा कोलंदर सोचता था कि ऐसा करके उसका दिमाग भी काली प्रसाद की तरह ही तेज हो जाएगा.
कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा
आदमखोर राजा कोलंदर अब पुलिस की हिरासत में था. मामला अदालत में जा पहुंचा था. जहां इस मामले की सुनवाई करीब 11 साल तक चलती रही. 1 दिसंबर 2012 को इलाहाबाद के अपर सत्र न्यायाधीश मेहताब अहमद ने राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर और उसके साले वक्षराज को मुल्जिम करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. साथ ही दोनों पर दस-दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. वहां से मामला हाईकोर्ट भी पहुंचा, लेकिन राजा कोलंदर को राहत नहीं मिली. तभी से आदमखोर वहशी दरिंदा राजा कोलंदर जेल में सजा काट रहा है.