हर साल जब भी आईपीएल आता है तो अपने साथ कई रंग लेकर आता है. जैसे विदेशी खिलाड़ियों का देसी रंग में घुलना, स्टेडियम में क्रिकेट के शोर में चीयरलीडर्स का ग्लैमर मिलना, या फिर घरेलू क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की जर्सी पहनने का ख्वाब देखना.
आईपीएल में अपने प्रदर्शन के बूते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय टीम में जगह पाने की कई खिलाड़ियों की कहानी तो आप हमेशा सुनते-पढ़ते रहते हैं लेकिन जो कहानी हम बताने जा रहे हैं वो ना ही विराट कोहली या ऋषभ पंत के आईपीएल में बनाए रनों का विश्लेषण है, ना ही किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन पर विशेष टिप्पणी है बल्कि ये कहानी आईपीएल की चकाचौंध की है जो ग्लैमर में गुम हो जाती है और आप तक पहुंच नहीं पाती. कहानी उन चीयरलीडर्स की जो हर साल विदेशों से आईपीएल का हिस्सा बनने आती हैं. इनके बारे में बात तो सब करते हैं, लेकिन क्या कभी इनको जानने की कोशिश की है?
कहां से आती हैं ये चीअर लीडर्स?
आईपीएल में चौकों और छक्कों पर डांस करने वाली चीयरलीडर्स बड़ी बड़ी एजेंसियों के जरिए यूरोप के देशों से आती हैं. लोगों को लगता है कि छोटे कपड़े पहनकर डांस करने वाली लड़कियां शियन होंगी, लेकिन ऐसा नहीं होता. ये लड़कियां प्रोफेशनल डांसर्स होती हैं. कई देशों में घूम-घूमकर परफॉर्म करती हैं.
यूरोपियन देशों में चीयरलीडिंग एक प्रोफेशन बन चुका है. अगर आप सोचेंगे कि सिर्फ डांस आना ही इस प्रोफेशन की एकमात्र शर्त है तो ऐसा नहीं है. विदेशों में चीयरलीडर्स को फॉर्मेंशन्स भी बनानी होती हैं, जिसके लिए शरीर का लचीला होना जरूरी है. इसके लिए कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग कॉी जरूरत होती है. ठीक वैसा ही हार्डवर्क जैसा मैदान पर खिलाड़ी करते हैं.
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कितनी मिलती है सैलरी?
चीयरलीडर्स को मोटी सैलरी मिलती है. फ्रैंचाइजी एक सीजन के लिए उनसे कॉन्ट्रेक्ट करती है, जो तकरीबन 20 हजार डॉलर तक हो सकता है, यानी भारतीय करेंसी के हिसाब से लगभग 17 लाख रुपये. इसके अलावा पार्टी परफॉरमेंस बोनस, एलिमिनेटर बोनस अलग होता है.
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यहां ये भी बताना जरूरी हो जाता है कि यूरोपियन चीयरलीडर्स और किसी दूसरे देश से आई चीयरलीडर्स की सैलरी में बड़ा अंतर होता है. डांसर की उम्र, सुंदरता, अनुभव और फिजिक पर भी सैलरी निर्भर करती है. मैच के बाद या उससे पहले शाम की पार्टियों में प्रदर्शन करने पर भी चीयरलीडर्स को एक्स्ट्रा पैसे मिलते हैं. हालांकि इन चीयरलीडर्स का मानना है कि वो जितनी मेहनत करतीं हैं, उस हिसाब से सैलरी कम है.
जब महिलाओं की जगह पुरुष होते थे चीयरलीडर्स
चीयरलीडिंग का कल्चर अमेरिका से शुरू हुआ और यूरोप में भी होने वाले खेलों में इसका काफी चला था. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि चीयरलीडिंग की शुरुआत अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा में हुई थी और इसकी शुरुआत किसी महिला ने नहीं बल्कि पुरुष ने की थी जिनका नाम जॉन कैंपबल था.
यही नहीं, जो चीयर स्क्वॉड उन्होंने बनाया था उसमें सब पुरुष थे. हालांकि 1940 के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पुरुषों को युद्ध के लिए सीमा पर जाना पड़ा था जिसके बाद महिलाओं की बतौर चीयरलीडर्स भर्ती होने लगी.
क्या उन्हें चीरती हैं दर्शकों की निगाहें?
लेकिन इन सबसे हटकर जो सबसे इम्पोर्टेन्ट मामला है वो ये है कि आखिरकार वह आईपीएल में चीयरलीडिंग करते दौरान कैसा महसूस करतीं हैं? डेन बेटमैन(डेल्ही डेअरडेविल्स कि चेअरलीडर्स) बताती हैं कि भारत में उन्हें आकर बहुत अच्छा लगता है और यहां उन्हें किसी सेलिब्रिटी जैसा मेहसूस होता है. लोग उनका ऑटोग्राफ मांगने आते हैं.
हालांकि दर्शकों को नसीहत देते हुए इंग्लैंड से आईं डेन बेटमैन कहती हैं कि लोगों को ये समझना चाहिए कि हम पोडियम पर डांस करतीं कोई भोग-विलास के लिए बना सामान नहीं हैं. हम लड़कियां हैं जिनका पेशा चीयरलीडिंग है. हमे इंसान की तरह समझा जाए ना की कोई हमारे शरीर पर टिप्पणी करे.