साल 1991 में जब गिल को दोबारा पंजाब पुलिस का मुखिया बनाया गया, तो सरकार ने आतंकवाद के पूरी तरह से सफाए की जिम्मेदारी उन्हें दी. केपीएस गिल के पंजाब पुलिस के मुखिया के पद पर वापस आने के समय 1991 में करीब 5000 लोगों की मौतें आतंकियों के हमलों हुई, पर 1993 तक ये आंकड़ा महज 500 का रह गया.
दरअसल, इसके पीछे गिल की रणनीति थी कि सभी आतंकियों का सिर्फ सफाया हो, उन्हें गिरफ्तार कर जेल में न रखा जाए. उनकी इन्हीं नीतियों की वजह से उनपर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगे, क्योंकि काफी लोग अपने घरों से गायब हो गए थे, तो कई खालिस्तानी आतंकी घरों से उठाए जाने के बाद आसपास मृत अवस्था में मिले थे.
28 साल बिताए नार्थ-ईस्ट में
केपीएस गिल ने 24 साल की उम्र में पुलिस सेवा ज्वॉइन की थी. उन्होंने अपने करियर के शुरुआती 28 साल नॉर्थ-ईस्ट में बिताए. उन्होंने असम-मेघालय कैडर को चुना था, ताकि वो स्वतंत्रता पूर्वक काम कर सकें. उन्होंने पंजाब इसलिए नहीं चुना, क्योंकि राजनीतिक दबावों के चलते काम करने की आजादी नहीं थी.
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पंजाब में सैकड़ों खालिस्तानी आतंकियों का सफाया करने वाले केपीएस गिल ने असम में रहते हुए एक भी एनकॉउंटर नहीं किए थे. वहीं, असम के कामरूप जिले में हनक के साथ कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केपीएस गिल को लोकर ‘कामरुप पुलिस सुप्रीटेंडेंट गिल’ तक कहा करते थे.
मोदी के सलाहकार भी रहे
केपीएस गिल को आतंकवाद रोधी अभियान का बेहद जानकार माना जाता रहा. वो भारत सरकार के आतंकवाद निरोधी मामलों के सलाहकार भी रहे. उन्होंने इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट की शुरुआत भी की, और पहले मुखिया भी रहे. केपीएस गिल साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा सलाहकार बने थे.
गिल साल 2000 से 2004 तक आतंकवाद के मोर्चे पर श्रीलंकाई सरकार के भी सलाहकार रहे. उनकी सलाह के मुताबिक लिट्टे से निपटने के लिए श्रीलंकाई सुरक्षा बलों ने योजनाएं बनाई. श्रीलंकाई सैनिक उनके रहते पंजाब पुलिस की तर्ज पर लिट्टे आतंकियों का सफाया करते थे.
ब्लू स्टार से भी सफल ऑपरेशन
गुजरात से आतंकवाद खत्म करने के लिए उन्होंने कई ऑपरेशन चलाए. इसमें ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ सबसे खास रहा. इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार से भी बेहतर बताया गया. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे से आतंकियों को बाहर निकालने के लिए इस ऑपरेशन में करीब 67 ने समर्पण किया और 43 मारे गए.
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उस समय वर्तमान एनआईए चीफ अजित डोभाल एक रिक्शे वाले की भेष में अंदर गए थे. 1991 में राज्य में 5000 लोग मारे गए थे, जबकि 1993 में यह आंकड़ा 500 तक पहुंच गया था.
आतंक का एक भी मामला ‘महामारी’
गिल ने अपनी किताब ‘पंजाब नाईट ऑफ़ फाल्सहुड’ में लिखा है कि, ‘हल में WHO ने कहा था कि पोलियों के एक मामले को भी ‘महामारी’ कहा जाएगा’ ठीक यही परिभासः आतंकियों पर भी लागू होनी चाहिए. एक आतंकी घटना का अगर उचित जवाब नहीं दिया गया तो वो कई गुना बढ़ जाएगा.
महान शख्सियत के अनजान पहलू
- केपीएस गिल समाज सेवा भी करत थे. हर महीने वृंदावन जाकर विधवाओं की संस्था को पैसा देते थे.
- केपीएस गिल को पढ़ने-लिखने और शायरी का बहुत शौक था. खासतौर से उन्हें अंग्रेजी और उर्दू शायरी बहुत पसंद थी.
- खिलाड़ियों की पैसों की जरूरत का ध्यान रखते थे. टीम के विदेशी दौरे पर भी फोन कर खिलाड़ियों की स्थिति का जायजा लेते रहते थे.
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खिलाड़ियों को मैच फीस समझो ‘रिश्वत’
केपीएस गिल मैच फीस को तो वह ‘रिश्वत’ मानते थे. 1998 में एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने के बावजूद धनराज पिल्लै समेत कई खिलाड़ियों को बाहर इसी वजह से बाहर कर दिया था. वर्ष 2008 में हॉकी टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई थी. बाद में कई लोग बैनर लेकर उतरे, ‘गिल ने पंजाब से आतंक खत्म किया, देश से हॉकी.’
केपीएस गिल पर हुए जानलेवा हमले
केपीएस गिल पर कई जानलेवा हमले हुए हैं. साल 1999 में दिल्ली में रिचपाल सिंह नाम के आतंकी को गिरफ्तार किया गया. वो अफगानी पासपोर्ट पर पाकिस्तान के रास्ते दिल्ली पहुंचा था. उसके पास से 2 किलो आरडीएक्स, 4 डेटोनेटर और लाइव वायर भी मिले थे. गिल को धमाके में उड़ाने की योजना था. बाद में गिल ने कहा कि वो ऐसी चीजों से नहीं डरते. उन्हें मारने की कोशिशें पहले भी हो चुकी हैं.
विवादों से बहुत गहरा नाता
- पंजाब में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगे
- असम में एक आंदोलनकारी की पिटाई के बाद मौत, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्लीन चिट दी
- महिला आईएएस रूपन देओल से यौन दुर्व्यवहार के दोषी
- भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष के तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे
- भारतीय ओलंपिक संघ ने भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भारतीय हॉकी फेडरेशन की मान्यता रद्द की
- 2008 में पहली बार भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई
- हॉकी खिलाड़ियों के साथ भी मैच फीस को लेकर उनका विवाद चलता रहा
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