Why Periyar criticized Gandhi – पेरियार ईवी रामास्वामी का जन्म 17 सितम्बर 1879 को हुआ था. और संयोग से ये तब पैदा हुए जब हिन्दू समय के अनुसार ‘पितृपक्ष चल रहा था. ‘पितृपक्ष के अनुष्ठान पर तीखा हमला करते हुए पेरियार ने कहा था कि जब दुनिया दुसरे ग्रहों पर अपने सन्देश भेज रही है तो हम ब्राह्मणों के जरिए अपने पुरखों को दाल चावल पंहुचा कर ये किस तरह की बुद्धिमानी का प्रमाण दे रहे हैं?
भौतिकवादी चार्वाक ने भी पितृपक्ष पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि अगर मुंडेर पर खाना रख देने से वो आसमान में पुरखों के पास चला जाता है तो तो छत पर बैठे अपने बाप को खाना देने ऊपर छत पर क्यों जाते हो? यहीं नीचे रख दो तुम्हारे बाप के पेट में चला जाएगा.
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आधुनिक समय के “तथाकथित विद्वान पेरियार और अंबेडकर” ने हिन्दू धर्म में पूजा पाठ और कर्मकाण्डो को लेकर सीधा उनके मूल पर हमला बोला. जहां एक तरफ अंबेडकर ने वैचारिक रूप से हमला बोला तो वहीँ पेरियार ने आंदोलनात्मक– प्रचार्त्मक जमीन से हमला बोला. मगर अगर आप इनके विचारों पर जरा ध्यान देंगे तो इनके उद्देश्य में एक समानता दिखेगी और वो थी हिन्दू धर्म को निशाना बनाना.
हिन्दू धर्म में व्याप्त जाति व्यवस्था
पहले के वक़्त से लेकर आजतक हिन्दू धर्म का जिस तरह का सामाजिक ढांचा था और है, उसमे इस बात की साफ़ झलक दिखती है कि ‘सामाजिक अत्याचार’ किसी भी तरह से ‘राजनीतिक अत्याचार’ से कम महत्व नहीं रखता. अंबेडकर की तरह पेरियार भी इस बात को बखूबी जानते और समझते थे कि इस सामाजिक अत्याचार की वास्तविक जड़ हिन्दू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था है. जिसे हिन्दू धर्म के तमाम ग्रंथो वेदों और अनुष्ठानों से भगवानों द्वारा मान्यता दी गयी है. और फिर उसका सूत्रीकरण किया गया है. यानि हिन्दू धर्म का मुख्या काम इसी जाती व्यवस्था को बनाए व बचाए रखना चाहता है.
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वहीँ पेरियार मानते थे की हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसकी कोई पवित्र किताब नहीं है. न ही कोई एक भगवान है जैसे की दुनिया के दुसरे बड़े धर्मों में है, ना ही इसका कोई ऐसा इतिहास है जैसा यहूदियों और ईसाईयों का है. हिन्दू धर्म मात्र एक काल्पनिक विश्वास पर टिका हुआ है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं, शूद्र उनके नीचे और बाकी जातियां अछूत होती हैं.
जाति के बारे में डा. अम्बेडकर के प्रसिद्ध ‘श्रेणीबद्ध असमानता’ (graded inequality) को आगे बढ़ाते हुए पेरियार ने इसे आत्म सम्मान से जोड़ा और कहा की जाति व्यवस्था व्यक्ति के आत्मसम्मान का गला घोंट देती है. उनका ‘सेल्फ रेस्पेक्ट आन्दोलन’ इसी विचार से निकला था.
“गांधी के सामने झुकना नहीं है” Why Periyar criticized Gandhi
दूसरी तरफ गाँधी इस जाति-आधारित धर्म को ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म की तर्ज पर एक मुकम्मल धर्म बनाना चाह रहे थे. यानी एक किताब और एक भगवान् एक प्रार्थना वाला धर्म.
मगर इस कोशिश में वो जाती व्यवस्था में बिलकुल भी कोई बदलाव नहीं लाना चाहते थे. गांधी की इसी जिद्द की वजह से पेरियार गांधी के प्रति डॉ अंबेडकर से ज्यादा कठोर थे.
पूना पैक्ट के दौरान उन्होंने डॉ. अम्बेडकर को सन्देश भेजा कि किसी भी कीमत पर गाँधी के सामने झुकना नहीं है. उनका सीधा कहना था की गाँधी की एक जान से ज्यादा कीमती है करोड़ो दलितों का आत्म-सम्मान. पेरियार ने कांग्रेस और गाँधी को शुरू में ही पहचान लिया था. पेरियार ने कांग्रेस के राष्ट्रवाद पर कटाक्ष करते हुए उसे ‘राजनीतिक ब्राह्मणवाद’ कहा था.
जाति व्यवस्था और उपनिवेशवाद के चलते रुका भारत का विकास
जाति-व्यवस्था और उपनिवेशवाद के कारण भारत की अनेक राष्ट्रीयताएँ विकसित नहीं हो पाई. बल्कि इसके विपरीत ‘राष्ट्रीयताओं का जेलखाना’ हो गयी. इस तथ्य को पेरियार बखूबी पहचानते थे.
1930-31 में उनकी सोवियत यात्रा ने भी उनकी इस समझ को धार दी. अलग ‘द्रविड़नाडू’ के लिए उनका आन्दोलन वास्तव में तमिल राष्ट्रीयता को जेल से आज़ाद कराने का आन्दोलन था.
Why Periyar criticized Gandhi – आजादी के बाद अलग तमिल राष्ट्र के लिए उनके उग्र आंदोलनों की वजह से ही 1957 में भारत सरकार एक क़ानून लेकर आई, जिसके अनुसार अब अलग राष्ट्र की मांग करना देशद्रोह हो गया. इसी के बाद कश्मीर और पूरे उत्तर-पूर्व का जन-आन्दोलन आतंकवाद और देशद्रोह बन गया.
महिला मुक्ति के सवालों पर पेरियार के विचार जर्मनी के मशहूर समाजवादी ‘आगस्त बेबेल’ की याद दिलाते हैं. पेरियार महिलाओं की पूर्ण मुक्ति के पक्षधर थे. उनके अनुसार- ”भारत में महिलायें सभी जगह अछूतो से ज्यादा बुरी दशा और अपमान का जीवन गुजारती है.