गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में तमाम यात्राएं की. अपने भक्तों के साथ वह विचरते रहते और लोगों को भगवान की भक्ति और जीवन का मर्म समझाते थे. भारत के तमाम हिस्सों की उन्होंने यात्राएं की. वह अपने संपूर्ण जीवन काल में जहां कहीं भी गए..वहां आज के समय में एक गुरुद्वारा बना हुआ है..ऐसे ही कई सिख गुरुओं का गहरा कनेक्शन उत्तर प्रदेश के आगरा से भी रहा है. अपनी शिक्षाओं से मानव सेवा का संदेश देने वाले गुरु नानक देव जी के चरणों से आगरा की धरती पवित्र हुई है. इस लेख में हम आपको आगरा में स्थित गुरुद्वारा गुरु का ताल और लोहामंडी गुरुद्वारा के बारे में बताएंगे, जिनका सीधा कनेक्शन सिख गुरुओं से जुड़ा हुआ है.
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आगरा में पधारे थे 4 सिख गुरु
दरअसल, आगरा का दुख निवारण गुरु का ताल गुरुद्वारा अपने आप में बेहद ऐतिहासिक गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे का संबंध कई गुरुओं से है. यह वही स्थान है जहां नौंवे गुरु, गुरु तेगबहादुर जी ने अपनी गिरफ्तारी दी थी. 9 दिनों तक गुरु तेग बहादुर जी को यहां पर बंदी बनाकर रखा गया था. गुरुद्वारा गुरु का ताल स्थित बोहरा साहब में उन्हें नजरबंद किया गया था. ध्यान देने वाली बत है कि यहीं से उन्हें हजारों सैनिकों की देखरेख में दिल्ली के चांदन चौक ले जाया गया, जहां उनकी शहादत हुई थी. जहां गुरु तेगबहादुर जी की शहादत हुई, उस स्थान पर आज गुरुद्वारा शीशगंज साहिब बना हुआ है.
वहीं, जब गुरु नानक देव जी दक्षिण से वापसी की यात्रा पर थे, तब वह 1509-10 में आगरा पहुंचे थे. उनके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब जी 1612 ईसवी में आगरा पधारे. गुरु तेग बहादुर साहिब का 1675 ईसवी में आगमन हुआ. गुरु गोविंद सिंह जी 1707 में आगरा आए थे. इसी के साथ सिख धर्म के प्रसिद्ध विद्वान भाई नंद लाल और भाई गुरदास ने भी यहां रहकर प्रचार-प्रसार किया.
यहां हर लिए जाते हैं सभी के दुख
जहां गुरु नानक देव जी आए वर्तमान में वहां गुरुद्वारा दुख निवारण और लोहा मंडी गुरुद्वारा है. वहीं, जहां गुरु हरगोबिंद साहिब आए, वहां गुरुद्वारा दमदमा साहिब और जहां गुरु तेग बहादुर साहिब पधारे वहां गुरुद्वारा माईथान है. जहां गुरु गोविंद सिंह का आगमन हुआ, वहां गुरुद्वारा हाथी घाट है. जहां गुरु तेग बहादुर साहिब के चरण पड़े, वहां गुरुद्वारा दुख निवारण गुरु का ताल है. ऐसी मान्यता है कि जो कोई भक्ति दुख निवारण गुरु का ताल गुरुद्वारा मन्नत लेकर पहुंचता है उसके सारे दुख हर लिए जाते हैं.
आपको बता दें कि गुरुद्वारा गुरु का ताल में 24 घंटे लंगर चलता रहता है. यहां बिना रुके कई सालों से एक अखंड ज्योति जल रही है. सिख संस्कृति के गौरवाशाली इतिहास को अपने आप में समेटे में हुए ये गुरुद्वारे बेहद ही खास हैं. हजारों की संख्या में आज भी लोग यहां पहुंचते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
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