गुरुद्वारा श्री लौहगढ़ साहिब – दोस्तों आज हम गुरुद्वारा लौहगढ़ साहिब (आनंदपुर) के बारे में बात करेंगे. जो तख्त श्री केशगढ़ साहिब से डेढ़ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में, आनंदपुर में स्थित है. आनंदपुर का शाब्दिक अर्थ है ‘आध्यात्मिक आनंद का शहर’. जो क्षेत्र अब आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है, उसमें चक नानकी, आनंदपुर साहिब और आसपास के कई गांव शामिल हैं. आमतौर पर यह माना जाता है कि आनंदपुर की स्थापना गुरु तेग बहादुर साहिब ने 19 जून 1665 को की थी, लेकिन, वास्तव में यह चक नानकी था जिसकी स्थापना पहली बार 1665 में हुई थी. चक नानकी का क्षेत्र (1665 में) अगमगढ़ गांव और केशगढ़ साहिब और शहर के बस स्टैंड के बीच के चौक तक फैला हुआ था.
और पढ़े: जानिए क्या है तख्त श्री दमदमा साहिब का इतिहास
कैसे हुआ गुरुद्वारा श्री लौहगढ़ साहिब (आनंदपुर) का निर्माण
क्या आप जानते है कि सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने किला लौहगढ़ साहिब, का निर्माण आनंदपुर के नदी के किनारे की सुरक्षा के लिए करवाया था. इसी जगह ने 1700 में आनंदपुर की घेराबंदी के दौरान पहाड़ी सेनाओं ने इस किले के द्वार को तोड़ने के लिए जिस मतवाले हाथी को भेजा था. उसी समय भाई बच्चित्तर सिंह उस हाथी का सामना किया और उसे वापिस भेजा था.
वर्तमान इमारत का निर्माण, 1980 के दशक के अंत में, इस गुरूद्वारे का आकर अष्टकोणीय और शीर्ष पर एक गुंबद के साथ तीन मंजिला ऊँचा बनवाया गया था. गुरुद्वारा श्री किला लौहगढ़ साहिब रोपड़ जिले के आनंदपुर साहिब शहर में स्थित है. गुरुद्वारा श्री किला लोहागढ़ साहिब श्री आनंदपुर साहिब के बाहरी इलाके में स्थित है. इस किले को किला आनंदगढ़ साहिब के बाद दूसरा सबसे मजबूत किला मन जाता है. क्यों कि यह आनंदपुर शहर के दक्षिणी किनारे पर स्थित था.
क्यों किला आनंदगढ़ साहिब में किया गया हथियारों के निर्माण
क्या आप जानते है कि पहले सिखों के गुरु हथियार नहीं नहीं उठाते थे, उनका मानना था कि शांति और अहिंसा से सभी काम किए जा सकते है लेकिन सिखों के छठें गुरु, गुरु हरगोविंद साहिब जी ने धर्म की रक्षा के लिए हथियार और उसके बाद सिखों के गुरु धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठते आए है जिसके चलते सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने किला आनंदगढ़ साहिब में हथियारों के निर्माण के लिए एक कारखाना स्थापित किया था. क्यों कि पहाड़ी सेनाओं ने आनंदपुर साहिब शहर पर कई बार हमला किया, शहर की रक्षा करने के लिए हथियारों का निर्माण किया जा रहा था. पहाड़ी सेनाएं किला आनंदगढ़ साहिब पर हमला करने से झिझकती थी क्यों कि वे इसके द्वार को तोड़ने में सक्षम नहीं थे.
हम आपको बता दे कि सितंबर 1700 को पहाड़ी सेनाओं ने इस किले पर हमला किया, किले के द्वार को तोड़ने के लिए वे नशे में धुत हाथी को लेकर आए. श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के आशीर्वाद से, भाई बच्चित्तर सिंह जी ने हाथी पर नागनी भाले से हमला किया. जो भाला अभी भी श्री केसगढ़ साहिब में पड़ा हुआ है. घायल हाथी पहाड़ी सेनाओं के सैनिकों को मारते हुए पीछे हट गया. भाई उदय सिंह ने उसी दिन यहां राजा केसरी चंद का सिर काट दिया था, दिसंबर 1705 में सिखों द्वारा इस शहर को खाली करने के बाद ही पहाड़ी सेनाओं ने इस किले पर कब्जा कर लिया और इसे ध्वस्त कर दिया.
और पढ़े: जानिए क्या है सिखों के दूसरे सबसे प्रमुख तख्त श्री पटना साहिब का इतिहास