उत्तर प्रदेश के मशहूर डॉन मुख्तार अंसारी की गुरुवार को कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई। मुख्तार की पूरी जिंदगी माफिया और राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती रही है। हालांकि मुख्तार शुरू से ऐसा नहीं था। उसका जन्म एक स्वतंत्रता सेनानी के घर हुआ था। दरअसल, मुख्तार के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1926 से 1927 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वहीं, मुख्तार अंसारी के नाना मोहम्मद उस्मान अंसारी सेना में ब्रिगेडियर थे। हर कोई इस बात से हैरान है कि इतने महान लोगों की छत्रछाया में पले-बढ़े मुख्तार अंसारी का नाम माफिया के साथ कैसे जुड़ गया। चलिए जानते हैं मुख्तार के डॉन बनने की कहानी।
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क्रिकेट का था अच्छा खिलाड़ी
मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले के यूसुफपुर में हुआ था। मुख्तार ने अपनी शिक्षा यूसुफपुर गांव में पूरी की। आगे की पढ़ाई उसने राजकीय सिटी इंटर कॉलेज और पीजी कॉलेज ग़ाज़ीपुर से पढ़ाई की है। ग़ाज़ीपुर के पीजी कॉलेज में स्नातक छात्र मुख्तार को पहले एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर माना जाता था।
आपराधिक गिरोह में हुआ शामिल
मुख्तार ने 20 साल की उम्र में मखनू सिंह गिरोह में शामिल होकर अपना आपराधिक करियर शुरू किया। साधु और मखनू के नक्शेकदम पर चलते हुए उसने माफिया वर्ल्ड की बारीकियां सीखीं और आखिरकार अपना खुद का गिरोह बनाया और माफिया लीडर बन गया।
राजनीति में रखा कदम
साल 1996 में मुख्तार ने बसपा के टिकट पर राजनीति में कदम रखा। उसने मऊ से चुनाव लड़ा और विधायक चुना गया। इस दौरान उनका नाम कई चर्चित आपराधिक घटनाओं में सामने आया। साल 1997 में मुख्तार का अंतरराज्यीय गिरोह (आईएस-191) पुलिस डोजियर में दर्ज किया गया था। 1988 में मुख्तार अंसारी का नाम अपराध की दुनिया में फैलने लगा था। इसी साल मुख्तार का नाम मंडी परिषद के लिए काम करने वाले स्थानीय ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या में आया था। इसके बाद उसके नाम से एक के बाद एक कई आपराधिक मामले जुड़ने लगे। मुख्तार इतना बड़ा डॉन बन गया था कि पुलिस भी उससे बचती थी।
कृष्णानंद राय हत्याकांड से जुड़ा नाम
2002 से मुख्तार का बुरा वक्त शुरू हो गया। दरअसल, 1985 से 1996 तक मुख्तार का बड़ा भाई अफजाल अंसारी लगातार पांच बार गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से चुनाव जीतता रहा। हालांकि, 2002 के चुनाव में बीजेपी के कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हरा दिया था। ये जीत अंसारी परिवार को हजम नहीं हुई। जीत के तीन साल बाद 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई। हत्या से पहले कृष्णानंद एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए थे। बताया जाता है कि लौटते वक्त शूटरों ने कृष्णानंद राय की गाड़ी को घेर लिया और एके-47 से 500 से ज्यादा गोलियां बरसाईं। कृष्णानंद और उनके साथ मौजूद 6 लोगों की मौत हो गई। खबरों की मानें तो। मुख्तार ने जेल में रहते हुए इस हत्याकांड को प्लान किया था।
जेल में काटे आखिरी दिन
अक्टूबर 2005 में मऊ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान दंगा भड़क गया और मुख्तार को जेल जाना पड़ा। इसके बाद 29 नवंबर 2005 को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई और फिर सरकार बदलने के साथ मुख्तार की जेलें भी बदलती रहीं, लेकिन मुख्तार अंसारी जेल से बाहर नहीं आ सका।
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