फर्जी हस्ताक्षर पर कौन सी धारा लगती है – कई बार हमारे संज्ञान में ऐसी खबरें आती हैं जिसमे किसी व्यक्ति किसी और के एग्जैक्ट हस्ताक्षर करके धोखाधड़ी कर ली है. या फर्जी हस्ताक्षर से जुड़े रोज़ कई सारे ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमे लोगों को जानमाल का काफी नुकसान होता है. पहले हम भी गन्दी राइटिंग के चलते टीचर से साईन (धारा 464 क्या है) न करवाकर अपने क्लास के सिग्नेचर एक्सपर्ट से उस टीचर की साईन करवा लेते थे लेकिन तब हमें इतना नहीं मालूम था कि ये अपने आप में एक अपराध है.
क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है जिसके लिए कानून में सजा का प्रावधान है. लेकिन आज हम आपको फेक हस्ताक्षर और जाली डाक्यूमेंट(जालसाजी) बनाने पर सुनाई जाने वाली सजा को लेकर जानकारी देंगे जो आपके लिए बेहद जरूरी है.
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क्या होती है जालसाजी?
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अध्याय 18, में धारा 463 से 489 तक दस्तावेजों और चिन्हों संबधी अपराधों एवं दण्डो के विषय में बताया गया है. पर आज के लेख में हम कूटरचना संबधित अपराध को जानेंगे. कूटरचना से तात्पर्य है किसी व्यक्ति के द्वारा झूठे दस्तावेज बनाना या तैयार करना. उन दस्तावेजों का प्रयोग व्यक्ति अपने वास्तविक रूप में करता है, या कोई धोखा देने के उद्देश्य से, कोई व्यक्ति झूठे दस्तावेज बनाता है, वह कूटरचना होती है.
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जालसाजी या कूटरचना के आवश्यक तत्त्व-
IPC कि धारा 463 के अनुसार निम्न आवश्यक तत्व है:-
जो कोई व्यक्ति किसी झूठे दस्तावेज, फर्जी हस्ताक्षर , इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के किसी भी भाग को इस आशय से बदलता है. जिससे किसी जनता(लोक) को या कोई व्यक्ति को नुकसान या क्षिति की जाए. या कोई दावे, हक का समर्थन किया गया हो. कोई व्यक्ति संविदा या अनुबंध में कपट करे या सम्पति को अलग करे.तो वह कूटरचना करता है.
धारा 464 क्या है?
धारा 464 की परिभाषा सरल शब्दों में :- वह व्यक्ति जो झूठे दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है.
- किसी भी व्यक्ति के हस्ताक्षर करना या चेक पर फर्जी हस्ताक्षर करना, शील लगाना, फर्जी तरीके से कार्य को पूरा करना आदि.
- किसी भी इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख जैसे डिजिटल हस्ताक्षर की कॉपी, आदेश को बदलना, किसी भी आदेश या दस्तावेज में आपने हस्ताक्षर करना आदि. अपराध की श्रेणी में आते हैं.
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वह कार्य जो अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं:-
- कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अधिकृत करता है. और अधिकृत व्यक्ति उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करता है जिसने उसे अधिकृत किया गया है वह अपराध नहीं होगा.
- ऐसे हस्ताक्षर जिससे किसी को कोई जन धन या कोई कोई क्षति नहीं पहुचती वह भी अपराध नहीं है.
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 465 में दण्ड का प्रावधान
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 464 के अपराध में दण्ड का प्रावधान धारा 465 में दिया गया है :-यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते है. इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट करते हैं. सजा- 2 वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोंनो से दण्डित किया जाएगा..
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