कोर्ट के बाहर समझौता कैसे होता है – अक्सर जब दो गुटों के बीच कोई बहस होती है तो समझौता एक व्यवस्था है जिसमें पीड़ित पार्टी और आरोपी व्यक्ति के बीच समझौता हो जाता है. यह आवश्यक नहीं है कि समझौता लिखित रूप में ही हो, यह मौखिक भी हो सकता है. दरअसल समझौता करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता कि दोनों पक्षों को कानूनी लफड़ों में पड़ने की जरुरत से मुक्ति मिल जाती है साथ ही देश की अदालतों में मुकदमों की संख्या भी कम रहती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 320 का सम्बन्ध उन अपराधों से है जिनमें कोर्ट की अनुमति के बिना समझौता हो सकता है तथा कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें समझौता कोर्ट की अनुमति से होता है.
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जिन अपराधों में दो पक्षों के बीच समझौता हो जाता है उन अपराधों को शमनीय अपराध (compoundable offences) कहा जाता है और जिन अपराधों में दोनों पक्षों के बीच में समझौता नहीं होता है उन अपराधों को अशमनीय अपराध (Non Compoundable Offences) कहा जाता है.
जिन अपराधों में न्यायालय की अनुमति के बिना भी समझौता हो सकता है उनको CRPC के सेक्शन 320(1) में दिया गया है. हालंकि इस समझौते की जानकारी पुलिस को देनी पड़ती है. जिन मामलों में न्यायालय की सहमती से समझौता हो सकता है उनको CRPC के सेक्शन 320 (2) में दिया गया है.
जिन अपराधों में दो पक्षों के बीच समझौता हो जाता है उन अपराधों को शमनीय अपराध (compoundable offences) कहा जाता है और जिन अपराधों में दोनों पक्षों के बीच में समझौता नहीं होता है उन अपराधों को अशमनीय अपराध (Non Compoundable Offences) कहा जाता है.
आइये अब जानते हैं कि कौन से अपराधों में न्यायालय की मंजूरी से समझौता हो सकता है और किन अपराधों में न्यायालय की मंजूरी नहीं चाहिए होती है अर्थात पुलिस ही इस समझौते को करवा देती है.
न्यायालय की अनुमति के बिना होने वाले समझौते
- चोरी का मामला:इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 379 के इसके बारे में प्रावधान है. इसमें वह व्यक्ति समझौता कर सकता है जिसका सामान या कुछ अन्य चीज चोरी हुई है. इस मामले में पुलिस की मध्यस्थता में दोनों पक्षों के बीच समझौता होता है.
- किसी को चोट पहुँचाना: इसके बारे में इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 323 में प्रावधान है. ऐसे मामले में वह व्यक्ति ही समझौता कर सकता है जिसको चोट पहुंचाई गयी है या जो पीड़ित है. अर्थात अपराध का आरोपी समझौता करने की पहल शुरू नहीं कर सकता है.
- धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाना: इंडियन पैनल कोड केसेक्शन 379 के तहत यह एक दंडनीय अपराध है. अगर कोई व्यक्ति किसी की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर चोट पहुंचाता है तो आहत होने वाला व्यक्ति आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा सकता है. लेकिन पुलिस इस मामले में न्यायालय की अनुमति के बिना समझौता कर सकती है.
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- किसी को गलत तरीके से बंधक बनाना: इस अपराध को IPC के सेक्शन 341, 342 में अपराध माना गया है. हालाँकि इसमें जिस व्यक्ति को बंधक बनाया गया है वह चाहे तो कोर्ट के बाहर समझौता कर सकता है.
- विवाहित महिला को बंधक बनाना या भगा ले जाना: यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को बहला फुसलाकर भगा ले जाता है या अपराध करने के उद्येश्य के बंधक बनाता है तो यह IPC की धारा 498 के तहत अपराध है. इस मामले में बंधक महिला के पति को आरोपी के साथ समझौता करने का अधिकार है.
- अनधिकार गृहप्रवेश: यदि किसी व्यक्ति के घर में कोई व्यक्ति या अपराधी बिना आज्ञा के घुसता है तो यह काम IPC के सेक्शन 448 के तहत अपराध है. एक दंडनीय अपराध है और जिस व्यक्ति के घर में घुसने का प्रयास किया गया है वह इसके खिलाफ रिपोर्ट कर सकता है. हालाँकि पुलिस की मध्यस्थता में कोर्ट के बाहर भी इस ममाले में समझौता किया जा सकता है.
न्यायालय की अनुमति से होने वाले समझौते
इन मामलों में समझौता करने के लिए कोर्ट की अनुमति आवश्यक है अन्यथा समझौता नहीं होगा.
- किसी महिला का गर्भपात कराना: इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 312 के अंतर्गत किसी महिला का उसकी मर्जी के खिलाफ गर्भपात नहीं कराया जा सकता है, ऐसा करना दंडनीय अपराध है. यदि कोई पति/ सगा सम्बन्धी ऐसा करने का प्रयास करता है और पीड़ित महिला पुलिस में FIR करा देती है तो फिर इस मामले में कोर्ट की सहमती से ही दोनों पक्ष समझौता कर सकते हैं. ध्यान रहे कि ऐसे मामले में सिर्फ वही महिला समझौता कर सकती है जिसका गर्भपात कराने का प्रयास किया गया है या करा दिया गया है.
- दूसरी शादी करना: यदि कोई व्यक्ति/महिला अपनी जीवित पत्नी या पति के रहते किसी और स्त्री/ पुरुष से शादी करते है तो इस तरह का कृत्य इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 494 के अंतर्गत अपराध है. इस मामले में कोर्ट की सहमती से पूर्व पत्नी/पूर्व पत्नि ही समझौता कर सकते हैं. इसमें ये तीन लोग एक साथ रह सकते हैं इसका प्रावधान भी कानून में है.
- किसी महिला पर कमेंट करना/सीटी बजाना या कोई गलत इशारा करना: ये सभी काम जिनसे किसी महिला की मर्यादा को चोट पहुँचती है या महिला को कोई ऐसी चीज दिखाना जिससे कि उसकी मर्यादा भंग होती है तो इस तरह के काम इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 509 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आते हैं. ऐसे मामलों में सिर्फ वह महिला ही कोर्ट की सहमती से समझौता कर सकती है जिसके साथ यह घटना घटी होती है.
- किसी को 3 दिन पर बंधक बनाकर रखना: यदि कोई व्यक्ति किसी को उसकी इच्छा के बिना 3 दिनों तक बंधक बनाकर रखता है तो पीड़ित व्यक्ति इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 343 के अंतर्गत मामला दर्ज करा सकता है. यदि समझौता होता है तो कोर्ट की सहमती से सिर्फ पीड़ित व्यक्ति ही कर सकता है.
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- दस रुपये या ऊपर के मूल्य के जानवर को मरना या अपंग करना: यह अपराध पढ़ने में थोडा अजीब लग रहा है लेकिन यह सच है कि यदि कोई व्यक्ति किसी दस रुपये या ऊपर के मूल्य के जानवर को मारता या अपंग करता है तो IPC के धारा 428 के तहत उसे सजा होगी और समझौता कोर्ट की सहमती से जानवर के मालिक द्वारा ही किया जा सकता है. कोर्ट के बाहर समझौता कैसे होता है?
- धोखाधड़ी से किसी संपत्ति को छुपाना या हड़पना: यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से किसी की संपत्ति को चुराता या हड़पता है तो ऐसा करना IPC के सेक्शन 424 के तहत अपराध है लेकिन यदि प्रभावित व्यक्ति इस मामले में समझौता करना चाहे तो कोर्ट को बताकर ऐसा कर सकता है.