बचपन में बच्चे पोषम पा भाई पोषम पा, वाला गेम खेलते थे और इस दौरान इस गेम में जेल जाने, रोटी खाने और जेल के पानी पीने की बात होती थी. वहीं इस गेम के दौरान एक सवाल मन में आता है कि जेल में रहने वाले कैद किस तरह का कहाँ खाते हैं और क्या उन्हें जेल में नॉनवेज भी मिलता है. कई बार फिल्मों में देखा गया है कि जेल के खाने को मजाक बनाया जाता है या फिर ये देखा गया है कि जेल में कैदियों को खाने के लिए पानी जैसी दाल, बेकार से चावल, 2 सूखी रोटी थोड़ी सब्जी ही मिलती हैं लेकिन ऐसा नहीं है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको इसी बात की जानकारी देने जा रहे हैं.
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इस तरह तैयार होता है जेल के खाने का मैन्यू
राज्य की सरकार जिस तरह जेल में खर्च करती है उसी अनुसार, जेल में सभी चीजों की पूर्ति की जाती है. देश में जेलों के संचालन का अधिकार राज्यों के पास होता है लेकिन गृहमंत्रालय ने अपने Model Prison Manual में यह दिशानिर्देश दिए हुए हैं कि पुरुष कैदी को प्रतिदिन 2320 कैलोरी और महिलाओं को 1900 कैलोरी ऊर्जा मिलनी चाहिए और राज्य सरकार इसी अनुसार, कैदियों को ब्रेकफास्ट सहित 3 टाइम का खाना किस प्रकार का होगा उसका मैन्यू डिसाइड करती हैं. वहीं जेल की सारी व्यवस्थाएं का खर्च भी राज्य सरकारें करती है. राज्य नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार राज्य सरकार प्रति व्यक्ति के भोजन पर हर रोज लगभग 53 रुपए खर्च करती है और उनके लिए काम की व्यवस्था भी करती है.
जेल में मिलता इस प्रकार मिलता है खाना
वहीं जेल में दाल, 6 रोटियां, चावल मिलते हैं लेकिन कुछ जेलों में रविवार या किसी विशेष मौकों पर स्पेशल खाना बनता है। वहीं एक कैदी 850 ग्राम से ज्यादा खाना नही ले सकता है. इसी के साथ बाहर से भी खाना लिया जा सकता है लेकिन इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेनी होती है.
जेल में मिलता है नॉनवेज
एक रिपोर्ट के अनुसार, नागालैंड और जम्मू कश्मीर की सरकारें कैदियों पर सबसे ज्यादा खर्च करती हैं। वहीं, दिल्ली, गोआ, महाराष्ट्र की सरकारें सबसे कम, यहां तक कि औसत से भी कम खर्च करती हैं. लेकिन जेल में नॉनवेज खाना नहीं मिलता है. कुछ जेल अपने कैदियों को कभी-कभी कैंटीन से नॉनवेज खरीद कर खाने की अनुमति दे देती हैं. जानकारी के मुताबिक, हर कैदी अपने परिवार से प्रतिमाह 2000 रुपये तक प्राप्त कर सकता है और जेल में उन्हें काम के बदले भी पैसे मिलते है. इन्ही पैसों से वो कैंटीन में खाना खरीद कर भी खा पाते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, नागालैंड और जम्मू कश्मीर की सरकारें कैदियों पर सबसे ज्यादा खर्च करती हैं. वहीं, दिल्ली, गोआ, महाराष्ट्र की सरकारें सबसे कम, यहां तक कि औसत से भी कम खर्च करती हैं.
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