विनायक दामोदार सावरकर अक्सर ही देश की राजनीति में सुर्खियों का हिस्सा बने रहते हैं। वीर सावरकर को लेकर दो पक्ष सामने आते हैं, एक जो उनके समर्थन में खड़े रहते हैं और दूसरे विरोध में। एक धड़ा जिसमें बीजेपी-RSS और शिवसेना जैसी शामिल हैं, वो उनको वीर सावरकार मानते हैं। तो वहीं कांग्रेस समेत कई पार्टियां उनके विरोध में रहती हैं।
राजनाथ सिंह ने कही ये बड़ी बात
इसके साथ ही सावरकर की वो दया याचिका को लेकर भी सुर्खियों में रहती हैं, जो उन्होंने जेल से निकलने के लिए अग्रेंजों को दी थीं। इसके लिए कुछ पार्टियां उनको कायर तक कहती हुई नजर आई हैं। अब वीर सावरकर की दया याचिका का मुद्दा एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इस बार वजह है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का दिया एक बयान।
दरअसल, राजनाथ सिंह का एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने सावरकर की दया याचिका को लेकर एक बड़ी बात कह दी। एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने बोलते हुए कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों के सामने महात्मा गांधी के कहने पर ही दया याचिका लगाई थीं। इसके अलावा वो ये भी बोले कि एक खास वर्ग ने जानबूझकर झूठ फैलाया और भ्रम की स्थिति पैदा की। राजनाथ सिंह ने कहा कि सावरकर महानायक थे, हैं और रहेंगे।
बयान पर छिड़ने लगी बहस
राजनाथ सिंह ने ये बातें उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की किताब ‘वीर सावरकर हु कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ की लॉन्च के दौरान कहीं। उनके इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़नी शुरू हो गई है। इसको लेकर राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रिया भी आने लगीं।
उनके इस बयान पर कांग्रेस नेता डॉ. रागिनी नायक ने बताया कि सावरकर का शुद्धिकरण करने के लिए राजनाथ सिंह जी को गांधी को सहारा लेना ही पड़ा रहा है। राजनाथ सिंह के बयान पर चर्चाएं शुरू हो गई। ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि राजनाथ सिंह के इस बयान में कितना दम है? क्या सच में सावरकर ने दया याचिका लगाई थीं?
कितना सही है राजनाथ सिंह का ये दावा?
एक फेमस लेखर विक्रम संपत की एक किताब है, ‘सावरकर: एक भूले-बिसरे अतीत की गूंज’ नाम से। जिसमें इस किस्से को लेकर विस्तार से जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया कि वीर सावरकर के भाई नारायण राव सावरकर ने गांधी जी को कुछ चिट्ठी लिखी थीं, जिसमें उन्होंने अपने भाइयों की रिहाई के लिए उनसे सलाह मांगी थीं।
ये चिट्ठी उन्होंने 18 जनवरी 1920 में लिखी थीं। नारायण राव सावरकर ने महात्मा गांधी को लिखा था कि 17 जनवरी को मुझे ये जानकारी मिली कि रिहा किए जाने वाले लोगों में सावरकर बंधुओं के नाम शामिल नहीं। इससे ये साफ है कि सरकार सावरकर उनको रिहा नहीं करने जा रही। ऐसे में क्या करें, कृप्या आप इसके बारे में मुझे बताएं। वो पहले ही अंडमान में 10 साल की कठोर सजा काट चुके हैं। उनके स्वास्थ्य में भी लगातार गिरावट आ रही। आप इस मामले में क्या कर सकते हैं, उम्मीद है इसके बारे में अवगत कराएंगे।’
संपत ने अपनी किताब में आगे बताते हैं कि इस चिट्ठी के एक हफ्ते बाद यानी 25 जनवरी 1920 को गांधी जी का जवाब आया, जो उम्मीद के मुताबिक ही था। गांधी जी ने जवाब दिया कि वो इस संबंध में काफी कम ही सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने लिखा था- ‘प्रिय डॉ. सावरकर, मुझे आपका पत्र मिला। आपको सलाह देना मुझे मुश्किल लग रहा है। फिर भी मैं ये राय देना चाहूंगा कि आप एक संक्षिप्त याचिका तैयार कराएं, जिसमें मामले से जुड़े तथ्यों का जिक्र हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था। मैंने जैसा पिछले एक पत्र में आपसे कहा था इस मामले को मैं अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं।’ लेखक संपत के मुताबिक गांधी जी ने 26 मई 1920 को यंग इंडिया में ‘सावरकर बंधु’ नाम से एक लेख लिखा था, जिसमें उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई थी।