वैसे बीते दिनों में हमने पंजाब से जुड़ी कई बातों पर आपका ध्यान अपनी ओर खींचा लेकिन वहां की भाषा को लेकर ऐसा महसूस हो रहा था कि हमने थोड़ी कम जानकारी आप तक पहुचाई है और यही बात काफी दिनों से सोचते आज हम आपको पंजाब में बोली जाने वाली ‘पंजाबी भाषा’ का इतिहास जानेंगे. कि पंजाबी भाषा कैसे अस्तित्व में आई? समय-समय पर इसमें क्या बदलाव आए? इसे ‘मातृभाषा’ ही क्यों कहा जाता है? ऐसी बातों से आज हम इसका इतिहास जानेंगे.
क्या होती है मातृभाषा?
धरती पर जन्म लेने के साथ ही हमारा अपनी माँ से एक गहरा रिश्ता जुड़ जाता है, ठीक वैसे ही भाषा उसे जिंदगी के अर्थ बताती है. जीने का ढंग समझाती है. एक दूसरे से बात करने के लहजे को सिखाती है. और इन्ही भाषा से जुड़े इन्ही गहरे संबंधो की वजह से इंसान ने भाषा का रिश्ता ‘मां’ से जोड़ा. मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे बच्चा मां के गर्भ में ही सीख लेता है.
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इसी तरह मां जैसे भाषा से भी उसका रिश्ता जन्म से पहले ही जुड़ जाता है. यही कारण है कि इसे मातृभाषा कहा जाता है. इसे भूल जाने वाले लोग अकसर इतिहास के पन्नों में खो जाते हैं. जो खुद में ही इतिहास के पन्नों में बांध जाते हैं.
भारत में 22 भाषाओँ को मान्यता प्राप्त
भारतीय संविधान में कुल 22 भाषाओँ को मान्यता प्राप्त है. लेकिन साल 2011 की मरदमशुमारी के आकड़ों को उठाये तो देश भर में कुल 19,569 मातृभाषाएं हैं. जो देश में बसे छोटे छोटे कस्बों, शहरों गावों और आदिवासी समुदायों में बोली जाती है.
हालांकि ये बात अलग है कि देश की कुल आबादी का 96 प्रतिशत तबका संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओँ को ही मातृभाषा मानता है. और देश के लगभग हर राज्य में अपनी मातृभाषा ही बोली जाती है जैसे हरियाणा में हरियाणवी और राजस्थान में मारवाड़ी.
पंजाबी भाषा का इतिहास
पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है. भारत में पंजाबी भाषा हिंदी और बंगाली के बाद साउथ एशिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. ये भाषा आज की तारिख में इंग्लैंड में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली दूसरी भाषा और कनाडा में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. भाषाओं से संबंधित एक विशवग्यानकोश “ऐथनोलोग के अनुसार पंजाबी पूरी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली दसवीं भाषा है.
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माहिरों के अनुसार 13-14 करोड़ लोगों की मातृभाषा पंजाबी है. सबसे अधिक तकरीबन 10 करोड़ पंजाबी बोलने वाले पाकिस्तान में हैं. उसके बाद 3 करोड़ के करीब भारतीय पंजाब और करीब एक करोड़ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बसे हुए हैं.
पंजाबी उपभाषाएं
एक कहावत है कि कुछ किलोमीटर दूर बाद पानी और भाषा दोनों बदल जाती है उदहारण के लिए आप दिल्ली और गुडगाँव को ही ले सकते हैं. ऐसे ही पंजाब में भी कई सारी उपभाषाएं है. जो अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरह से बोली जाती हैं.
जिनमें से मुख्य हैं माझी, दोआबी, मालवे से संबंधित, पुआधी, पोठोहारी, मुलतानी और डोगरी जिसे पहाड़ी भाषा भी कहा जाता है. इनमें से माझी बोली पंजाबी की टकसाली भाषा है. लेकिन क्या हमें पता है कि पंजाबी भाषा कैसे बनी, यह समय के साथ कितनी बदली और पंजाबी में लिखी सबसे पहली किताब कौन सी है?
पंजाबी का मूल रूप
पंजाबी भाषा के विद्वानों के हिसाब से पूंजाबी भाषा के मूल को लेकर बहुत सारे तर्क है. जिनमे से कुछ लोगों का ये कहना है कि पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जबकि कुछ पंजाबी भाषा का मूल संस्कृति को नहीं मानते. विद्वानों के अनुसार पंजाबी का जन्म सप्तसिंधु के इलाके से हुआ, उस समय इस भाषा को सप्तसिंध भी कहा जाता था. ये बात अलग है की भारत की सारी भाषाओँ का जन्म ब्राह्मी लिपि से हुआ है.
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पंजाबी भाषा की वास्तविक लिपि
पंजाबी भाषा की दो लिपियां हैं शाहमुखी और गुरमुखी. शाहमुखी उतरते पंजाब की पंजाबी लिपि है, जबकि गुरमुखी चढ़ते पंजाब की लिपि. इन दोनों में अक्षरों की बनावट का फर्क है. पंजाबी में पहली रचना ‘अद्दहमाण की स्नेह रासय’ है जो कि कई लिपियों का मिश्रण है, उसके बाद शाहमुखी में बाबा शेख फरीद जी की रचनाएं और गुरमुखी में गुरु नानक देव जी की पट्टी है.
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कहाँ से आए पैंतीस अक्षर?
माहिरों के अनुसार पैंतीस अक्षर का सबसे पहला सबूत गुरु नानक की पट्टी में मिलता है. उसमें पैंतीस ही अक्षर हैं. बस फर्क सिर्फ इतना है कि ‘ਉ, ਅ, ਈ’ वाली तरतीब अलग थी. उसमें ‘ਅ, ਈ, ਉ’ लिखा जाता था. बाद में गुरु अंगद देव जी ने यह तरतीब बदल कर ‘ਉ, ਅ, ਈ’ की. इन 35 में से कोई अक्षर लुप्त तो नहीं हुए बल्कि फारसी के 6 अक्षर अन्य जुड़ गए, जिनके पैर में बिन्दी होती है. इन अक्षरों के साथ इसकी संख्या 35 से 41 कर दी, हालांकि इसे अभी भी 35 ही कहा जाता है.
मातृभाषाओं के लाल – पंजाबी भाषा का इतिहास
गुरुओं के अलावा नाथों, जोगियों, बुल्ले शाह, वारिस शाह, शाह हुसैन, कादरयार, शाह मुहम्मद, दमोदर जैसे कवियों ने भी अपनी कविता का माध्यम पंजाबी को बनाया जबकि भाई वीर सिंह, नानक सिंह, गुरदयाल सिंह, संत सिंह सेखों, अजीत कौर, दलीप कौर टिवाना, अमृता प्रीतम, सुरजीत पात्र, शिव कुमार ‘बटालवी’ और हरभजन सिंह जैसे लेखकों ने इसी भाषा सदका अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के शिखरों को छुआ है.
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पंजाबी भाषा का इतिहास – गीत संगीत की दुनिया में भी पगला जाट, गुरदास मान, कुलदीप मानक, हंसराज हंस, सुखविन्दर सिंह और सतिन्द्र सरताज ने पंजाबी मातृभाषा की सेवा की और अपने गीतों द्वारा पंजाबी मातृभाषा को देश-विदेशों में प्रसिद्ध किया.
बेशक गुरुओं की यह भाषा कभी खत्म नहीं हो सकती लेकिन आज बहुत-से लोग पंजाबी बोलने में झिझक महसूस करते हैं, जोकि अच्छी बात नहीं. वह लोग एक तरह की हीन-भावना का शिकार हैं. ‘क्या हम कभी यह हीनता का भाव त्याग सकेंगे? क्या कभी अपनी मातृभाषा के सच्चे कदरदान बनकर इसे अपने अंदर बसा सकेंगे? ऐसे बहुत-से सवाल हैं, जिनका जवाब एक पंजाबी को अपने अंदर से ही ढूंढना पड़ेगा.