चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) और इंडियन आर्मी की गलवान घाटी में हुई झड़प को आज करीब 4 साल होने को है इस झड़प में 24 साल के सिपाही गुरतेज सिंह समेत चार सिख सैनिकों भी बहादुरी से चीन का सामना किया. रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो सिख सैनिकों की वजह से गलवान में चीनी सैनिकों को भागना पड़ गया था.
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चीन आज भी भारतीय सेना के सिख सैनिकों से डरता है और इस डर की वजह से 100 साल पुरानी है. आज के इस लेख में हम आपको बताते हैं कि आखिर चीन और भारत के बीच अभी तक युद्ध में चीनी सेना सिख रेजिमेंट से इतना क्यों डरती है?
जब चीन गए थे सिख सैनिक
बात है साल 2020 की जब भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने थीं तो चीन की सेना ने पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे यानी चुशुल की तरफ लाउडस्पीकर लगाए थे. इन बिंदुओं पर टकराव इस हद तक बढ़ गया था कि कभी भी युद्ध शुरू हो सकता था. रेजांग ला से लेकर रेकिन ला तक इंडियन आर्मी और चीनी जवान आमने-सामने थे.
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जो लोग इस जगह से वाकिफ हैं उन्हें पता है कि चुशुल के ब्रिगेड हेडक्वार्टर के मेस पर आज भी लॉफिंग बुद्धा की एक सोने की मूर्ति रखी हुई है. कहते हैं इस मूर्ति को एक सदी पहले सिख रेजीमेंट के जवानों ने ही जब्त किया था. उस समय सिख सैनिक आठ देशों के उस मिशन का हिस्सा थे जिसमें चीन की बॉक्सर रेबिलियन को खत्म करना था. यह संगठन युवा किसानों और मजदूरों का संगठन था जिसे विदेशी प्रभाव को खत्म करने के मकसद से तैयार किया गया था.
बॉक्सर रेबेलियन का खात्मा करने वाले सिख
उस समय ब्रिटिश आर्मी ने सिख और पंजाब रेजीमेंट्स की मदद बाकी रेजीमेंट्स के साथ ली थी. सेनाएं, बीजिंग में दाखिल हुईं और इसके बाद बॉक्सर के लड़ाकों ने विदेशी जवानों को धमकाया. उन्होंने करीब 400 विदेशियों को बंधक बनाकर बीजिंग स्थित फॉरेन लिगेशन क्वार्टर में रखा. 55 दिनों तक चले संघर्ष के लिए 20,000 जवान बीजिंग में दाखिल हुए थे.
करीब 8,000 जवान ब्रिटिश आर्मी के साथ थे और ये भारत से गए थे. इनमें से ज्यादातर सिख और पंजाब रेजीमेंट के थे. कहते हैं कि जीत के बाद ब्रिटिश आर्मी लूटपाट में लग गई, फ्रांस और रूस के जवानों ने वहां पर नागरिकों की हत्या कर तो कुछ महिलाओं का बलात्कार भी किया. मगर सिख सैनिक अपने मिशन में जी-जान से लगे रहे.
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1962 में भी चटाई थी धूल
दरअसल चुशुल के आर्मी मेस में एक लॉफिंग बुद्धा रखा हुआ है ये भी उन सामानों में शामिल था जिसे जवान अपने साथ लेकर आए थे. अपनी किताब इंडियाज चाइना वॉर में ऑस्ट्रेलिया के जर्नलिस्ट नेवेली मैक्सवेल ने लिखा है कि चीनी नेतृत्व ने अपने साथ हुए उस बर्ताव को ही देश को आगे बढ़ाने वाले आंदोलन के तौर पर जारी रखा.
मैक्सवेल मानते हैं कि चीन ने इसी सोच के साथ 1962 की जंग भारत के खिलाफ लड़ी थी. विशेषज्ञों की मानें तो यही वजह है कि पीएलए पंजाबी या फिर सिख सैनिकों को मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर करने के लिए ऐसे ऑपरेशन को अंजाम देती है.