इंडियन आर्मी की सिख रेजीमेंट का अपना एक रुतबा है। अपनी एक पहचान है। सिख रेजीमेंट से जुड़ी कई इंटरेस्टिंग बातें सुनने को मिलती है लेकिन क्या आपको ये पता है कि चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी यानी कि पीएलए और इंडियन आर्मी की गलवान घाटी में 2020 में हुई झड़प में 24 साल के सिपाही गुरतेज सिंह इसके साथ ही चार सिख सैनिकों ने भी चीन का सामना बड़ी ही बहादुरी से के साथ किया।
रक्षा विशेषज्ञों मानते हैं कि तब गलवान में चीनी सैनिकों को सिख सैनिकों की वजह से भागना पड़ गया था। क्या आपको पता है कि भारतीय सेना के सिख सैनिकों से आज भी चीन खौफ खाता है और इस डर का एक बड़ा कारण है जिसके बारे में हम आपको बताएंगे। बताएंगे 100 साल वो वजह जो चीन को डरा देती है।
जून 2020 को गलवान घाटी में हिंसा हुई ये तो सब जानते हैं। इस दौरान पंजाब की घातक प्लाटून के चार सैनिक भी शामिल थे। इस हिंसा के दौरान पैंगोंग त्सो के साउथ कौर्नर मतलब की चुशुल की ओर चीन की सेना ने लाउडस्पीकर लगाए थे। रेजांग ला से लेकर रेकिन ला तक स्थिति गंभीर थी। क्या आप जानते हैं कि चुशुल के ब्रिगेड हेडक्वार्टर के मेस पर लॉफिंग बुद्धा की एक सोने की मूर्ति आज भी रखी गई है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मूर्ति को एक सदी पहले यानी कि 100 साल पहले इसको सिख रेजीमेंट के जवानों ने ही जब्त कर किया था। तब आठ देशों के उस मिशन का भाग हुआ करते थे जिसमें चीन की बॉक्सर रेबिलियन का खात्मा करना था।
इन 8 देशों के मिशन में ये संगठन युवा किसानों इसके साथ साथ मजदूरों का एक पूरा का पूरा संगठन हुआ करता था जिसको तैयार करने का जो मकसद था ये कि विदेशी प्रभाव को खत्म किया जा सके। तब सिख और पंजाब रेजीमेंट्स की हेल्प ली थी ब्रिटिश आर्मी ने जिसमें बाकी रेजीमेंट्स भी साथ थी। सेनाएं, सीधे सीधे बीजिंग में दाखिल हो गई और फिर विदेशी जवानों को बॉक्सर के लड़ाकों ने धमकी दी थी। उन्होंने लगभग, लगभग 400 विदेशियों को बंधी बनाया और फिर उनको बीजिंग के फॉरेन लिगेशन क्वार्टर में ले जाकर रखा। संघर्ष 55 दिनों तक चला जिसके लिए 20,000 जवान बीजिंग में गए थे।
ब्रिटिश आर्मी के साथ करीब करीब 8,000 जवान थे जो कि भारत से गए थे जिसमें सिख और पंजाब रेजीमेंट के ज्यादातर जवान थे। यहां एक बात और कही जाती है कि ब्रिटिश आर्मी जीत के बाद लूटपाट करने लगी। फ्रांस और रूस के जवानों ने तो वहां पर रह रहे लोगों की हत्या की को वहीं महिलाओं के साथ रेप किया पर सिख सैनिक अपने गोल को पूरा करने में जी-जान से लगे रहे। जो लॉफिंग बुद्धा चुशुल के आर्मी मेस में रखा गया है वो उन सारी चीजों में शामिल था जिसको जवान अपने साथ ले आए थे।
ऐसी बातें कई कई बार कही जाती रही है कि अपने साथ हुए उस बर्ताव को ही चीनी नेतृत्व ने देश को आगे बढ़ाने वाले आंदोलन के तौर पर बढ़ाया और जारी रखा। ऐसा माना जाता रहा है 1962 की जंग भारत के खिलाफ चीन ने इसी सोच के साथ युद्थ किया । एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यही वजह है कि पंजाबी या फिर सिख सैनिकों को पीएलए मनोवैज्ञानिक तरीके से कमजोर करने के लिए इस तरह के ऑपरेशन करती रहती है।