सिख धर्म की स्थापना सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने की थी. सिख धर्म का आगाज 15वीं शताब्दी में पंजाब में हुआ था. जिसके बाद विभिन्न जातियों, धर्मो और जगहों के लोगो ने सिख धर्म की दीक्षा ली और खालसा पंथ को अपनाया था. जब गुरु नानक देव जी सिख धर्म की स्थापना की थी तो कहा था कि इस धर्म एम् हर धर्म के लोगो का स्वागत है. उनका मानना था कि ईश्वर एक है, जिससे हम व्यक्तिगत रूप से जुड़ सकते है, उसके लिए किसी ब्राह्मण, साधुओ और मौलियो की जरूरत नहीं होती है. जब सिख धर्म की स्थापना की गयी थी, सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने कहा था कि सिख धर्म में कोई जाति नहीं होगी. इस धर्म में सारी जातियों एक समान है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बतायेंगे की सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की प्रेरणा कहा से मिली है.
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गुरु जी को सिख धर्म की स्थापना की प्रेरणा कहा से मिली
हम आपको बता दे कि सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी. सिख इतिहास के अनुसार सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का कहना था कि ‘चिंतन के जरिये ही अध्यात्म के पंथ पर आगे बढ़ सकता है’. गुरु नानक देव जी का मानना था कि अपनी जीवन शैली के जरिए ही हम ईश्वर को अपने भीतर पा सकते है, जिससे प्रेरित होकर गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी.
सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी
हम आपको बता दे कि सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब के ननकाना साहिब में 15 अप्रैल 1469 को हुआ था. कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी के शुरुवाती के कई साल काफी खास रहे है, ईश्वर उन्हें कुछ खास करने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहता था.
सिखों के इतिहास के अनुसार गुरु जी के पिता बचपन में उन्हें गाय चराने के लिए भेजते थे, गाय को चरते समय बीच में गुरु जी धरण लगा कर बैठ जाते थे, गाय दूसरो के खेतो में नुकसान कर देती थी, जिससे गुरु जी के पिता उनपर गुस्सा भी करते थे. गाव वालों ने कई बार गुरु जी के साथ हुए चमत्कारों को देखा था, जिसके चलते गाव वालों को लगता था कि यह लड़का कोई संत है.
गुरु जी को ध्यान की ओर आकर्षित होते देख, गाव वाले गुरु जी के पिता से कहते थे कि इस लडके को धार्मिक ज्ञान की शिक्षा दो, यह लड़का आपने जीवन में कुछ न कुछ जरुर करेगा. जिसके चलते उन्होंने बचपन में ही हिन्दू धर्म में रह कर विभिन्न धर्मो का अध्ययन शुरू कर दिया था.
गुरु जी के बरे में एक प्रसिद्ध कहानी यह भी है कि वह 11 साल की उम्र में ही विद्रोही बन गए थे, उन्होंने जनेऊ पहने से इंकार कर दिय था. उनका कहना थ की जनेऊ पहने की जगह अपने व्यक्तित्व के गुणों को बढ़ाना चाहिए.
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