Sri Muktsar Sahib History in Hindi – हम सब जानते है कि सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविदं सिंह जी थे, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पलों में विश्व के सारे सिखों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि मेरे बाद कोई इंसान सिख गुरु नहीं बनेगा, सारे सिखों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब को अपना गुरु मानना होगा. जिसके बाद श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ही सिखों की गुरु है. गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना बैशाखी वाले दिन की थी, जिससे सिखों की जीवन का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इन्होने अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ काफी युद्ध लडे थे. जिसमे गुरु गोविंद सिंह का साथ उनके अनुयायियों और उनके सेना ने दिया था. जिनका इतिहास में जिक्र मिलता है. हम सब जानते है कि गुरुओ के अनुयायी अपने गुरु के लिए जान दे भी सकते थे और जान ले भी सकते थे.
दोस्तों, आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताएंगे, जहाँ गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा मुगलों के साथ उनकी आखरी लड़ाई लड़ी गयी थी, जिसमे उनके 40 शिष्यों ने साथ दिया था. इस जगह का नाम श्री मुक्तसर साहिब है.
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श्री मुक्तसर साहिब का इतिहास
मुक्तसर साहिब जिससे मुक्तसर भी बोला जाता है. यह पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब जिले में स्थित एक नगर या नगरपंचायत है. यह सिखों के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण स्थान है इस जगह पर सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद जी ने मुगलों के साथ 1705 में अंतिम युद्ध लड़ा था. इस लड़ाई में गुरु जी के 40 शिष्य शहीद हो गए थे. गुरु गोविंद सिंह जी के इन 40 शिष्यों को 40 मुक्तों के नाम से भी जाना जाता है. इसी के नाम पर इस जगह का नाम मुक्तसर रखा गया है.
यह सिखों के लिए एक पवित स्थल मन जाता है, क्यों कि इसका सम्बंध सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी से है. इस जगह पर दो गुरुद्वारे है गुप्तसर गुरुद्वारा और गुरुद्वारा श्री दत्त सर साहिब .
जब गुरु को छोड़कर चले गए उनके 40 शिष्य
माना जाता है कि इन्ही 40 शिष्यों के कहने पर गुरु जी ने आनंदपुर का किला छोड़ा था. जिसके कुछ समय बाद ही मुगलों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया था. गुरु जी अपने शिष्यों को कहा अगर वह जाना चाहते है तो जा सकते है, लेकिन जाने से पहले उनके मुझे यह लिख कर देना पड़ेगा कि वह जा रहे है, और आज से वह मेरे शिष्य नहीं है.
जब वह अपने घर गए तो उनका स्वागत नहीं किया गया, और उनके परिवार वालों ने कहा कि तुम्हे शर्म आनी चाहिए. तुम गुरु जी (Sri Muktsar Sahib History in Hindi) को अकेला छोड़कर आ गए. जिसके बाद उन्हें खुद पर शर्म आई, लेकिन वह गुरु जी का सामना नहीं कर सकते थे. उसी समय मुगलों ने गुरु जी को खोज लिया, वहा पास ही के तालाब था. कहा जाता है कि गुरु के शिष्यों ने मुगलों के साथ यही पर युद्ध किया था. और वह लड़ाई में सफल भी रहे थे. उसकी बाद गुरु जी इन 40 शिष्यों को मुक्तिसर के नाम से पुकारा था.