“आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ,
सब सीखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रन्थ”
सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के यह शब्द उनकें अंतिम शब्दों में से थे. जहाँ गुरु जी ने अपने अंतिम साँस लिए थे, वर्तमान में वहा गुरुद्वारा हजूर साहिब है, जिसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा, गुरु गोविंद सिंह जी की याद में किया गया था. इसी जगह पर गुरु जी सिख धर्म का प्रचार- प्रसार करने के लिए अपनी अनुयायियों के साथ काफी समय रहे थे. हम आपको बता दे कि जहाँ सिखों के गुरु, गुरु गोविंद जी का दहा संस्कार किया गया था आज वही गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब में गुरु ग्रन्थ साहिब स्थापित की गयी है. यह गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब, सिखों के पांच प्रमुख तख्तों में से एक है इसे अलग चार तख्त श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर, दूसरा सबसे प्रमुख श्री पटना साहिब, तख्त श्री केसगढ़ साहिब, तख्त श्री दमदमा साहिब है. इन पांचो तख्तों की अपनी एक कहानी है.
दोस्तों, आज हम आपको गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब के बारे में बताएंगे, जो सिखों के पांच तख्तों में से एक तख्त है क्या आप जानते है कि कैसे इस गुरूद्वारे का निर्माण हुआ? इस गुरूद्वारे का सिखों के लिए क्या महत्व है?
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गुरु गोविंद सिंह जी से जुडी है कहानी
जैसा ही हमने आपको पहले ही बता दिया है हजूर साहिब, सिखों के 5 तख्तों में से एक तख्त है. यह स्थल नांदेड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है. इस गुरुद्वारे को ‘‘सत्य का क्षेत्र’ भी कहते है इस गुरूद्वारे का निर्माण 1832 और 1837 के बीच महाराजा रणजीत सिंह द्वारा, गुरु गोविंद सिंह जी की यद् में बनाया किया गया था. गोदावरी नदी के किनारे बसा यह शहर सिखों के प्रमुख स्थलों में गिना जाता है. यह दुनिया भर से साल भर लाखों लोग माथा टेकने आते है.
1708 में, सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम साँस लिए थे. 1708 से पहले भी गुरु गोविंद जी अपने अनुयायियों के साथ, गुरु ग्रन्थ साहिब के विचारों का प्रचार प्रसार करने के लिए काफी लम्बे समय तक इस जगह पर रह कर गए थे. फिर जब दौबारा गुरु जी यहा आए तो 1708 में, कुछ धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब ‘वजीर शाह’ ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी.
अपनी मृत्यु को सामने देख कर, सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी में अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाय, सभी सिखों को आदेश दिया कि मेरे बाद आप सभी सिख पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें और तभी से पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है.
सत्य का क्षेत्र है गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब
हम आपको बात दे, गुरु गोविंद सिंह जी की यह इच्छा थी कि उनके साथियों/अनुयायियों में से एक श्री संतोष सिंह जी, जो कि उस समय उनके सामुदायिक रसोईघर की देख-रेख करते थे, नांदेड में ही रहें और गुरु का लंगर को चलता रहे, बंद न होने दे. गुरु जी की इच्छा के अनुसार भाई संतोख सिंह जी के अलावा अन्य अनुयायी चाहें तो वापस पंजाब जा सकते हैं, लेकिन अपने गुरु के प्रेम से आसक्त उन अनुयायियों ने भी वापस नांदेड़ आकर यहीं रहने का निर्णय लिया, गुरु की इच्छा के अनुसार यहां सालभर लंगर चलता है.
सिखों के पांचो तख्त खालसा पंथ के लिए प्रेरणा के स्रोत तथा ज्ञान के केंद्र हैं. गुरु जी के साथियों ने इस जगह पर गुरु गोविन्द सिंह जी की याद में एक छोटा सा मंदिर मंदिर बनाया तथा उसके अन्दर गुरु ग्रन्थ साहिब जी की स्थापना की, वही छोटा सा मंदिर आज गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब के नाम से सिक्खों के के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में ख्यात है
गुरुद्वारा श्री हजूर साहिब को सत्य का क्षेत्र नाम से जाना जाता है क्योंकि यह गुरुद्वारा गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु के स्थान पर ही बनाया गया है. गुरूद्वारे श्री हजूर साहिब का निर्माण 1832 से 1837 के बीच पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा करवाया गया था.
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