हम सब जानते है कि सिखों का सबसे धार्मिक स्थल अकाल तख्त है, जो अमृसर के स्वर्ण मंदिर में स्थित है. इस तख्त की स्थापना सिखों के छठें गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह जी में की थी. सिखों से जुड़े सारे बड़े फैसलें यही लिए जाते है, और उन फैसलों के मानने के लिए विश्व के सारे सिख बाध्य है. एक तरह से अकाल तख्त सिखों की अदालत की तरह है. जहां पर दोष के अनुसार दंड भी दिया जाता है. गुरु हरगोविंद सिंह जी, सिख गुरुओं में पहले ऐसे गुरु थे, जिन्होंने तलवार उठाई थी. धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने शस्त्र शिक्षा भी ग्रहण की थी.
गुरु हरगोविंद सिंह चाहते थे कि सिख कौम शांति, भक्ति और धर्म के साथ साथ अत्याचार और जुर्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त हो. गुरु जी ने अपने जीवन में धर्म कि रक्षा और अत्याचार के खिलाफ कई युद्ध भी लड़े ओरे जीते. सिखों के इतिहास में गुरु हरगोविंद सिंह जी की गिनती महान योधाओं में होती थी. उन्होंने मुगलों को कई बार हराया था. आईये आज हम आपको गुरु हरगोविंद सिंह जी के जीवन की कुछ रोमाचक किस्सों के बारे में बतायेंगे. क्या आप जानते है कि गुरु जी ने मुगल सम्राटों के फरमानों को मानने से इंकार कर, सिखों के लिए स्वयं फैसले लिए.
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गुरु हरगोविंद साहिब जी की गद्दी मुगलों के सम्राट से ऊंची
सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह जी गुरु अर्जुन देव जी और माता गंगा के पुत्र थे. उनका जन्म पंजाब, अमृतसर में 19 जून, 1595 में हुआ था. उन्हें छठे बादशाह के नाम से भी जाना जाता था. सिखों के छठे गुरु ने अपने जीवन में सिख धर्म के धर्मिक, आचारिक-वैचारिक कई प्रकार के परिवर्तन देखे है जिसके चलते उन्हें धर्म की रक्षा के लिए तलवार उठानी पड़ी थी. उनके समय में मुगल सम्राट लोगों पर अत्याचार करते थे, जिसके चलते गुरु हरगोविंद सिंह जी ने उनके खिलाफ युद्ध किए.
कहा जाता है कि सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह ने ही सिख पंथ को योद्धा चरित्र दिया. सिख धर्म का एक मजबूत धर्म के रूप में पेश किया. उन्होंने 11 साल की उम्र में गद्दी संभालते ही गुरु हरगोबिंद सिंह ने मीरी और पीरी की दो तलवारें ग्रहण की थीं. मुगलों के अत्याचार से दुखी होकर लोग हमेशा उनके पास मदद के लिए आया करते थे. ऐसे में सांसारिक और न्यायिक मामलों पर विचार करने के लिए गुरु हरगोविंद सिंह जी ने एक तख्त की स्थापना की, जिसे अकाल तख्त के नाम से जाना गया. उस समय मुगल सम्राट का फरमान था कि कोई भी अपने सिंहासन को 3 फीट से ऊंचा नहीं रख सकता. लेकिन मुगलिया सल्तनत को चुनौती देते हुए, गुरुजी ने अपना सिंहासन 13 फीट ऊपर लगवाया था. वहां पर बैठकर गुरु हरगोविंद जी न्याय करने लगे. ऐसा करके वह सिख कौम को यह सन्देश देना चाहते थे कि सिख पन्थ का औधा मुगलों के आदेश से ज्यादा है.
गुरु हरगोविंद सिंह जी ने सिख पंथ को दिया नया रूप
हम आपको बता दे कि सिखों के गुरु हमेशा से तलवार नहीं उठाते थे, सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह जी पहले से गुरु थे, जिन्होंने सिखों को कहा था कि धर्म कि रक्षा के लिए सिख तलवार उठा सकते है. गुरु जी ने समाज में धार्मिक, आचारिक-वैचारिक कई तरह के बदलाव देखे है जिसके चलते धर्म कि रक्षा के लिए उन्होंने तलवार उठाई और शस्त्र शिक्षा भी ग्रहण की थी. उसी समय से सिख अपने साथ कृपन रखते है. यह उनके सिख पंथ की निशानी मानी जाती है.
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