“क्या शक्ल पर 12 बजा कर रखे है….” यह बात तो हम सबने सुनी या बोली होगी. आमतौर पर हम यह बात किसीको जब कहते है जब कोई शकल बना के घूम रहा हो.. तो हम यह बोल देते है कि क्यों शकल पर 12 बजा कर बैठे हो. लेकिन क्या आप इस कहावत का मतलब जानते है ? इस कहावत के पीछे क्या कहानी है ? हम दिन भर में कितने ही बातें बोलते है. उन बातो में कितनी ही कहावते होती है लेकिन हम कभी उनकर ऊपर ध्यान नहीं देते की इन कहावतो का क्या मतलब होगा. आज हम आपको हमारे इस लेख से इस कहावत का मतलब बतायेंगे, की 12 बजने का क्या मतलब होता है… 12 बजे की कहावत सिखों से सम्बंधित है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बतायेंगे कि 12 बजने का क्या मतलब होता है ? इस कहावत के पीछे की क्या कहानी है ?
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सिखों के 12 बजने की कहानी
हम आपको बता दे कि 12 बजने की कहावत सिखों की है, इस कहावत की कहानी सिखों से जुडी हुई है. सिखों के इतिहास के अनुसार इस कहानी का सम्बंध 18 शताब्दी से है जब फारस के राजा नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया था. मार्च 1739 में नादिर शाह की सेना दिल्ली पहुंच और उसके बाद युद्ध हुआ. इस आक्रमण में हजारों की तादात में हिन्दू, मुस्लिम मारे गए और महिलओं को बंदी बना लिया था. इसके बाद नादिर शाह की सेना पंजाब से गुजर रही थी. उस समय सिखों ने नादिर शाह से महिलाओं को आजाद करने के लिय एक योजना तैयार की थी. लेकिन नादिर शाह की सेना सिखों के कहीं ज्यादा थी, जिसके चलते सिखों को कुछ अच्छी योजना की जरूरत थी.
सिखों ने रात में नादिर शाह के सिपाहियों के शिवरों में जाने की योजना बनाई और रात में जितनी महिलाओं को आजाद करवा सकते थे, उन्हें आजाद करवा दिया. इसीलिए 12 बजते ही दहल उठता था आक्रांताओं का कलेजा. आजाद करवाई गई महिलओं को सिखों ने उनके घर पहुचने में मदद की और उनकी गरिमा का भी ध्यान रखा.
सिखों का चलाया अभियान
कहते है कि अहमद शाह भारत में महिलओं को उठा कर गजनी के बाजार में बेचता था, जिसके खिलाफ सिखों के सरदार ने एक अभियान चलाया था. वह उन महिलों को बचन एके लिए हमेशा 12 बजे निकलते थे. इस अभियान के चलते अत्याचारी भी उनसे डरते थे. सिखों ने कभी भी किसी से डरना नहीं सिखा है. जब जब समाज में कुछ ऐसे अत्याचार हुए है , सिखों ने उनके खिलाफ आवाज उठाई है. जिसके चलते 12 बजे की कहानी काफी आम बोलचाल की बातों में बोली जाती है.
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