जब भी हम भारत की बात करते हैं तो ये एक ऐसा देश बनकर उभरता है जहां आप हर तरह की प्लानिंग कर सकते हैं अम्बाला-नारायणगढ मार्ग पर जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा (Panjokhra Sahib Gurudwara in Hindi) अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण न केवल हरियाणा बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए एक श्रद्धा का केन्द्र बिन्दू बना हुआ है.
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लगभग 8000 की आबादी वाले गांव पंजोखरा साहिब को सिक्खों के आठवें गुरू श्री हरकिषन जी ने अपने पवित्र चरणों का स्पर्ष प्रदान किया था. गुरू जी के पंजोखरा आगमन से लेकर आज तक प्रत्येक रविवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु गुरू जी के इस पवित्र स्थान पर नतमस्तक हो न केवल मनोकामनाएं पूरी करते हैं बल्कि यहां के पवित्र सरोवर में स्नान करने से मनुष्य को शारीरिक रोगों से भी छुटकारा मिलता है.
एक लंबा इतिहास संजोए है Panjokhra Sahib Gurudwara
सिक्ख इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि गुरू जी का जन्म सावन सुधी 9 सम्वत 1713 को कीरतपुर साहिब पंजाब में हुआ था. गुरू जी को जन्म से ही गुरूओं की पवित्र वाणाी के साथ प्रेम था और उनके इस प्रेम को देखकर सातवें गुरू श्री हरराय जी ने सम्वत 1718 में मात्र 5 वर्ष की आयु में गुरू गद्दी उन्हें सौंप दी थी.
गुरू जी के दर्षन करने वाले लोगों को न केवल मानसिक शान्ति प्राप्त होती थी बल्कि उनके चरण स्पर्ष से कुछ की क्षणों में पुराने से पुराने रोग भी दूर हो जाते थे. गुरू हरकिषन जी के बारे में इस तरह की चर्चा सुनने के उपरांत मुगल शासन औरगंजेब ने भी इनके दर्षन करने चाहे, लेकिन आपने कहा कि न तो औंरगजेब को दर्षन देंगे और न ही कभी उससे किसी तरह का संबध रखेंगे.
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इनको लेकर एक काहानी काफी ज्यादा प्रचलित है कि राजा जयसिंह को सिक्ख धर्म के अनुयायी थे, ने अपने दूत परसराम के माध्यम से गुरू जी को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया और उनके इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए आपने दिल्ली की तरफ कूच किया. श्री हरकिषन जी कीरतपुर से दिल्ली जाते समय पंजोखरा साहिब में रूके और उनके यहां आने की खबर सुनते ही पंजोखरा साहिब व आस-पास के क्षेत्रों में भारी संख्या में श्रद्धालु उनके दर्षनों के लिए आने शुरू हो गये. जो भी व्यक्ति उनके दर्षन करता, तो न केवल उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती थी बल्कि शारीरिक लोगों से पीडित लोगों को भी गुरू जी ने निकट ही स्थित तालाब में स्नान करने के लिए कहा और आज यह तालाब एक पवित्र सरोवर के रूप में गुरूद्वारा साहिब के भवन के बिल्कुल समीप स्थित है.
गांव पंजोखरा के ही पंडित लालचंद को जब इस संबध में पता चला, तो उन्होंने श्री हरकिषन जी को गुरू मानने से इंकार करते हुए कहा कि इनती छोटी अवस्था में एक बालक को गुरू की उपाधि कैसे दी जा सकती है. पंडित लालचंद ने सिक्खों के सामने शर्त रखी कि यदि श्री हरकिषन जी गीता के श्लोकों के अर्थ कर दे, तों मैं उनकों गुरू मानने के लिए तैयार हूं. पंडित जी भागवतगीता लेकर गुरू जी के दरबार में आए और गुरू जी से कहा कि अगर अपने आप को सिक्ख धर्म के आठवें गुरू कहलवात हो, तो आप श्री कृष्ण जी की भागवतगीता के अर्थ करके दिखाएं. गुरू जी के आप गांव से किसी भी व्यक्ति को मेरे पास ले आओ और वह व्यक्ति गीता के श्लोकों के अर्थ कर देगा.
जब पंडित जी ने ली थी गुरु हरिकिशन जी की परीक्षा
पंडित जी ने गुरू जी के साथ चालाकी करते हुए छज्जू जो झीवर जाति से संबध रखता था और बोलने व सुनने में असमर्थ था, को गुरू जी के सामने पेष कर दिया. गुरू जी ने इस गूंगे-बहरे व्यक्ति को सरोवर में स्नान करवाया और उसके सिर पर छडी रखकर पंडित लालचंद को गीता का कोई भी श्लोक उच्चारण करने के लिए कहा. जैसे ही पंडित ने श्लोकाचारण किया, तो जन्म से गूंगे-बहरे छज्जू ने बिना किसी देरी के गीता के श्लोक के अर्थ कर दिये.
यह देखकर पंडित गुरू जी के चरणों में गिर पडा और अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की. आज भी गुरूद्वारा पंजोखरा साहिब (Panjokhra Sahib Gurudwara in Hindi) के बारे मे कहा जाता है कि श्रद्धा और प्रेम भाव से पवित्र सरोवर में स्नान करके गुरूद्वारा साहिब के दर्षन करने से गूंगे व बहरे व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाते हैं. इसके कुछ दिनों उपरांत गुरू जी ने इस स्थान पर निषान साहिब स्थापित किया और संगतों को आने वाले श्रद्धालुओं के लिए लंगर चलाने के आदेष दिये. उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति सच्चे मन से लगातार पंच रविवारों को गुरूद्वारा पंजोखरा साहिब के दर्षन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी और उसे सदा के लिए शारीरिक रोगों से भी छुटकारा मिलेगा.
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इसके उपरांत गुरू जी दिल्ली की ओर रवाना हो गये और अब गुरू जी के आसन ग्रहण करने वाले स्थान पर एक भव्य गुरूद्वारा बना हुआ है और इसके भव्य व सुन्दर भवन का जीर्णोद्वार किया जा रहा है. गुरूद्वारे के साथ ही पवित्र सरोवर, लंगर हाल, दर्षनी डयोडी और भव्य दीवान हाल का निर्माण किया गया है. इस गुरूद्वारा में देष के विभिन्न स्थानों के अतिरिक्त विदेषों से आने वाले श्रद्धालु भी इस पवित्र व धार्मिक महत्व के स्थान के दर्षन करते हैं.
पंजोखरा साहिब गुरद्वारे की खासियात?
पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा की खूबसूरती और शुद्धता ही इसे खास बनाती है. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि पंजोखरा साहिब गुरुद्वारे में जाने और प्रार्थना करने से आपके सारे पाप धुल जाते हैं. साथ ही, हर बीमारी दूर हो जाती है. इसके अलावा, कहा जाता है कि यहां आने वाले लोगों की हर प्रार्थना पूरी हो जाती है.
स्वादिष्ट लंगर सेवा?
पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा का लंगर हर दिन 50 हजार लोगों को अपनी सेवा प्रदान करता है. त्योहारों के मौके पर यहां लोगों की संख्या अक्सर एक लाख हो जाती है. बड़ी संख्या के बावजूद, गुरुद्वारा में कभी भी स्वच्छता और गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जाता है. लोग यहां प्रार्थना करने के साथ-साथ यहां के स्वादिष्ट लंगर का लुत्फ़ भी उठाते हैं.
पंजोखरा साहिब गुरुद्वारे की वास्तुकला?
इस गुरुद्वारे की खूबसूरती भी लोगों को काफी आकर्षित करती है. यहां साल भर लोगों की भीड़ लगी रहती है. सफेद संगमरमर से बना यह गुरुद्वारा लोगों को शांत वातावरण प्रदान करता है. इसके अलावा, इस गुरुद्वारे में त्योहार वाले दिन बड़ी सख्या में लोग यहां प्रार्थना करने आते हैं. पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा सिख धर्म का प्रमुख गुरुद्वारा है. इसलिए लोग दिल्ली से ही नहीं बल्कि पूरे भारत से लोग इस गुरूद्वारे का दर्शन करने आते हैं.
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