निर्मल होने पर ही मन में ईश्वर का निवास होता है. मन जो कार्य करने के लिए अंत:करण से तैयार हो, वही उचित है. यदि मन सही है, तो कठौते के जल में ही गंगा में डुबकी का पुण्य फल प्राप्त हो सकता है. यह है संत रविदास जी का दर्शन. मन को स्थिर करने और भक्ति की धारा में समयबद्धता व वचन को लेकर अडिग रहने की जरूरत को संत रविदास जी ने सिर्फ बताया ही नहीं, बल्कि छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से करके भी दिखाया. कर्म ही धर्म.

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उन्होंने कर्म को ही धर्म बताया तथा श्रम को परमपिता परमात्मा की साधना-आराधना से जोड़ा. संत रविदास भक्ति आंदोलन के ऐसे संत हैं, जिन्होंने अपने कृतित्व ही नहीं व्यक्तित्व से भी श्रम की महत्ता को प्रसारित किया. आज हम जानेंगे संत रविदास से जुड़े 10 तथ्यों के बारे में जिन्हें आपको जरूर जाना चाहिए.
संत रविदास से जुड़े 10 फैक्ट्स…
- जन्म, जन्म स्थान और जन्मदाता: संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को हुआ था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था. उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है. रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे. ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे.
- संत रविदास के गुरु रामानंद : संत रविदासजी बचपन में ही भक्ति में लीन रहते थे. उनकी प्रतिभा को जानकर स्वामी रानानंद ने उन्हें अपना शिष्य बनाया. स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे. संत कबीर, संत पीपा, संत धन्ना और संत रविदास उनके शिष्य थे. संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरुभाई माने जाते हैं. स्वयं कबीरदास जी ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इन्हें मान्यता दी है. हालांकि इसका आधिकारिक विवरण नहीं मिलता कि उनके गुरु रामानंद थे.
- सामाजिक एकता पर बल : संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी. इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते हैं जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो.
- रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि ‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच’ यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है. जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है. कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता.
- मीराबाई थीं उनकी शिष्या: राजस्थान की कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई की रविदास से मुलाकात का कोई आधिकारिक विवरण तो नहीं मिलता है, लेकिन कहते हैं मीरा के गुरु रविदासजी ही थे. कहते हैं संत रविदास ने कई बार मीराबाई की जान बचाई थी.
मीराबाई के एक पद से उनके गुरु का पता चलता है:-
‘गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी.’
‘मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस.
जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास..’
- संत एक नाम अनेक : रविदाजी को पंजाब में रविदास कहा. उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र के लोग ‘रोहिदास’ और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं. कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है. कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया.
- संत शिरोमणि: उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था. उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए. संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे. यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था. उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे. ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था.
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- दानवीर और दयालु: संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे. जब भी किसी को सहायता की आवश्यकात होती तो बिना पैसा लिए वे लोगों को जूते दान में दे देते थे. संत रविदास की खासियत ये थी कि वह बहुत दयालु थे. दूसरों की सहायता करना उन्हें अच्छा लगता था. कहीं साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे.
- गुरु ग्रंथ में शामिल पद: संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है. साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है. रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित किए गए है.
- संत रविदास का मंदिर: वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है. जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है जो उनके नाम पर ‘गुरु रविदास स्मारक और पार्क’ बना है.
- देहावसन: चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं. वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है. मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गए थे. हालांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है लेकिन कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी.
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