Arjan Dev Ji thoughts – गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु थे. हर साल 23 मई को गुरु अर्जुन देव की शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं. गुरु अर्जन देव जी गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुके. उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया, लेकिन मुगलशासक जहांगीर के आगे झुके नहीं. वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे.
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सिख धर्म में वे सच्चे बलिदानी थे. उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ. वर्ष 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने. उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहते हैं इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था.
गुरु अर्जुन देव जी की बलिदान गाथा
मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्तूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना. साम्राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए और वे जहांगीर को उनके खिलाफ भड़काने लगे. उसी बीच, शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी. तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया. खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा. तब गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और उसे अपने यहां पनाह दी.
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इस बात की जानकारी जब जहांगीर को हुई तो वह अर्जुन देव पर भड़क गया. उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. उधर गुरु अर्जुन देव बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए. उन पर मुगल बादशाह जहांगीर से बगावत करने का आरोप लगा. जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी को यातना देकर मारने का आदेश दिया.
गर्म तवे पर बिठाकर दी यातनाएं
मुगल शासक जहांगीर के आदेश के मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा. अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया. उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया.
यातना के कारण जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया. उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है.
Guru Arjan Dev Ji thoughts
- जिस घर में ईश्वर को प्रशंसा का गान होता है, वह सौभाग्यशाली तथा सुन्दर है; जहां ईश्वर को विस्मृत किया जाता है, वह स्थान व्यर्थ है.
- पापमोचन करो, तथा अपने भगवान का स्मरण करो, तथा तुम्हारे मन और शरीर रोग से मुक्त होंगे. ईश्वर की रक्षा से लाखों बाधाएं दूर हो जाएंगी, तथा तुम्हारा भाग्य उदय होगा .
- गुरु जी कहते हैं कि जब अच्छे कर्मों का उदय होता है तो संदेह की दीवार टूट जाती है.
- उनके प्रयासों से मेरे कर्मों का भार दूर हो गया है, और अब मैं कर्म से मुक्त हूँ.
- जो लोग अपनी चेतना को सच्चे गुरु पर केंद्रित करते हैं वे पूर्ण रूप से पूर्ण और प्रसिद्ध होते हैं.
- जो पहले से ही अच्छे कर्म नहीं करने के लिए नियुक्त थे – भावनात्मक लगाव के दीपक में देख रहे हैं, वे जले हुए हैं, जैसे ज्वाला में पतंगे.
- हे मेरे व्यापारी मित्र, तेरी सांस समाप्त हो गई है, और आपके कंधे बुढ़ापे के अत्याचारी द्वारा तौले गए हैं, हे मेरे व्यापारी मित्र, तुम में रत्ती भर भी पुण्य नहीं आया; बुराई से बंधे और जकड़े हुए, तुम साथ-साथ चल रहे हो.
- उनकी कृपा से, उनके भक्त प्रसिद्ध और प्रशंसित हो जाते हैं, संतों के समाज में शामिल होकर, मैं भगवान के नाम का जप करता हूं, हर, हर; आलस्य का रोग दूर हो गया है.
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