Guru Amardas ji thoughts – सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी का जन्म वैशाख शुक्ल 14वीं, 1479 ई. में अमृतसर के ‘बासर के’ गांव में पिता तेजभान एवं माता लखमीजी के घर हुआ था. गुरु अमर दास जी बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे. वे दिनभर खेती और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद हरि नाम का सिमरन करने में लगे रहते थे. लोग उन्हें भक्त अमर दास जी कहकर पुकारते थे.
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Guru Amardas ji thoughts
एक बार उन्होंने अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देवजी द्वारा रचित एक ‘शबद’ सुना. उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देवजी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे. उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देवजी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की. ऐसे महान नायक गुरु अमर दास जी के 10 अनमोल वचन…
- कोई भी जीवन असफल नही होता क्योकि जीवन मृत्यु,सुखदुख में सतपुरूष समान रूप से संसार के कण कण में विराजमान है.
- ऐसे ही किसी को पति-पत्नी नहीं कहेंगे जो इकट्ठे बैठ जाते हैं.बल्कि वे ही पति-पत्नी कहलाते हैं, जिनके दो शरीरों में एक आत्मा होती है.
- अहंकार, मालकियत, दुष्ट-चित्त और दुख दूर हो जाते हैं, जब भगवान का नाम, सदाचार का सागर, हृदय में निवास करता है.
- गुरु की कृपा से, भगवान मन में निवास करते हैं, और अहंकार की गंदगी दूर हो जाती है.
- जैसे अँधेरे में जलता हुआ दीपक, गुरु का आध्यात्मिक ज्ञान अज्ञान को दूर करता है.
- शिष्टाचार व सतचरित्र गुणों से युक्त मनुष्य का समग्र सफलता प्राप्त करता है.
- संसार अहंकार की मैल से दूषित है, पीड़ा में तड़प रहा है.यह गंदगी उनके द्वैत प्रेम के कारण चिपक जाती है.
- सतनाम का जपन करते हुए शास्वत नियमों का यथाशक्ति पालन करो.
- मानव मरता जरूर है लेकिन उसका ज्ञान, दान और सत्कर्म उसे हमेशा अमर बनाए रखते हैं.
- मित्र और शत्रु,पुत्र,रिश्तेदारो किसी के प्रति आश्रित मत रहो.
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