शायद मेरी ही तरह आप भी उन्हीं में से होंगे जिसने कभी किसी इसाई धर्म के व्यक्ति के दाह संस्कार को नहीं देखा होगा. यहां तक कि बॉलीवुड की फिल्मों में भी हमेशा से यही दिखाया जाता आया है कि जब भी किसी ईसाई धर्म के अनुयायी की मृत्यु होती है तो उसके शव को एक ताबूत में रखकर ले जाया जाता है. इसके बाद ईसाई कब्रिस्तान में पूरे विधि-विधान से दफनाया जाता है. अब तक की इन धारणाओं के उलट मंगलवार को इंदौर में 70 साल के ईसाई पादरी फादर वर्गीज आलेंगाडन का दाह संस्कार किया गया. क्या ईसाई धर्म में दाह संस्कार यानी शव को जलाने की भी अनुमति है? या ईसाई धर्म में पादरियों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था ही अलग है?
फादर वर्गीज आलेंगाडन विश्व बंधुत्व और अनेकता में एकता की आध्यात्मिक विचारधारा पर काम करने वाली संस्था ‘यूनिवर्सल सॉलिडेरिटी मूवमेंट’ के संस्थापक थे. मंगलवार को फादर आलेंगाडन का दाह संस्कार इंदौर के रामबाग मुक्तिधाम के विद्युत शवदाहगृह में किया गया. उनके दाह संस्कार से पहले ईसाई प्रार्थना के साथ ही गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय का पाठ भी किया गया. इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रेड चर्च में रखा गया. वहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी की गई थी.
क्यों किया गया आलेंगाडन का दाह संस्कार?
फादर आलेंगाडन के करीबियों के मुताबिक, भारत में उनके नाम पर कोई जमीन जायदाद नहीं थी. फादर आलेंगाडन हमेशा कहते थे कि मौत के बाद उन्हें दफनाने के बजाय विद्युत शवदाहगृह में उनका दाह संस्कार किया जाए. दरअसल वह नहीं चाहते थे कि उनकी कब्र बनाने के लिए छह फुट से ज्यादा जमीन पर कब्जा किया जाए. इसीलिए 26 मार्च को अस्पताल में मृत्यु होने के बाद 28 मार्च 2023 को उनका दाह संस्कार किया गया.
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ईसाईयों में कैसे शुरू हुआ शव दफ़न?
मृत्यु के बाद शव को दफनाने की परंपरा यहूदियों ने शुरू की थी. इजरायल या पश्चिमी देशों में मौसम ज्यादातर समय बहुत ठंडा रहने के कारण लकड़ी और आग जलाना आसान नहीं होता था. ऐसे में यहूदी धर्म के मानने वालों ने शवों को दफनाने की परंपरा को अंतिम संस्कार के तौर पर अपनाया. यहूदियों के बाद शव दफनाने की परंपरा को ईसाई धर्म के लोगों ने भी अपना लिया. ईसाई धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता के कारण भी शव को ताबूत में रखकर दफनाने की परंपरा है. ईसाइयों में शव का सिर पूर्व दिशा में रखने की परंपरा है.
ईसाइयों में दाह संस्कार की मनाही क्यों?
ईसाई धर्म में शव को दफनाने की परंपरा को दुनियाभर में माना जाता है. ईसाई धर्म में शव के दाह संस्कार पर आपत्ति जताई जाती है. दरअसल, उनका मानना है कि दाह संस्कार से शरीर पूरी तरह नष्ट हो जाता है और मृत व्यवक्ति के पुनर्जन्म की अवधारणा में हस्तक्षेप करता है. यही नहीं, ईसाई धर्म में शव को दफनाने के बजाय जलाने को ज्यादा अमानवीय भी माना जाता है. हालांकि, अब धीरे-धीरे प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक ईसाइयों में सिर्फ दफनाने या दाह संस्कार की मनाही की धारणा गायब होती जा रही है. हालांकि, अब भी पूर्वी रूढ़िवादी चर्च दाह संस्कार को मना करते हैं.
ब्रिटेन में कैसे होता है अंतिम संस्कार
ब्रिटेन में किसी ईसाई का निधन होने पर शरीर को जलाने के बाद राख को दफनाया जाता है. इससे पहले दफनाने की जगह पर शोक सभा होती है. ताबूत के आने पर परिवार के करीबी सदस्य उसके पीछे चलते हैं. ताबूत को एक प्लेटफार्म पर रख दिया जाता है. फिर पुष्पांजलि दी जाती है और परिवार के लोग सभी लोगों का आभार जताते हैं.
फिर ताबूत को एक कमरे में ले जाकर नेमप्लेट को चेक किया जाता है. एक पहचान पत्र को श्मशान से जोड़ा जाता है. ताबूत को दाहगृह में रख दिया जाता है. इसके करीब 90 मिनट में दाह संस्कार हो जाता है. फिर बची हुई अस्थियों इकट्ठा कर एक मशीन में रखा जाता है. इससे अस्थियां भी राख में तब्दील हो जाती हैं. राख को एक पात्र में रखकर क्रिमिनेशन गार्डन में बिखेर या दफना दिया जाता है.
सीरियाई ईसाइयों का अंतिम संस्कार कैसे?
सीरिया के ईसाइयों में अंतिम संस्कार में अंतिम समय के अनुष्ठान नहीं होते हैं. अगर कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा बीमार हो तो पादरी को बुलाया जाता है. इसके बाद अंतिम समय नजदीक आने पर प्रार्थना की जाती है. पादरी मरते हुए व्यक्ति के कान में धार्मिक बातें कहते हैं. मृत्यु के बाद शव को नहलाकर साफ कपड़े पहनाए जाते हैं.
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शव के सिर की तरफ सलीब रख दिया जाता है. फिर मोमबत्तियां और लोबान जलाकर प्रार्थनाएं की जाती हैं. इसके बाद पादरी शव के चेहरे, सीने और घुटनों पर तेल से क्रॉस बनाता है. इसके बाद चर्च के पास शव को ताबूत में रखकर कब्र में रखा जाता है. फिर पादरी सबसे पहले क्रॉस के आकार में मिट्टी डालते हैं. इसके बाद सभी लोग मिट्टी डालते हैं. सीरिया में शव का सिर पश्चिम की ओर रखा जाता है.
कैसे होता है पादरियों का अंतिम संस्कार?
ईसाई धर्म में पादरी के गंभीर बीमार पड़ने और अंतिम समय नजदीक आने पर चर्च की घंटियां बजाई जाती हैं. साथ भजन और प्रार्थनाएं की जाती हैं. मृत्यु के बाद भी प्रार्थनाएं चलती रहती हैं. शव को नहलाकर साफ किया जाता है. इसके बाद शव को साफ और नए कपड़े पहनाए जाते हैं. ईसाई धर्म में मोक्ष को भी काफी महत्व दिया जाता है. इसलिए उनके सीने पर मोक्ष के चिह्न के तौर पर क्रॉस रखा जाता है. फिर उनके शव को अंतिम दर्शनों के लिए रखा जता है. इसके बाद उनके शव को ताबूत में रखकर चर्च के ही कब्रिस्तान में ले जाया जाता है.
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कब्रिस्तान में पादरी के ताबूत में रखे शव को प्लेटफॉर्म पर रखा जाता है. वहां फिर से प्रार्थना की जाती है. इसके बाद ताबूत को कब्र में रखा जाता है. फिर अंतिम संस्कार करा रहे पादरी उस पर पबित्र जल छिड़कते हैं. इसके बाद क्रॉस के आकार में पहले पादरी मिट्टी डालते हैं. फिर बाकी सभी लोग मिट्टी डालते हैं. इसके बाद उनकी कब्र पर सभी लोग फूल चढ़ाते हैं. अंतिम संस्कार में शामिल सभी लोगों को प्रसाद दिया जाता है, जिसे एक पादरी सीधे लोगों के मुंह में रखते हैं.