हम आपको बात दे, महापुरुषों के कुछ स्थान है जो अभी भी मौजूद है. आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान तिजारा के बघौरा गांव के बारे में बतायेंगे. जिनका सम्बंध सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी से है. गुरु गोविंद जी की पहली दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान 1706 के आस पास ढाई महीने अलवर जिले के बाघौर क्षेत्र में बिताए थे. यह गाँव तिजारा क्षेत्र में आता है. बाघौर गांव के पास बाग वाले पीर का कुआं व बाग वाले पीर की दरगाह है. वहां बाघौर, दमदमा और ग्राम गुर्जर मालियार आज भी मौजूद है जिन्हें महापुरुषों का स्थान बताया जाता है. और इस स्थान का सम्बंध, सिखों के 10वें गुरु, गोविंद जी से होना काफी रोमांचक लगता है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बताते है कि कैसे इस स्थान का सम्बंध, गुरु गोविंद जी से है. गुरु गोविंद सिंह जी कैसे अपनी पहली दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान यहा रुके.
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गुरु गोविंद सिंह जी से तिजारा के बघौरा गांव का सम्बंध
पंजाब के, गुरुमत जिले के कमेटी के चेयरमैन सरदार हरजीत सिंह ने बताया कि 1705 में गुरु श्री गोविंद सिंह जी पंजाब से दक्षिण भारत की अपनी पहली यात्रा पर थे. गुरु गोविंद जी नोहर, चूरू, नारायणा, सावरदा, भादरा, सांवा, दादूद्वारा, लाली ग्राम, मंगरोदा, कोलायत व शेखावाटी उदयपुर होते हुए ग्राम बाघौर पहुंचे थे. बीच में, उन्होंने सोचा गोविंद सिंह जी पंजाब से दक्षिण भारत की अपनी पहली यात्रा जाना चाहिए. और वह विराटनगर के लिए अपने अनुयायियों के साथ निकल लिए. विराटनगर का रास्ता इतना आसन नहीं था. वहां जाने के लिए उन्होंने लोगो के आसन रास्ता पुछा, लोगो ने आसन रास्ता बता तो दिया लेकिन वह रास्ता पहाड़ पर चड़कर था. जिस रस्ते पर चलते हुए गुरु गोविंद जी और उसके अनुयायी बाघौर शहर पहुचें.
सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के साथ 250-300 बल्लम धारी सिख व तोप गाडिय़ां भी थीं. यह सब देखा कर बाघौर गावं के लोग डर गए थे. तभी गुरु गोविंद सिंह जी ने दो चार लोगों को आगे भेजकर गावं वालों को सब बताया. और कहा डरने के जरूरत नहीं है. गाँव वालों के पुछा आप लोग यहा , तोपों के साथ क्यों आए हो ? गावं वालो को बताया गया कि गुरु गोविंद सिंह जी कीचक की हत्या वाला स्थान देखने जा रहे हैं.
आगे जाकर गुरु गोविंद जी एक बाग में रुके. जिस बाग में गुरु जी रुके थे, वहां स्थानीय लोग पहुचं गए. उन लोगो ने गुरु गोविंद सिंह जी के आगे एक विनती की कि वह एक बाग के पीछे एक ओर डेरा करे क्यों कि उस जगह से पूरा गावं भयभीत है. गुरु जी गावं वालों के साथ दूसरे बाग में गया और वहां जाकर अपना एक डेरा बनाने का आदेश दिया. जो आज भी उस स्थान पर मौजूद है.
इन किताबों में मिलता है इस घटना का जिक्र
गुरु गोविंद सिंह जी के समकालीन खाफी खान कीई पुस्तक मुंस्तकिल बुलबाब और 1971 में ज्ञानी ईश्वर सिंह नारा द्वारा प्रकाशित पुस्तक सफरनामा और जफरनामा में गुरु गोविंद जी के जीवन की कई घटनाओ में से एक इस घटना का जिक्र भी मिलता है. इन पुस्तको में गुरुगोविंद सिंह जी की पहली दक्षिण यात्रा के दौरान कीचक की हत्या वाले स्थान विराटनगर व उनकी तिजारा क्षेत्र के ग्राम बाघौर, ग्राम दमदमा व बहरोड़ यात्रा का वर्णन मिलता है.