क्या सरकार 20-30 रुपये का सैनिटरी पैड नहीं दे सकती?
बिहार देश के पिछड़े राज्यों में से एक है और यहाँ के लोगों में बहुत चीजों को लेकर जागरूकता की भी कमी है। बिहार की राजधानी पटना में बच्चियों की जागरूकता के लिए हुई एक वर्कशॉप के दौरान एक लड़की ने पूछा कि क्या सरकार 20-30 रुपये का सैनिटरी पैड (Sanitary Pads) नहीं दे सकती? इसके जवाब में एक सीनियर महिला आई ए (IAS ) एस अधिकारी ने कहा कि इस मांग का कोई अंत नहीं है।
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IAS अधिकारी हरजोत कौर बम्हरा ने लड़की को जवाब देते हुए कहा कि, “20-30 रुपए का सैनिटरी पैड दे सकते हैं। कल को जींस-पैंट दे सकते हैं। परसों सुंदर जूते क्यों नहीं दे सकते हैं?” उन्होंने आगे बोला कि अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध (condom) भी साकार को मुफ्त में ही देना पड़ेगा।
महिलाएं अभी भी करती हैं माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल
आज भी ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी इलाकों की भी महिलाएं माहवारी (menstruation) के समय कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं। इसके पीछे मुख्य कारण महिलाओं के अंदर जागरूकता के साथ-साथ पैसों की भी कमी है जिस कारण आज भी महिलाएं पैड्स खरीदने में असमर्थता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, राज्य में 15 से 24 वर्ष की 68.6 प्रतिशत लड़कियां अभी भी पुराने कपड़ों का प्रयोग करती हैं। साफ़ सफाई की कमी और अन्य कारणों से संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। इसके बाद भी अगर कोई महिला IAS अधिकारी इस तरह का जवाब दे तो कहाँ तक जायज है।
मंगलवार, 27 सितम्बर को पटना में ‘सशक्त बेटी, समृद्ध बिहार: टुवर्ड्स एन्हान्सिंग द वैल्यू ऑफ गर्ल चाइल्ड’ विषय पर एक वर्कशॉप हुई। इस वर्कशॉप को महिला एवं बाल विकास निगम द्वारा यूनिसेफ, सेव द चिल्ड्रेन एवं प्लान इंटरनेशनल ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था। वर्कशॉप के माध्यम से लैंगिक असमानता (Gender inequality) मिटाने वाली सरकारी योजनाओं से बच्चियों को वाकिफ कराना था। लेकिन जब वर्कशॉप के दौरान बच्चियों ने महिला एवं बाल विकास निगम की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक हरजोत कौर बम्हरा से इन योजनाओं से जुड़े सवाल पूछे तो उन्हें अजीबो-गरीब जवाब मिले। इससे वर्कशॉप में हिस्सा ले रहे सभी लोग स्तब्ध रह गए।
बच्चियों के सवाल और IAS का जवाब
Q. मैं मिलर स्कूल की छात्रा हूं। स्कूल का शौचालय टूटा है। अक्सर लड़के भी घुस जाते हैं। शौचालय न जाना पड़े, इसलिए कम पानी पीते हैं।
हरजोत कौर: अच्छा यह बताओ, तुम्हारे घर में अलग से शौचालय है। हर जगह अलग से बहुत कुछ मांगोगी तो कैसे चलेगा।
Q. नहीं मैम, जो सरकार के हित में, सरकार को देना चाहिए। वह तो दे।
हरजोत कौर: सरकार से लेने की जरूरत क्यों है। यह सोच गलत है। खुद भी कुछ किया करो।
Q. मैं प्रिया कमला नेहरू नगर से आई हूं। सरकार सब-कुछ देती है। क्या स्कूल में 20-30 रुपए का सैनिटरी पैड नहीं दे सकती है?
हरजोत कौर : अच्छा जो ये तालियां बजा रहे हैं। इस मांग का कोई अंत है। 20-30 रुपए का सैनिटरी पैड दे सकते हैं। कल काे जींस-पैंट दे सकते हैं। परसों सुंदर जूते क्यों नहीं दे सकते हैं? नरसों को वो नहीं कर सकते। अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध भी मुफ्त में देना पड़ेगा।
जींस-पैंट और सुंदर जूते, सैनिटरी पैड की जगह नहीं ले सकती
अब यहां एक सोचने वाली बात ये है की अगर सरकार सरकारी स्कूलों में मिडडे मील जैसी योजनाएं चला सकती है तो, देश भर की महिलाओं की इतनी बड़ी समस्या के लिए सरकार स्कूली छात्राओं के लिए फ्री सैनिटरी पैड (Free Sanitary Paid) की कोई योजना क्यों नहीं ला सकती। लेकिन इन पढ़े-लिखे IAS अधिकारी को कौन ही समझा सकता है कि जींस-पैंट और सुंदर जूते, सैनिटरी पैड की जगह लेकर इन बच्चियों की जान नहीं बचा सकती।
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