अगर हम वर्तमान पंजाब की राजनीति के बारे में बात करें, तो यहां की राजनीति में तीन पार्टियों का वर्चस्व देखा जा सकता है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल (बादल). हमेशा से पंजाब (सिख समुदाय प्रधान वाला राज्य) की राजनीति में एक सिख उम्मीदवार का महत्व रहा है, ध्यान देने कि बात है कि आजाद भारत में आजतक पंजाब में केवल तीन हिन्दू मुख्यमंत्री रह चुके है, वो भी पंजाब में पुनर्गठन से पहले. यानि 1966 में पंजाब और हरियाणा अलग होने के बाद से कोई भी हिन्दू उम्मीदवार पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बना है. ये तीन हिंदू मुख्यमंत्रियों पंजाब के पुनर्गठन से पहले वहां के मुख्मंत्री बने थे. इनके कार्यकाल में पंजाब की राजनीति ने काफी उतार-चढ़ाव देखे है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको उन तीन हिंदू मुख्यमंत्रियों के बारे में बताएंगे जो पंजाब की भूमि पर मुख्यमंत्री के पद पर रह चुके है. उन तीन हिंदू मुख्यमंत्रियों के कुछ ऐसे किस्से सुनाएंगे जिनसे काफी कम लोग वाखिफ है.
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पंजाब के 3 हिंदू मुख्यमंत्री
गोपी चंद भार्गव
आजादी के बाद पंजाब राज्य के पहले मुख्यमंत्री के साथ-साथ गोपी चंद भार्गव पहले हिन्दू मुख्यमंत्री भी थे, गोपी चंद भार्गव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के कदावर नेता थे, जिनका जन्म पंजाब के सिरसा जिले में 8 मार्च 1889 को हुआ था. उन्होंने वर्ष 1912 में मेडिकल कॉलेज (लाहौर) से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की. गोपी चंद भार्गव ने आजादी के बाद तीन बार पंजाब के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला था. गोपी चंद को हम एक स्वतन्त्रता सैनानी के तौर पर जानते है जिनका हमारी देश की आजादी में अहम योगदान रहा है.
भीम सेन सचर
1921 में , भीम सेन सचर को पंजाब के कांग्रेस कमेटी में सचिव के रूप में चुना गए थे. आजादी के बाद पंजाब राज्य के दूसरे हिन्दू मुख्यमंत्री भीम सेन सचर बने थे, गोपी चंद भार्गव के बाद भीम सेन सचर को ही पंजाब की कमान सम्भालने का मौका दिया गया था, इनका जन्म 1994 को लाहौर के पेशावर में हुआ था, जिसके बाद इन्होने वकालत की पढाई कि थी. यह एक ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो जनता की वोटों द्वारा चुने गए थे. लेकिन उनका कार्यकाल केवल 15 महीनों का ही रहा. कुछ समय बाद 1956 में भ्रष्टाचार और अन्य पार्टियों के बीच मतभेद के कारण इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था.
राम किशन
पंजाब के आखिरी हिन्दू मुख्यमंत्री राम किशन थे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्य थे. जिनका कार्यकाल गोपी चंद भार्गव और भीम सेन सचर से काफी कम रहा था. राम किशन पंजाब के चौथे मुख्यमंत्री थे. पंजाब के मुख्यमंत्री के पद पर इनका कार्यकाल 1964 से 1966 तक रहगा था, क्यों कि 1966 में, पंजाब और हरियाणा के विभाजन के समय वहां की विधानसभा को भंग कर दिया गया था, और इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा. इनका जन्म भी गुलामी से पहले पाकिस्तान में हुआ था. लेकिन विभाजन के समय राम किशन भारत्त आ गए थे.
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