भारत में कानूनन तलाक लेने वाली पहली महिला रकमाबाई थी. हम आपको बता दे कि रकमाबाई का जन्म महाराष्ट्र में 1864 में हुआ था. उस समय लडकियों का छोटा उम्र में ही विवाह कर दिया जाता था. रकमाबाई के पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी, जिसमे बाद उनकी विधवा माँ ने उनकी शादी 11 साल की उम्र में ही कर दी थी, लेकिन वह अपने पति के साथ रहने नहीं गयी थी. इसी बीच उनकी माँ ने एक सर्जन के साथ शादी करली थी. रकमाबाई का अपने सौतेले पिता का काफी असर पड़ा था. रकमाबाई एक पढ़ी लिखी महिला था, जिन्होंने समाज के सामने एक ऐसी बात रखगी जिससे पूरे समाज में हंगामा हो गया था.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बतायेंगे की रकमाबाई ने अपने पति से ताकल क्यों लिया था ? क्यों रकमाबाई के कानूनन तलाक लेने पर बाल गंगाधर तिलक उनके खिलाफ खड़े हो गए थे ?
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भारत में कानूनन तलाक लेने वाली पहली महिला
भारत में कानूनन तलाक लेने वाली पहली महिला रकमाबाई थी, यह एक पढ़ी लिखी महिला है. जिनका 11 साल की उम्र में दादाजी भीकाजी से शादी हो गयी थी. लेकिन वह कभी अपने पति दादाजी भीकाजी के साथ नहीं रही थी. रकमाबाई ने अपने पति दादाजी भीकाजी क्ले साथ जाने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि जिस शादी में उनकी मंजूरी नहीं है, वह उस शादी में नहीं रहना चाहती. उन्होंने छोटी उम्र में अपने से बड़े व्यक्ति के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने से इंकार कर दिया था. जिसके चलते बहुत हंगामे हुए थे. उस समय पहली बार किसी महिला ने ऐसी बात कही थी, जिनका जमकर विरोध किया गया था.
रकमाबाई के पति दादाजी भीकाजी ने अपने वैवाहिक अधिकारों के लिए कोर्ट में गए, जिसके खिलाफ रकमाबाई ने संघर्ष किया, जिसमे उनका साथ उनके सौतेले पिता सर्जन सखाराम अर्जुन ने दिया, जो छोटी उम्र में माँ बनाने के खिलाफ थे. रकमाबाई के इस संघर्ष के बाद शादी करने की क़ानूनी उम्र घोषित कर दी थी.
बाल गंगाधर तिलक ने रकमाबाई का किया विरोध
भारत में कानूनन तलाक लेने वाली पहली महिला रकमाबाई का बाल गंगाधर तिलक विरोध किया था. बाल गंगाधर तिलक के अनुसार लड़कियों को ज्यादा पढ़ना लिखना नहीं चाहिए, उनका कहना था कि लडकियों को स्कूल में बस तीन घंटे पढ़ना चाहिए, जिसक बाद उनके घर का काम सीखना चाहिए. बाल गंगाधर तिलक ने इस बात पर जौर दिया था कि “महिलाओं को देसी भाषाओँ, नैतिक विज्ञान और सिलाई बुनाई आनी चाहिए”
जब रकमाबाई ने भारत में कानूनन तलाक लिया, तो उनका बाल गंगाधर तिलक ने जमकर विरोध किया था. उनके अनुसार रकमाबाई द्वारा अपने पति से तलाक लेना पूरी हिन्दू समाज की नाक का सवाल बना दिया था. तिलक ने साप्ताहिक अख़बार में 8 पन्ने भर कर दादाजी भीकाजी का समर्थन किया था. इसके साथ उन्होंने कहा था कि महिलाओं को ज्यादा पढ़ोगे तो वह रकमाबाई बन जाएंगे, जो अपने पति से तलाक मांगेंगी. बावजूद इसके की रकमाबाई पढ़ लिख कर एक डॉक्टर बन गयी थी. जिन्होंने विदेश जाकर भी पढाई की थी.
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