किसी ने बांग्ला दलित साहित्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि “दलितों द्वारा, दलितों के माध्यम से और दलितों की समाजिक स्थिति पर लिखा गया साहित्य बांग्ला दलित साहित्य कहलाता है”. और यह परिभाषा किसी भी मायने ने गलत नहीं है. इस परिभाषा से दलित साहित्य को अच्छे से समझा जा सकता है. कहा जाता है कि किसी भी चीज़ को हम एक सीमित सीमा तक ही दबा सकते है, उसके बाद वही चीज़ वापिस उछ्लेगी. ऐसा ही इंसानों के साथ भी होता है. इंसान एक सीमित सीमा तक ही किसी का दबाव बर्दाश कर सकते है. उसके बाद अपने पूरे आक्रोश के साथ उसका विरोध करते है. ऐसा ही दलितों के साथ हुआ. हमारे समाज में काफी लम्बे समय से दलितों को दबाया जा रहा था, उनसे इंसान होने तक के अधिकारों को छीन लिया गया था. फिर उनके बर्दाश करने की शक्ति खत्म हो गयी, जिसके साथ उन्होंने अपने पूरे आक्रोश के साथ विरोध किया. इतने आक्रोश के बाद आपको प्रेम नहीं गुस्सा दिखेगा. ऐसे ही दलित साहित्यकारो के साथ हुआ, उन्होंने अपने क्रोध को अपने साहित्य में उतार दिया. दलित लेखको ने दलित साहित्य में दलितों की सामाजिक स्थिति को बखूबी बयां किया है.
दोस्तों, आईये आज हम एक ऐसी ही दलित लेखिका के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने अपने साहित्य में दलितों की सामाजिक स्थिति को बयां किया है. जिनकी लेखनी में दलितों के साथ हुए जुल्मों का आक्रोश दिखता है.
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दलित लेखिका कल्याणी ठाकुर चरल
बांग्ला दलित साहित्य में दलितों की स्थिति का बयान करने वाली दलित लेखिका कल्याणी ठाकुर चरल का जन्म 1965 में मटुआ समुदाय में हुआ था. इनका जन्म स्थान पश्चिम बंगाल है. कल्याणी के बड़े चार भाई बहन है, जिनमे सबसे छोटी कल्याणी है. इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से इनका परिवार खुद सब्जी उगा कर, सब्जी को बेच कर अपने परिवार का खर्चा निकलते थे.
उनके माता पिता शिक्षित नहीं थे, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर कुछ बनाना चाहते थे. लेखिका की नारीवाद सोच का श्रेय वह अपने माता पिता को देती है. उनके पिता घरेलु हिंसा का विरोध करते थे. साथ ही उनकी माँ घर में यह ध्यान रखती थी कि सबको समान अवसर दिए जाये. ऐसे माता पिता की बेटी को बांग्ला दलित साहित्य में दलितों की स्थिति को लिखने वाली महिला के रूप में जाने जाना कोई बड़ी बात नहीं है.
बांग्ला दलित साहित्य में दलितों की स्थिति को बयान वाली महिला
दलित लेखिका कल्याणी ठाकुर चरल ने बांग्ला दलित साहित्य में दलितों की स्थिति का बखान किया है. इनके लेखन की यात्रा छात्र जीवन ही शुरू हो गयी थी, कल्याणी 21 सालों से “नीड़” नामक पत्रिका का सम्पादन करे रही है, जिसमे वह दलितों की समाजिक स्थिति और नारीवाद के ऊपर लिखती है. इन्होने अपने आत्मकथा बंगाली में “आमी केनो चाडाल लिखी” (मैं क्यों चाड़ाल लिखती हूं) भी लिखी है. जिसमे इन्होने अपने दलित जीवन के साथ साथ, समाज में दलितों की स्थिति, उनका आक्रोश के बारे में भी लिखा है. कहा जाता है कि यह अपने लेखन को दलितों की आवाज बनती है.
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