बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर जिन्हें जन्म से जाति का नाम भेदभाव झेला और इस भेदभाव को खत्म करने के लिए खूब पढ़ाई की साथ ही अपनी जाति के लोगों के लिए काम भी किया. जहाँ बाबा साहेब हिन्दू धर्म में पैदा हुए लेकिन बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया तो वहीं उन्होंने हिन्दू धर्म को भारत के बीमार लोग बताया. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि बाबा साहेब ने ऐसा क्यों कहा.
बाबा साहेब के लिए क्या था हिन्दू राष्ट्र का मतलब
दरअसल, डॉ. आंबेडकर के लिए हिंदू राष्ट्र का मतलब दलित, ओबीसी और महिलाओं पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना था न कि ब्राह्णवाद की स्थापना वहीं अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर दी पार्टिशन आफ इण्डिया’ (1940) में लिखा था कि ‘‘अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतन्त्रता, समता और बन्धुता के लिए खतरा है। उस आधार पर वह लोकतन्त्र के साथ मेल नहीं खाता है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए.
बाबा साहेब ने हिंदू को बताया था भारत के बीमार लोग
वहीं हिन्दू को भारत ने बीमार लोग बताते हुए अपनी किताब ‘जाति का उच्छेद’ में लिखा थी है कि ‘‘मैं हिन्दुओं को यह अहसास कराना चाहता हूँ कि वे भारत के बीमार लोग हैं, और उनकी बीमारी अन्य भारतीयों के स्वास्थ्य और खुशी के लिए खतरा है.
बाबा साहेब ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि देश में हिन्दू समाज के लोग खुद को बड़ा समझते थे और दलित जाति के लोगों के साथ बुरा बर्ताव करते थे. बाबा साहेब काफी पढ़े-लिखे लेकिन इसके बाद भी उन्हें जाति के नाम का भेदभाव झेलना पड़ा और ये उनके साथ बचपन से हुआ. वहीं कई सारे ऐसी घटना हुई जब बाबा साहेब के समय भेदभाव हुआ. और इसकी वजह हिन्दू धर्म थी.
इस वजह से बाबा साहेब ने अपनाया बौद्ध धर्म
वहीं बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया क्योंकि बाबा साहेब को बौद्ध धर्म की तीन बातें बेहद पसंद आईं. वह बौद्ध धर्म के अंधविश्वास और अतिप्रकृतिवाद की जगह अपने दिमाग के प्रयोग के सिद्धांत से काफी प्रभावित थे इसके साथ ही उनको करुणा और समानता के सिद्धांत ने भी खूब प्रभावित किया और इसी वजह से उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया. इसी के साथ उन्हें हिन्दू धर्मं में दलितों को सदियों से अलग-थलग रहना पड़ रहा है और इसी वजह से अंबेडकर हिन्दू धर्म को त्याग देना चाहते थे. वहीं उन्हें हिंदू धर्म के 22 ऐसे कामों से अपने आप को अलग किया जो उन्हें शुरू से ही पसंद नहीं थे. इसमें अंधविश्वास, श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान जैसी चीजों से वह दूर होना चाहते थे.वहीं 1935 के एक भाषण में भी उन्होंने कहा था कि अगर आपको अपनी मदद करनी है तो यह आपको खुद करना होगा ऐसे में पहले धर्म बदलिए.
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