भारत के पहले फील्ड मार्शल मानेकशॉ थे, लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत रोमांचक रहा है. मानेकशॉ हर बात में तुरंत स्मार्ट सा जवाब देने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें लोग सैम मानेकशॉ के नाम से जानते हैं. मानेकशॉ भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष थे. भारत और पाक 1971 का युद्ध, और फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सेना अधिकारी थे. मानेकशॉ का सैन्य करियर द्वितीय विश्व युद्ध में सेवा से शुरू होकर काफी लम्बे समय तक चला था.
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हम आपको बता दे कि मानेकशॉ 1932 में भारत की सेना अकादमी देहरादून में शामिल हुए थे. मानेकशॉ को 12वीं फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट की चौथी बटालियन में नियुक्त किया गया था , जिसके बाद मानेकशॉ में सेवा दी और उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में उन्हें वीरता के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था. जिसके बाद उन्होंने लगातार अपने देश के लिए काम किया. हमारे देश के विभाजन के बाद, मानेकशॉ को 8वीं गोरखा राइफल्स में फिर से नियुक्त किया गया था. मानेकशॉ को 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और हैदराबाद संकट के दौरान योजना बनाने की भूमिका सौंपी गई और जिसके बाद, उन्होंने कभी पैदल सेना बटालियन की कमान नहीं संभाली थी. मानेकशॉ 1952 में 167 इन्फैंट्री ब्रिगेड के कमांडर बने और 1954 तक इस पद पर रहे जब उन्होंने सेना मुख्यालय में सैन्य प्रशिक्षण के निदेशक का पर नियुक्त किया गया.
जब रक्षामंत्री की बात का दिया जवाब
मानेकशॉ को उनकी बेबाकी से दिए जावे वाले जवाबों से जाते थे. पूर्व आर्मी चीफ़ जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब ”लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी-बायो ग्राफीज़ ऑफ़ 12 सोल्जर्स” में सैम मानेकशॉ से जुडी एक बात का जिक्र किया कि एक बार रक्षामंत्री ने मानेकशॉ से आर्मी चीफ़ जनरल के.एस थिमैया के बारे में उनकी राय पूछी. मानेकशॉ ने बड़ी ही बेबाकी से कहा “मुझे अपने चीफ़ के बारे में राय बनाने की इजाज़त नहीं है. आप एक जनरल से पूछ रहे हैं कि आर्मी चीफ़ के बारे में उसकी क्या राय है”. कल आप मेरे जूनियर से मेरे बारे में यही सवाल करेंगे तो इससे तो सेना का पूरा डिसिप्लिन ही बिगड़ जाएगा.” यह सुनकर रक्षा मंत्री थोड़े चिढ गए लेकिन मानेकशॉ की बात में सच्चाई थी.
जब मानेकशॉ ने एक पाकिस्तानी कर्नल से मांगी थी कुरान
भारत और पाक के युद्ध के बाद पाकिस्तान में यह बातें चलती थी कि जो सैनिक वहां कैद है उन्हें भारत सरकार खाना भी नहीं देती, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. लेकिन एक बार किसी लाहौर में आर्मी चीफ्स की मीटिंग हो रही थी. उसमे मानेकशॉ लाहौर गए हुए थे, मीटिंग के बाद मानेकशॉ को वहां बताया गया कि उनसे एक व्यक्ति मिलना चाहते है. मानेकशॉ उनसे मिलने पहुचें तो उस व्यक्ति ने अपना साफा उतर के उनके कदमों में रख दिया. मानेकशॉ ने जब इसका कारण पुछा तो व्यक्ति ने बताया कि सर मेरे पांच लडके आपकी कैद में है. वो मुझे ख़त लिखते है. उन्होंने लिखा की आपने मेरे बेटों को कुरान दी और सभी कैदियों को जमीन पर सुलाते है आपने उन्हें चार पाई भी दी आपका शुक्रिया… अब मुझे कोई कितना भी कहे की भारत बुरा है मैं यह बात नहीं मान सकता. ऐसे ही मानेकशॉ ने जीवन भर के जाने कितने किस्से है. यह एक काफी बेबाक और खुश मिजाज और जिम्मेदार इंसान थे.
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