दलितों और पिछड़ों के मसीहा और भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जो पैदा तो हिन्दू धर्म में हुए लेकिन जब वो मरे तब उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के अनुसार हुआ और इसकी वजह बचपन से जाति के नाम पर उनके साथ हुआ भेदभाव था. इसी जाति की वजह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से उनकी नहीं बनी साथ ही ये दोनों के विचारे भी आपस में नहीं मिले. वहीं चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय की एक किताब आई थी ‘एक था डॉक्टर एक था संत’ इस किताब में लेखिका ने दो महान बाबा साहेब और महात्मा गाँधी के बारे में लिखा है.
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अरुंधति रॉय ने लिखी थी ये किताब
चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय द्वारा लिखी किताब ‘एक था डॉक्टर एक था संत’ नाम से आई. ये किताब अंग्रेजी में लिखी गयी है और इस किताब गांधी तथा अंबेडकर की एक अलग ही छवि प्रस्तुत की गई है. इस किताब में बताया गया था बी. आर. आंबेडकर द्वारा गांधी की दैवीय छवि को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया. वहीं इस किताब में ये भी कहा गया कि आंबेडकर की लड़ाई, जाति को सुदृढ़ करने वाली नीतियों के खिलाफ थी भले ही गाँधी जी के प्रयासों ने ब्रिटिश शासन ने भारत को आज़ादी दिलाई लेकिन आज भी देश जाति व्यवस्था के नाम आगे नहीं बढ़ पाया है.
इस किताब में लेखिका ने ये बताने की कोशिश की है कि भारत के दो महान लोग जो अछुतों के बड़े नेता होने का दावा करते हैं उनमें से एक इन लोगों की आज़ादी चाहता है और उसके लिए संघर्ष करता है तो वहीं एक शख्स उन्हें हिन्दू धर्म में कैद करना चाहता है एक शख्स के जन्म अछूत परिवार में हुआ तो वहीं दूसरा महान शख्स वो जिसका जन्म ऊँची जाति में हुआ.
बाबा साहेब की जर्नी को बताया कांटों भारी राह
वहीं किताब में लेखिका ने बाबा साहेब की जर्नी को कांटों भरी राह तो वहीं महात्मा गाँधी की जर्नी को झिलमिल पथ शीर्षक दिया है. इसी के साथ लेखिका ने इस किताब के जरिए ये बताया कि कैसे बाबा साहेब ने अछूत लोगों के पानी पीने के अधिकार के लिए आदोलन किया और आदोलन के लिए जहाँ वो नाटक और 40 गांव के जरिए सिर्फ 144 रूपये ही जुटा पाते हैं तो वहीं महात्मा गाँधी एक पत्र लिखकर जी.डी. बिड़ला से 2 लाख 50 हज़ार की मांग करते हैं.
इसी के साथ इस किताब में लेखिका ने ये भी बताया है कि कैसे ज़िन्दगीभर संघर्ष करने वाले व्यक्ति के बारे में चर्चा भी नहीं होती और किस तरह सब कुछ पाने वाला व्यक्ति महात्मा बन जाता है.
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