गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें और अंतिम गुरु थे. गुरु गोविंद सिंह जी धर्मंयुद्ध में यकीं रखते थे, उनके हिसाब से लडाई केवल धर्म की रक्षा के लिए होनी चाहिए. गुरु जी कभी भी बदला लेने, फायदे के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी. न ही किसी भी युद्ध में किसीको बंधी बनाया था, न कभी किसी के धार्मिक स्थान को नुकसान पहुचाया. गुरु जी के पिता गुरु तेग बहादुर जी की फांसी के बाद मुग़ल साम्राज्य सिख लोगों का शत्रु बन गया था. गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में सिखों ने मुगलों का जमकर विरोध किया. उस समय सिखों और मुगलों का विरोध चरम पर था. जिसके चलते ओरंगजेब ने गुरु जी और उनके पूरे परिवार को मारने का आदेश दे दिया था. उस विरोध के बाद भी कई बार सिख और मुस्लिम आमने सामने आए है, इस लेख में जिनका वर्णन किया जायेगा.
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सिख बनाम मुस्लिम संघर्ष
अमृतसर की लड़ाई – 1709 में, भाई मणि सिंह और लाहौर के गवर्नर असरम खान के बीच लड़ाई गयी थी. गुरु गोबिंद सिंह जी मौत के बाद यह सिख और मुस्लिम की पहली लड़ाई थी, जो लड़ी गई थी. वैशाखी से पहले सिखों ने अमृतसर में एक सभा आयोजित की थी. शहतूत के पेड़ो के पीछे सिखों और मुगलों के बीच विवाद हो गया था. कुछ सिखों ने रामू मल्ल नाम के इंसान को पिट दिया था. जिसके बाद लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि कुछ ही दिनों के बाद एक बड़ी सेना ने मुगलों का ध्वज फहराते हुए, स्वर्ण मंदिर के बहार शिवर लगा दिया था. आकर्मण के बारे में जानकर सिखों ने भी युद्ध की तैयारी कर ली थी. यह लड़ाई 6 से 12 अप्रैल लड़ाई गयी थी. इस लड़ाई का यह परिणाम हुआ कि सिखों ने मुगलों को हर दिया था.
रोपड़ की लड़ाई: 1710 में, बंदा सिंह बहादुर और मलेरकोटला के शेर मोहम्मद खान के नेतृत्व में हुई थी. माझा के किरतपुर में सिख इकठा हुए थे, वापिस आते समय रोपड़ में सिखों का रास्ता शेर मोहम्मद खान, खिजर खान, नश्तर खान ने रोक लिया था. और उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगे. मुगलों के पास हथियार थे बड़ी सेना थी लेकिन सिखों के पास न हथियार थे न ज्यादा बड़ी सेना. लेकिन फिर भी दोनों सेना बहादुरी से लड़ रही थी, इतनी देर में बहुत तेज़ आंधी से धूल उड़ने लगी. दोनों सेनाओं को पीछे हटना पड़ा.अगली सुबह तक शेष सिखों की टुकड़ी उनका साथ देने पहुच गई थी. युद्ध में खिजर खान को गोली लगी, उसका शव उठाते समय शेर मोहम्मद खान और नश्तर खान भी मारे गए, और इसके साथ ही खलस पंथ की विजय हुई.
सहारनपुर की लड़ाई: यह लड़ाई 1710 में, बंदा सिंह बहादुर के नेतृत्व में सिख सेना और सहारनपुर की मुग़ल सेना के भी हुई थी. बंदा सिंह को जब पता चला कि जलालाबाद और सहारनपुर के फौजदार जलाल खान और अली हामिद खान इलाके के धर्मान्तरित सिखों को परेशान करते है तो उसे बहुत गुस्सा आया, उन्होंने कुछ सिखों को फौजदारो को सबक सिखाने के लिए भेजा था, पहले सिखों ने सहारनपुर पर पर चढाई की, आधे मुग़ल तो सिखों के हमले के बारे में सुनकर ही दिल्ली भाग गए थे, बचे हुए मुगलों पर सिखों ने कब्जा कर लिया था. मुगलों पर इस लड़ाई से सिखाक खोफ बैठ गया था.
लोहगढ़ का युद्ध: यह लड़ाई 1710 में बंदा सिंह के नेतृत्व में सिख सेना और मुगल सेना के बीच लड़ी गई थी. मुग़ल सम्राट बहादुर शाह की सेना लोहगढ़ की ओर बढ़ी, वहां कब्जा करने के लिए सिह सेना से लड़ाई भी कि थी. इस लड़ाई को गुरिल्ला राजनीति के इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. यह लड़ाई का परिणाम यह हुआ कि मुगलों ने सिखों को खदेड़ दिया था, मुगलों की जीत गुई थी.
जम्मू की लड़ाई : यह लड़ाई 1712 में जम्मू के पास मुगलों की सेना और बंदा सिंह बहादुर की सिख सेना के बीच लड़ाई गई थी. उस समय बंदा सिंह बहादुर ने औरंगजेब के शहरो पर कब्जा करना शुरू कर दिया था लकिन जम्मू में मुग़ल सेना के कमांडो ऑफ चीफ रुस्तम दिल खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने सिखों को खदेड़ दिया था. उस लड़ाई में बंदा सिंह मुश्किल से पहाड़ी के पीछे अपनी जान बचा कर भगा था. इस लड़ाई में मुगलों की विजय हुई थी.
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