चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का…
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का…
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की…
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गाँव?
शहर?
देश?
जातिवाद के खिलाफ लिखी ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह कविता “ठाकुर का कुआँ”, जिसका पाठ संसद में ‘महिला आरक्षण विधेयक’ पर भाषण के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने किया था. यह कविता एक दलित लेखक द्वारा लिखी गई थी, लेकिन संसद ने एक ब्राह्मण(मनोज झा) द्वारा पढ़ी गयी, उन्होंने साथ में कहा कि “हम सबके अंदर एक ठाकुर है.. जिससे हमे उभरना पड़ेगा”
MP Manoj Jha: एक ब्राह्मण नेता जब पिछड़े वर्ग के बारे में बात करता तो हमे लगता है यह वोट के चक्र में ऐसे बयान दे रहा है. लेकिन कुछ नेता ऐसे भी है जो सही में दलितों के अधिकारों के बारे में बात करते है, ब्राह्मणवाद को समाज में जातिव्यवस्था का कारण बताते है, भारतीय राजनीति में मजोज झा जैसे नेता जो हमेशा से दलितों के अधिकारों, पछडे वर्गों, ब्राह्मणवाद और अम्बेडकरवाद पर खुल कर बात करते है. जिसके हिसाब से पिछड़े वर्ग के लिए सबसे बड़ा खतरा ब्राह्मणवाद है. आज हम आपको मजोज झा की कही कुछ ऐसी बातों से रूबरू कराएंगे, जिन्हें जानना हमारे समाज के लिए जरूरी है.
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BBC interview: बीबीसी के इंटरव्यू में इस बयान पर सांसद मनोज झा ने कहा की “यह वर्चस्व और प्रभुत्व का प्रतीक है, इससे अलग कुछ नहीं. वो वर्चस्व और प्रभुत्व विश्वविद्यालयों में लोगों की एंट्री रोकता है, न्यायालयों में एक बहुजन वंचित समाज की एंट्री रोकता है, विधायिका को कंट्रोल करता है, वो ठाकूर हम सब के अंदर है”
सांसद मनोज झा ने समझाया कि उस कविता को मैंने इसीलिए पढ़ा था, “क्यों कि प्रभुत्व की कई चीज़े इतने सालों से आज भी हमारे अंदर विद्यमान है… जो हमारे विशेषाधिकार से आती है… हम उनको कितना भी छोड़ने की कोशिश करे, उनसे लड़ते झगड़ते, उनके कुछ अंश तो बचे ही जाते है”. उन्होंने उस ‘अंश ‘ को जो प्रभुत्व का प्रतीक है, उसे मारने को कहा है, मनोज झा ने उस अंश को हमारे भीतर का ठाकर कहा है.
MP Manoj Jha: सांसद मनोज झा ने समाज में पिछड़े वर्ग के लोगो के लिए कहा की जो विशेषाधिकार समाज के एक वर्ग के पास है, वो समाज के एक बड़े समूह के पास नहीं है, उन्होंने कहा कि मेरे पास मनोज झा यानि ब्राह्मण होने का विशेषाधिकार है, मेरे माता पिता शिक्षक है. लेकिन समाज का एक बड़ा तबका असा है जिसके पास दोनों ही नहीं है, और विशेषाधिकार वाले लोग चाहे, अनचाहे उनका अधिकार ले लेते है. इस बात का उदहारण देते हुए उन्होंने अपने बचपन की एक घटना बताई, ‘कि मेरे साथ पढने वाला एक लड़का जो काफी टैलेंटेड था, पढाई मने बहुत होशियार था, नौवीं कक्षा के बाद स्कूल ही नहीं आया, क्यों जी वह एक पिछड़े वर्ग का था, उनकी आर्थिक स्थिति की वजह से उसे आपनी पढाई छोडनी पढ़ी’, मनोज झा के कहा कि हमारे जीवन स्तर, विशेषाधिकार, आर्थिक स्थिति और हमारी जाति, धर्म का हमारे जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है. विशेषाधिकार हमारे रास्ते आसान बनाता है, जिसके पास यह विशेषाधिकार नहीं है उनके लिए वही रास्ता दुष्कर हो जाता है.
मनोज झा में कहा कि ‘हम जैसे विशेषाधिकार लोगो का अगर कहीं पांव लडखडाता है, तो हमारा परिवार या समाज हमे गिरने नहीं देता संभाल लेता है. वहीं अलग पिछड़े वर्ग के लोगों का पांव लडखडाता है तो उन्हें कोई नहीं सम्भालता, वो गिर जाते है. हम जैसे विशेषाधिकार वाले लोगो को अपने विशेषाधिकार पर सवाल उठाना चाहिए, रुक कर थोडा जांचना चाहिए कहीं हमारे विशेषाधिकार से किसी का अधिकार तो नहीं छीन रहे है, इस सवाल से आप बेहतर इंसान बनोगे.
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