दोस्तों, आज हम इस लेख के जरिये आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएंगे, जिससे दलित साहित्य के संस्थापक के रूप में देखा जाता है, यह एक मराठी समज सुधारक, लोक कवि और लेखक थे. इनका नाम तुकाराम भाऊराव साठे था, जिन्हें अण्णा भऊ साठे के नाम से जाना जाता था. इनका जन्म 1 अगस्त 1920 को एक मांग समुदाय में हुआ था, जिससे उस समय अछूती जाति कहा जाता था. यह शुरू में साम्यवादी विचारधारा से प्रभवित हुए थे लेकिन बाद में मार्क्सवादी और अम्बेडकरवादी विचारधारा के प्रति इनका रुझान देखा गया. इन्होने संयुक्त महाराष्ट्र आन्दोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अण्णा भऊ साठे ने अपने जीवन में अपने समय की सामाजिक स्थितियों के बारे में लिखा था, जिसके चलते उन्हें दलित साहित्य का संस्थापक के रूप में देखा जाता था. आईये आपको अण्णा भऊ साठे के जीवन के कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू कराते है, जिनसे आप वाखिफ नहीं होंगे.
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कौन थे अण्णा भऊ साठे ?
अण्णा भऊ साठे एक मराठी समाज सुधारक, कवि और लेखक थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में दलितों की सामाजिक स्थिति के बारे में लिखा है. इनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था. इन्होने स्कूली पढाई नहीं की थी, अण्णा भऊ डेढ़ दिन स्कूल गए थे. जातिगत भेदभाव के कारण उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था. शुरुवात में साम्यवादी विचारधारा से प्रभवित हुए थे, जिसके चलते इन्होने 1944 में लालबावता आर्ट टीम का गठन किया था. इसके बाद इन्होने कई सरकारी फैसलों को चुनौती दी थी, जो दलितों को समाज में उनके हकों के खिलाफ थे.
स्वतन्त्रता के बाद, यह उच्च जातियों के शासन से सहमत नहीं थे, इन्होने उनके नियम मानने से इंकार कर दिया था और उनका विरोध किया था. 16 अगस्त 1947 को इन्होने 20 हजार लोगो के साथ मिलकर एक आन्दोलन किया था, जिसका नारा था “यह आजादी झूठी है” देश की जनता भूखी है.
बाद में अण्णा भऊ साठे ने मार्क्सवादी और अम्बेडकरवादी विचारधारा के प्रति रुझान कर लिया. अम्बेडकर की शिक्षा के अनुसार इन्होने समाज में दलितों कि स्थिति के लित्ये काम करना शुरू कर दिया था. जिसके बाद उन्होंने अपने लेखन से दलितों की सामाजिक स्थिति का बखान करने लगा. अपनी कहानियों से दलितों के कष्टों को समाज के आगे रखने लगा.
दलित साहित्य में योगदान
अण्णा भऊ साठे एक मराठी समाज सुधारक के साथ साथ दलित साहित्य के लेखक भी थे. हम आपको बता दे कि अण्णा भऊ साठे ने मराठी भाषा में 35 उपन्यास लिखे है. जिसके चलते उन्हें 1961 का सर्वोतम उपन्यास पुरस्कार भी मिला था. इन्होने अपनी लेखनी से दलित साहित्य को नया रूप प्रदान किया था. इनके साहित्य में दलितों के प्रति कोमल भावना थी. इनके साहित्य में 15 कथाओं का संग्रह है, जिनका कई भारतीय और गैर-भारतीय भाषाओँ में अनुवाद किया गया था. उपन्यासों और लघु कथाओं के अलावा, अण्णा भऊ साठे ने नाटक, मराठी पोवाड़ा शैली में 12 पटकथाएं और 10 गाने भी लिखे. इनके साहित्य को देखकर इन्हें सही दलित साहित्य का संस्थापक कह सकते है. इनके साहित्य को आज भी विद्यार्थी और विद्वान तक पढ़ते है.
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