लहुजी सालवे महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यो में प्रमुख रूप से उभरे थे. उनका जन्म 1794 में हुआ था और उन्होंने युवावस्था से ही समाजसेवा और पहलवानी में रुचि दिखाई. सालवे ने स्थानीय समुदाय को जागरूक करने और उनकी समस्याओं का समाधान निकालने में भी अपनी कड़ी मेहनत की. उन्हें भारत में हिंदू समाज सुधारक, दलित कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है. इन्हें भारत में तालीम की पहली अवधारणा का जनक भी माना जाता है. लहुजी सालवे खुद मांग समुदाय से संबध रखते थे. इन्होने आगे चलकर दलितों को समाज में उनका हक दिलाने के लिए भी काम किया था. ज्योतिराव फुले के साथ जुड़कर दलितो और महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया. जिसके बाद इन्हें समाज सुधारक के तौर पर देखा जाने लगा था. आज हम आपको लहुजी सालवे के जीवन के कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू कराएंगे, जिनसे आप वाखिफ नहीं होंगे.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बताएंगे कि लहुजी सालवे ने दलितों के लिए सामाजिक तौर पर क्या कार्य किए ? कैसे दलितों को उनके हक दिलाने के लिए सक्रिय लड़ाई लड़ी?
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लहुजी सालवे
लहुजी सालवे का जन्म महाराष्ट्र के मांग समुदाय में 1794 को हुआ था. लहुजी जीवन भर अविवाहित रहे. इनके पिता एक पहलवान थे, जिनसे इन्होने कुश्ती सीखी और एक अच्छा पहलवान बने. पहलवानी से ही इन्हें मास्टर की उपाधि मिली थी. जिसक बाद लोग इन्हें मास्टर लहुजी सालवे के नाम से जानते थे. इन्होने पुणे में एक व्यायामशाला भी बनाई थी, जिसके कारण अब पूरे भारत में इनका जन्म दिवस “राष्ट्रीय स्वतंत्रता संकल्प दिवस” के रूप में मनाया जाता है. 18वीं शताब्दी के अंत में और 19वीं शताब्दी की शुरुवात में एक महत्वपूर्ण सैन्य भूमिका निभाई थी. जिसके बाद इन्होने कई जातियों के नेताओं का एक समूह बनाया था, जिसको ‘धंगर’ सेना नाम से जाना गया. इस सेना ने कई सामाजिक लड़ाई लड़ी.
लहुजी सालवे का सामाजिक योगदान
लहुजी सालवे जी के समाजिक जीवन की शुरुवात उनकी मार्शल आर्ट क्लास से हुई थी. जहाँ वह जाने मने लोगो को मार्शल आर्ट सिखाते थे, जहाँ ज्योतिराव फुले, बाल गंगाधर तिलक और फडके जैसे लोग उनकी क्लास में आते थे. जिनके साथ रहकर उन्हें समाज में हो रही गतिविधियों के बारे में पता चलता था. दलितों और महिलाओं की शिक्षा के लिए ज्योतिराव फुले के काम से परिचित और काफी प्रभाव हुए थे, जिसक बाद वह उन्हें साथ काम करने लगे. और सत्यशोधक समाज से जुड़ गए थे.
जिसके बाद लहुजी ने सच में हो रहे समाजिक जातिगत भेदभाव को देखा. जिनसे उन्हें काफी निराशा भी हुई. जिसके बाद उन्होंने दलितों को उनके हक दिलाने के लिए सक्रिय लड़ाई लड़ी. दलितों के समान के लिए समाज में दलितों की हजारों बार वकालत की. इन्हें एक महान स्वतंत्रता सैनानी और समाजिक सुधारक के रूम में जानते है.
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