धारा 44 क्या है – आज के लेख में हम आपको कुछ खास बताने जा रहे हैं जिसको लेकर आपको अपने अन्दर एक जागरूक नागरिक होने का एहसास होगा. जी हां दरअसल भारतीय दंड सहिंता में कानून के साथ साथ आम व्यक्ति को भी कुछ ऐसे अधिकार दिए हुए हैं जिसको अगर वो पढता है या जानने की कोशिश करता है तो शायद उसके लिए और उसके समाज के लिए अच्छा नागरिक बनने का अवसर प्रदान करता है. भारतीय दण्ड संहिता संहिता के प्राइवेट प्रतिरक्षा (निजी सुरक्षा या आत्मरक्षा) का अधिकार प्राप्त है, उसी प्रकार दण्ड प्रक्रिया संहिता भी आम लोगों को एक अधिकार देती है वह है.
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किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का अधिकार. इस अधिकार का मुख्य उद्देश्य यह है कि आपके आस-पास हो रहे गंभीर अपराध को आप रोक सके, और अपराधी को गिरफ्तार कर तुरंत पुलिस अधिकारी के पास या थाने या चौकी में सौप दे. ऐसे ही सीआरपीसी (CrPC) की धारा 43 (Section 43) में प्राइवेट व्यक्ति (Private person) द्वारा गिरफ्तारी (Arresting) और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया (Procedure) के बारे में प्रावधान (Provisions) मौजूद हैं. तो आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 42 (Section 42) इस संबंध में क्या बताती है?
1973 की धारा 43 क्या है ?
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 43 (Section 43) में प्राइवेट व्यक्ति (Private person) द्वारा गिरफ्तारी (Arresting) और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया (Procedure) के बारे में प्रावधान बताये गए हैं. CrPC की धारा 43 के मुताबिक-
- कोई प्राइवेट व्यक्ति (Private person) किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसकी उपस्थिति में गैरजमानती (non-bailable) और संज्ञेय अपराध (cognizable offenses) करता है, या किसी उद्घोषित अपराधी (proclaimed offender) को गिरफ्तार (arrest) कर सकता है या गिरफ्तार करवा सकता है और ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलंब (unnecessary delay) किए बिना पुलिस अधिकारी (Police Officer) के हवाले कर देगा या हवाले करवा देगा या पुलिस अधिकारी (Police officer) की अनुपस्थिति (Absence) में ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा (custody) में निकटतम पुलिस थाने (Police Station) ले जाएगा या भिजवाएगा.
- यदि यह विश्वास करने का कारण (reason to believe) है कि ऐसा व्यक्ति धारा 41 (Section 41) के उपबंधों के अंतर्गत (under the provisions of) आता है तो पुलिस अधिकारी (Police officer) उसे फिर से गिरफ्तार (arrest) करेगा.
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- यदि यह विश्वास करने का कारण (reason to believe) है कि उसने असंज्ञेय अपराध (non- cognizable offence) किया है और वह पुलिस अधिकारी (Police officer) की मांग पर अपना नाम (name) और निवास (Residence) बताने से इनकार (Refuse) करता है, या ऐसा नाम या निवास बताता है, जिसके बारे में ऐसे अधिकारी (officer) को यह विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या है, तो उसके विषय में धारा 42 (Section 42) के उपबंधों के अधीन (under the provisions of) कार्यवाही (Action) की जाएगी; किंतु यदि यह विश्वास करने का कोई पर्याप्त कारण नहीं (no sufficient reason) है कि उसने कोई अपराध (offence) किया है तो वह तुरंत छोड़ (Released) दिया जाएगा.
गिरफ्तारी कब की जा सकती है ?
धारा 44 क्या है – दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अंतर्गत यह बताया गया है कि गिरफ्तारी किस समय की जा सकती है. इस धारा के अंतर्गत किसी पुलिस अधिकारी को बगैर वारंट के गिरफ्तार करने संबंधी अधिकार दिए गए हैं. इस धारा के अंतर्गत पुलिस अधिकारी बिना किसी प्राधिकृत मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकता है.
- पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में यदि गिरफ्तार होने वाला व्यक्ति कोई संज्ञेय अपराध करता है तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है.
- पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर सकता है जिसके विरुद्ध कोई परिवाद मिला है और विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है.
- पुलिस अधिकारी को परिवाद की जानकारी पर संदेह होता है तो वह संदेह के आधार पर ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकता है. पुलिस अधिकारी को यह समाधान हो गया है कि ऐसी गिरफ्तारी किसी दूसरे अपराध को करने से निवारित करने के लिए है.
मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी
धारा 44 की उपधारा 1 के अनुसार मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकते हैं या किसी अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकते हैं, बशर्ते कि उक्त अपराधी ने अपराध उसकी उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत किया हो.
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धारा 44 क्या है – इसके अंतर्गत मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार करने के लिए अपराध के स्थान पर उपस्थित होने की बाध्यता नहीं है, क्योंकि धारा का अगला ही वाक्य मजिस्ट्रेट को यह भी शक्ति दे रहा है कि यदि कोई अपराध उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर होता है तो भी वह गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत होगा. मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर सकेंगे या गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकेंगे जिसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने के लिए अधिकृत हैं.