जब भी जाति व्यवस्था जैसे चीजें मेरे सामने आती है, तो मन में बैचनी पैदा होती है. जीवन की कुछ ऐसी घटनाएँ सामने आने लगती है, जो हमारे असमानता भरे समाज में दलित होकर जीना बहुत मुश्किल होता है. कहने को समय बदल रहा है, हमारा देश चाँद पर भी पहुंच गया है. लेकिन जाति का वर्चस्व आज भी कहीं न कही हमारे मन में है. मुझे याद है एक बार मेरी एक दोस्त मेरे घर आई थी, मैंने उसे पानी पुछा… तभी मेरी दादी बोली ‘इस चमारा की छोरी के हाथ में गलास ना दे, पानी उपर तै प्या दे’ यह सुनकर मुझे बहुत अजीब लगा, दादी ने मेरी दोस्त के लिए ऐसा क्यों कहा ? इतना सुनकर मेरी दोस्त ने पानी नहीं पीया और वो कुछ बहाना बना कर हमारे घर से चली गयी और कभी भी हमारे घर नहीं आई. मेरी दोस्त का मेरे घर से ऐसे चले जाना, और फिर कभी मेरे घर न आना मुझे बचपन में समझ में नहीं आया था, लेकिन आज उस घटना के बारे में सोचती हु तो समझ आता है कि वो इतनी छोटी उम्र से जातिगत भेदभाव का सामना करती आ रही है. उसे इतनी छोटी उम्र में ही जाने कितनी बार निचा महसूस करवाया गया होगा. पहले मुझे यह बातें समझ नागी आती थी लेकिन जब मैंने कुछ दलित लेखको को, उनके दर्दों को पढ़ा तब जाकर समझ आया उनके ऊपर क्या बीत रही होगी,
आज हम इस लेख से आपको ऐसे ही एक दलित लेखिका के बारे में बतायेंगे, जिन्होंने दलित पीड़ा के बारे में लिखा, उनके दर्दों को समाज के सामना बयान किया.
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दलित कवयित्री सुकीरथरिणी
सुकीरथरिणी एक दलित कवयित्री है, जिनका समकालीन दलित और तमिल साहित्य सराहने योग्य है. सुकीरथरानी, तमिनाडु के रानीपेट जिले के गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल में एक तमिल शिक्षक भी हैं. उन्होंने अर्थशास्त्र और तमिल साहित्य में डिग्री हासिल की हैं. सुकीरथरानी एक कवयित्री के साथसमाज सुधारक भी है. यह जाति व्यवस्था और समाज में औरतों की स्थिति पर आलोचनाओं के लिए भी जानी जाती है.
पहली बार जातिगत अनुभव
यह बात जब कि है, तब लेखिका कक्षा 2 में पढती थी, स्कूल में एक लडकी ने उसे नारियल की कैंडी दी, बदले में लेखिका ने भी उसे कुछ देने का सोच. लेखिका ने कुछ मिठाई खरीदी और उस लडकी को देने लगी, लडकी ने आपना हाथ पीछे कर लिया. यह देख कर लेखिका हैरान हो गई. उसे पहले तो समझ नहीं आया कि यह क्यों हुआ … बाद में समझ आया की उस घटना का कारण उस लडकी की सवर्ण जाति थी. उस समय स्वर्ण जाति के बच्चो को दलितों से दूर रहने के लिए कहा जाता था. उस समय लेखिका को पहली बार जातिगत अनुभव हुआ था.
दलित कवयित्री सुकीरथरिणी का साहित्य में योगदान
दलित सुकीरथरिणी ने दलित साहित्य और तमिल साहित्य में काफी बड़ा योगदान दिया है. उन्होंने अपनी लेखनी से समाज में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को बयान किया है. सुकीरथरिणी पर अम्बेडकर, मार्क्स के विचारों का काफी प्रभाव रहा है जो इनकी लेखनी में देखने को मिलता है. अब तक सुकीरथरिणी के छह कविता संग्रह आ चुके हैं. काइपट्टी येन कनवु केल, इरावु मिरुगम, कामत्तिपू, थीनदापदाथा मुथम, अवलई मोजिपेयार्थल और इप्पडिक्कु येवल.
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